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सितंबर, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कृष्णनाम् का महत्त्व

    गोकोटिदानं   ग्रहणेषु   काशी,                                    प्रयागगंगायुतकल्पवासः।     यज्ञायुतं          मेरूसुवर्णदानं,                       गोविंदनाम्ना  न  कदापि  तुल्यम्।।     दानौ में सर्वश्रेष्ठ, गौ दान का महत्व काशीजी में है, यदि ग्रहण काल में गौ दान काशी में किया जाये तो वह अक्षय हो जाता है। यदि काशी में चंद्र ग्रहण के समय करोड़ों गायों का दान किया जाये तो उस पुन्य का कुछ ठिकाना ही नहीं।    तीर्थराज प्रयाग में स्नान का ही बड़ा महत्व है। यदि प्रयागराज ( गंगा, यमुना, सरस्वती का मिलन स्थल ) में जीवन भर कल्पवास किया जाये तो फिर उस पुण्य का वर्णन करना संभव नहीं है। ऐसे कल्पवास यदि 10,000 बर्ष किये जायें तो वह अक्षय है।     यज्ञ तो भगवान् का ही स्वरूप है, "यज्ञो वै विष्णुः"। ऐसे यज्ञ दस हजार किये जायें तो सबसे अधिक पुण्य कर्म...

जन्मनाब्राह्मणोगुरू

जाति कर्म से नहीं जन्म से ही होती है(जनि प्रादुर्भावे धातु से)हम कहते हैं जन्म और कर्म दोंनों से जो ब्राह्मण है वह सर्वश्रेष्ठ है,जो जन्म से ब्राह्मण है,किन्तु से कुछ न्यूनतायें है तो वह भी (अप्रशस्त)ब्राह्मण ही है,,,छिन्ने पुच्छेपि सिंहे सिंहत्व व्यवहारो भवति न चाश्वः न च गर्दभः सः,,किसी सिंह की पूछ कटने पर भी वह घोङा या गदहा नहीं हो जाता सिंह ही कहलाता है ,,वैसे ही ब्राह्मणोचित कर्मों से रहित होने पर भी वह कहा ब्राह्मण ही जायेगा,, कर्म से वर्ण व्यवस्था मानने बालों को ये तो निश्चित करना ही पङेगा कि उसका आधार क्या होगा,,कौन संस्था ,समीति, न्यायालय या व्यक्ति किस परिमाप से ये निर्धारित करेगा कि अमुक व्यक्ति ब्राह्मण है,अमुक क्षत्रिय ,अमुक वैश्य ,अमुक शूद्र है,,, क्योंकि कर्म तो पल पल में वैसे ही बदलते रहते है,,जैसे मन की चिरन्तन चिन्तन परम्परा बदलती रहती है,,,,किस मीटर से हमारे बन्धु नापेंगे की अमुक व्यक्ति इतने से इतने समय तक ब्राह्मण रहा इतने से इतने तक क्षत्रिय,,,,,,हल चलाने लगा तो कृषक,,, भोजन पकाने लगा तो पाचक.., कपङे धोने लगा तो धोबी,,, दाढी बाल बनाने लगा तो नापित,,,पढाने लगा...

करूणासागर

एक बाबा जी नंदग्राम में यशोदा कुंड के पीछे निष्किंचन भाव से एक गुफा में बहुत काल से वास करते थे, दिन में केवल एक बार संध्या के समय गुफा से बाहर शौचादि और मधुकरी के लिए निकलते थे.  वृद्ध हो गए थे, इसलिए नंदग्राम छोड़कर कही नहीं जाते थे.एक बार हठ करके बहुत से बाबा जीश्री गोवर्धन में नाम 'यज्ञ महोत्सव' में ले गए.तीन दिन बाद जब संध्याकाल में लौटे तो अन्धकार होगया था, गुफा में जब घुसे, तब वहाँ करुण कंठ से किसी को कहते सुना - ओं बाबा जी महाशय! पिछले दो दिन से मुझे कुछ भी आहार न मिला. बाबा जी आश्चर्य चकित हो बोले - तुम कौन हो ? उत्तर मिला आप जिस कूकर को प्रतिदिन एक टूक मधुकरी का देते थे, मै वही हूँ.बाबा जी अप्राकृत धाम के अद्भुत अनुभव से विस्मृत हो बोले - आप कृपा करके अपने स्वरुप का परिचय दीजिये, वह कूकर कहने लगा - बाबा! मै बड़ा दुर्भागा जीव हूँ, पूर्वजन्म में, मै इसी नन्दीश्वर मंदिर का पुजारी था एक दिन एक बड़ा लड्डू भोग के निमित्त आया मैंने लोभवश उसका भोग न लगाया और स्वयं खा गया, उस अपराध के कारण मुझे यह भुत योनि मिली है. आप निष्किंचन वैष्णव है आपकी उचिछ्ष्ट मधुकरी ...

विदुर की नीति

विदुर की नीति श्लोक 1 : निषेवते प्रशस्तानी निन्दितानी न सेवते। अनास्तिकः श्रद्धान एतत् पण्डितलक्षणम्।। अर्थ: जो अच्छे कर्म करता है और बुरे कर्मों से दूर रहता है, साथ ही जो ईश्वर में भरोसा रखता है और श्रद्धालु है, उसके ये सद्गुण पंडित होने के लक्षण हैं। श्लोक 2 : न ह्रश्यत्यात्मसम्माने नावमानेन तप्यते। गंगो ह्रद इवाक्षोभ्यो य: स पंडित उच्यते।। अर्थ: जो अपना आदर-सम्मान होने पर ख़ुशी से फूल नहीं उठता, और अनादर होने पर क्रोधित नहीं होता तथा गंगाजी के कुण्ड के समान जिसका मन अशांत नहीं होता, वह ज्ञानी कहलाता है।। श्लोक 3 : अनाहूत: प्रविशति अपृष्टो बहु भाषते। अविश्वस्ते विश्वसिति मूढ़चेता नराधम: ।। अर्थ: मूढ़ चित्त वाला नीच व्यक्ति बिना बुलाये ही अंदर चला आता है, बिना पूछे ही बोलने लगता है तथा जो विश्वाश करने योग्य नहीं हैं उनपर भी विश्वाश कर लेता है। श्लोक 4 : अर्थम् महान्तमासाद्य विद्यामैश्वर्यमेव वा। विचरत्यसमुन्नद्धो य: स पंडित उच्यते।। अर्थ: जो बहुत धन, विद्या तथा ऐश्वर्यको पाकर भी इठलाता नहीं चलता, वह पंडित कहलाता है। श्लोक 5 : एक: पापानि कुरुते फलं भुङ...

दूब

दूब घास (दुर्वा) -------------- ********************************************** दूब या 'दुर्वा' (वैज्ञानिक नाम- 'साइनोडान डेक्टीलान") वर्ष भर पाई जाने वाली घास है, जो ज़मीन पर पसरते हुए या फैलते हुए बढती है। हिन्दू धर्म में इस घास को बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। हिन्दू संस्कारों एवं कर्मकाण्डों में इसका उपयोग बहुत किया जाता है। इसके नए पौधे बीजों तथा भूमीगत तनों से पैदा होते हैं। वर्षा काल में दूब घास अधिक वृद्धि करती है तथा वर्ष में दो बार सितम्बर-अक्टूबर और फ़रवरी-मार्च में इसमें फूल आते है। दूब सम्पूर्ण भारत में पाई जाती है। यह घास औषधि के रूप में विशेष तौर पर प्रयोग की जाती है।पौराणिक कथा *************** "त्वं दूर्वे अमृतनामासि सर्वदेवैस्तु वन्दिता।वन्दिता दह तत्सर्वं दुरितं यन्मया कृतम॥"पौराणिक कथा के अनुसार- समुद्र मंथन के दौरान एक समय जब देवता और दानव थकने लगे तो भगवान विष्णु ने मंदराचल पर्वत को अपनी जंघा पर रखकर समुद्र मंथन करने लगे। मंदराचल पर्वत के घर्षण से भगवान के जो रोम टूट कर समुद्र में गिरे थे, वही जब किनारे आकर लगे तो दूब के...

सौंफ के फायदे

मस्तिष्क संबंधी रोगों में सौंफ अत्यंत गुणकारी है। यह मस्तिष्क की कमजोरी के अतिरिक्त दृष्टि-दुर्बलता, चक्कर आना एवं पाचनशक्ति बढ़ाने में भी लाभकारी है। इसके निरंतर सेवन से दृष्टि कमजोर नहीं होती तथा मोतियाबिंद से रक्षा होती है। * उलटी, प्यास, जी मिचलाना, पित्त-विकार, जलन, पेटदर्द, अग्निमांद्य, पेचिश, मरोड़ आदि व्याधियों में यह लाभप्रद है। * सौंफ, धनिया व मिश्री का समभाग चूर्ण 6 ग्राम की मात्रा में भोजन के बाद लेने से हाथ-पाँव तथा पेशाब की जलन, अम्लपित्त (एसिडिटी) व सिरदर्द में आराम मिलता है। * सौंफ और मिश्री का समभाग चूर्ण मिलाकर रखें। दो चम्मच मिश्रण दोनों समय भोजन के बाद एक से दो माह तक खाने से मस्तिष्क की कमजोरी दूर होती है तथा जठराग्नि तीव्र होती है। * बच्चों के पेट के रोगों में दो चम्मच सौंफ का चूर्ण दो कप पानी में अच्छी तरह उबाल लें। एक चौथाई पानी शेष रहने पर छानकर ठण्डा कर लें। इसे एक-एक चम्मच की मात्रा में दिन में तीन-चार बार पिलाने से पेट का अफरा, अपच, उलटी (दूध फेंकना), मरोड़ आदि शिकायतें दूर होती हैं। * आधी कच्ची सौंफ का चूर्ण और आधी भुनी सौंफ के चूर्ण में हींग...

गाय के दूध के फायदे

महर्षि चरक के अनुसार -”वयः पथ्यं यथाअमृतं” अर्थात दूध अमृत समान भोजन है | दूध में प्रोटीन, कार्बोहाईड्रेट,लैक्टोज [ दुग्ध शर्करा ] खनिज लवण, वसा एवं विटामिन ए.बी. सी.डी. व् ई. विद्यमान होने के कारण यह शारीर निर्माण, संरक्षण एवं पोषण हेतु अमृत तुल्य है | धारोष्ण दूध :- धारोष्ण दूध का अर्थ है – स्तनों से तुरंत निकला हुआ दूध | वास्तव में धारोष्ण दूध का सेवन परम उपयोगी होता है क्योंकि सामान्यतः वायु, पृथ्वी, अग्नि, आकाश के स्पर्श या फिर थोड़ी -थोड़ी देर में पीने से दूध का अधिकांश गुण नष्ट हो जाता है | नियम तो यह है कि दूध पिलाने एवं पीने वाले के शरीर का तापमान समान होना चाहिए | छोटे बच्चों के लिए माँ का दूध इसीलिए सर्वोत्तम आहार कहा गया है क्योंकि बच्चे दूध को माँ के स्तन में मुंह लगाकर उसमें बिना हवा लगे प्राकृतिक रूप से ग्रहण करते हैं | दुग्ध कल्प :- प्राकृतिक चिकित्सा में अधिकांशतः देशी गाय जो शुद्ध प्राकृतिक आहार करती हो उसके दूध से “कल्प” कराया जाता है | ह्रदय से सम्बंधित कुछ रोगों को छोडकर कोई भी रोग ऐसा नहीं है जो “दुग्ध कल्प” से न मिट सके, परन्तु यह कल्प किसा प्राकृतिक चि...

तुलसी के बीज का महत्त्व

तुलसी के बीज का महत्त्व जब भी तुलसी में खूब फुल यानी मंजिरी लग जाए तो उन्हें पकने पर तोड़ लेना चाहिए वरना तुलसी के झाड में चीटियाँ और कीड़ें लग जाते है और उसे समाप्त कर देते है . इन पकी हुई मंजिरियों को रख ले . इनमे से काले काले बीज अलग होंगे उसे एकत्र कर ले . यही सब्जा है . अगर आपके घर में नही है तो बाजार में पंसारी या आयुर्वैदिक दवाईयो की दुकान पर मिल जाएंगे शीघ्र पतन एवं वीर्य की कमी:: तुलसी के बीज 5 ग्राम रोजाना रात को गर्म दूध के साथ लेने से समस्या दूर होती है नपुंसकता:: तुलसी के बीज 5 ग्राम रोजाना रात को गर्म दूध के साथ लेने से नपुंसकता दूर होती है और यौन-शक्ति में बढोतरि होती है। मासिक धर्म में अनियमियता:: जिस दिन मासिक आए उस दिन से जब तक मासिक रहे उस दिन तक तुलसी के बीज 5-5 ग्राम सुबह और शाम पानी या दूध के साथ लेने से मासिक की समस्या ठीक होती है और जिन महिलाओ को गर्भधारण में समस्या है वो भी ठीक होती है तुलसी के पत्ते गर्म तासीर के होते है पर सब्जा शीतल होता है . इसे फालूदा में इस्तेमाल किया जाता है . इसे भिगाने से यह जेली की तरह फुल जाता है . इसे हम दूध या लस्सी...

गुड के फायदे

गुड के औषधीय गुण गुड़ गन्ने से तैयार एक शुद्ध, अपरिष्कृत पूरी चीनी है। यह खनिज और विटामिन है जो मूल रूप से गन्ने के रस में ही मौजूद हैं। यह प्राकृतिक होता है। पर लिए ज़रूरी है की देशी गुड लिया जाए , जिसके रंग साफ़ करने में सोडा या अन्य केमिकल ना हो। यह थोड़े गहरे रंग का होगा।इसे चीनी का शुद्धतम रूप माना जाता है। गुड़ का उपयोग मूलतः दक्षिण एशिया मे किया जाता है। भारत के ग्रामीण इलाकों मे गुड़ का उपयोग चीनी के स्थान पर किया जाता है। गुड़ लोहतत्व का एक प्रमुख स्रोत है और रक्ताल्पता (एनीमिया) के शिकार व्यक्ति को चीनी के स्थान पर इसके सेवन की सलाह दी जाती है। आयुर्वेदिक चिकित्सा के अनुसार गुड़ का उपभोग गले और फेफड़ों के संक्रमण के उपचार में लाभदायक होता है। - देशी गुड़ प्राकृतिक रुप से तैयार किया जाता है तथा कोई रसायन इसके प्रसंस्करण के लिए उपयोग नहीं किया जाता है, जिससे इसे अपने मूल गुण को नहीं खोना पड़ता है, इसलिए यह लवण जैसे महत्वपूर्ण खनिज से युक्त होता है। - गुड़ सुक्रोज और ग्लूकोज जो शरीर के स्वस्थ संचालन के लिए आवश्यक खनिज और विटामिन का एक अच्छा स्रोत है। - गुड़ मैग्नीशियम...

आंवले के प्रयोग

आंवले के प्रयोग  वमन (उल्टी) : -* हिचकी तथा उल्टी में आंवले का 10-20 मिलीलीटर रस, 5-10 ग्राम मिश्री मिलाकर देने से आराम होता है। इसे दिन में 2-3 बार लेना चाहिए। केवल इसका चूर्ण 10-50 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ भी दिया जा सकता है। * त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) से पैदा होने वाली उल्टी में आंवला तथा अंगूर को पीसकर 40 ग्राम खांड, 40 ग्राम शहद और 150 ग्राम जल मिलाकर कपड़े से छानकर पीना चाहिए। * आंवले के 20 ग्राम रस में एक चम्मच मधु और 10 ग्राम सफेद चंदन का चूर्ण मिलाकर पिलाने से वमन (उल्टी) बंद होती है। * आंवले के रस में पिप्पली का बारीक चूर्ण और थोड़ा सा शहद मिलाकर चाटने से उल्टी आने के रोग में लाभ होता है। * आंवला और चंदन का चूर्ण बराबर मात्रा में लेकर 1-1 चम्मच चूर्ण दिन में 3 बार शक्कर और शहद के साथ चाटने से गर्मी की वजह से होने वाली उल्टी बंद हो जाती है। * आंवले का फल खाने या उसके पेड़ की छाल और पत्तों के काढ़े को 40 ग्राम सुबह और शाम पीने से गर्मी की उल्टी और दस्त बंद हो जाते हैं। * आंवले के रस में शहद और 10 ग्राम सफेद चंदन का बुरादा मिलाकर चाटने से उल्टी आना बंद...

लौंग के फायदे

चाहे भोजन का जायका बढ़ाना हो या फिर दर्द से छुटकारा, छोटी सी लौंग को न सिर्फ अलग-अलग तरीकों से इस्तेमाल किया जा सकता है बल्कि इसके फायदे भी अनेक हैं। साधारण से सर्दी-जुकाम से लेकर कैंसर जैसे गंभीर रोग के उपचार में लौंग का इस्तेमाल किया जाता है। इसके गुण कुछ ऐसे हैं कि न सिर्फ आयुर्वेद बल्कि होम्योपैथ व एलोपैथ जैसी चिकित्सा विधाओं में भी बहुत अधिक महत्व आंका जाता है। भोजन में फायदेमंद मसाले के रूप में लौंग का इस्तेमाल शरीर के लिए बहुत फायदेमंद है। इसमें प्रोटीम, आयरन, कार्बोहाइड्रेट्स, कैल्शियम, फॉस्फोरस, पोटैशियम, सोडियम और हाइड्रोक्लोरिक एसिड भरपूर मात्रा में मिलते हैं। इसमें विटामिन ए और सी, मैग्नीज और फाइबर भी पाया जाता है। दर्दनाशक गुण लौंग एक बेहतरीन नैचुरल पेनकिलर है। इसमें मौजूद यूजेनॉल ऑयल दांतों के दर्द से आराम दिलाने में बहुत लाभदायक है। दांतो में कितना भी दर्द क्यों न हो, लौंग के तेल को उनपर लगाने से दर्द छूमंतर हो जाता है। इसमें एंटीबैक्टीरियल विशेषता होती है जिस वजह से अब इसका इस्तेमाल कई तरह के टूथपेस्ट, माउथवाश और क्रीम बनाने में किया जाता है। गठिया में आराम ...

पपीते का फायदा

पपीता एक ऐसा मधुर फल है जो सस्ता एवं सर्वत्र सुलभ है। यह फल प्राय: बारहों मास पाया जाता है। किन्तु फरवरी से मार्च तथा मई से अक्तूबर के बीच का समय पपीते की ऋतु मानी जाती है। कच्चे पपीते में विटामिन ‘ए’ तथा पके पपीते में विटामिन ‘सी’ की मात्रा भरपूर पायी जाती है। आयुर्वेद में पपीता (पपाया) को अनेक असाध्य रोगों को दूर करने वाला बताया गया है। संग्रहणी, आमाजीर्ण, मन्दाग्नि, पाण्डुरोग (पीलिया), प्लीहा वृध्दि, बन्ध्यत्व को दूर करने वाला, हृदय के लिए उपयोगी, रक्त के जमाव में उपयोगी होने के कारण पपीते का महत्व हमारे जीवन के लिए बहुत अधिक हो जाता है। पपीते के सेवन से चेहरे पर झुर्रियां पड़ना, बालों का झड़ना, कब्ज, पेट के कीड़े, वीर्यक्षय, स्कर्वी रोग, बवासीर, चर्मरोग, उच्च रक्तचाप, अनियमित मासिक धर्म आदि अनेक बीमारियां दूर हो जाती है। पपीते में कैल्शियम, फास्फोरस, लौह तत्व, विटामिन- ए, बी, सी, डी प्रोटीन, कार्बोज, खनिज आदि अनेक तत्व एक साथ हो जाते हैं। पपीते का बीमारी के अनुसार प्रयोग निम्नानुसार किया जा सकता है। १) पपीते में ‘कारपेन या कार्पेइन’ नामक एक क्षारीय तत्व होता है जो रक्त चाप क...

सोंठ के फायदे

सौंठ में अदरक के सारे गुण मौजूद होते हैं। सौंठ दुनिया की सर्वश्रेष्ठवातनाशक औषधि है. आम का रस पेट में गैस न करें इसलिए उसमें सौंठ और घी डाला जाता है। सौंठ में उदरवातहर (वायुनाशक) गुण होने से यह विरेचन औषधियों के साथ मिलाई जाती है। यह शरीर में समत्व स्थापित कर जीवनी शक्ति और रोग प्रतिरोधक सामर्थ्य को बढ़ाती है । बहुधा सौंठ तैयार करने से पूर्व अदरख को छीलकर सुखा लिया जाता है । परंतु उस छीलन में सर्वाधिक उपयोगी तेल (इसेन्शयल ऑइल) होता है, छिली सौंठ इसी कारण औषधीय गुणवत्ता की दृष्टि से घटिया मानी जाती है । वेल्थ ऑफ इण्डिया ग्रंथ के विद्वान् लेखक गणों का अभिमत है कि अदरक को स्वाभाविक रूप में सुखाकर ही सौंठ की तरह प्रयुक्त करना चाहिए । तेज धूप में सुखाई गई अदरक उस सौंठ से अधिक गुणकारी है जो बंद स्थान में कृत्रिम गर्मी से सुखाकर तैयार की जाती है । गर्म प्रकृति वाले लोगो के लिए सौंठ अनुकूल नहीं है. - भोजन से पहले अदरक को चिप्स की तरह बारीक कतर लें। इन चिप्स पर पिसा काला नमक बुरक कर खूब चबा-चबाकर खा लें फिर भोजन करें। इससे अपच दूर होती है, पेट हलका रहता है और भूख खुलती है। - सौंठ और उड़द...

बवासीर का इलाज

बवासीर या हैमरॉइड से अधिकतर लोग पीड़ित रहते हैं। इस बीमारी के होने का प्रमुख कारण अनियमित दिनचर्या और खान-पान है। बवासीर में होने वाला दर्द असहनीय होता है। बवासीर मलाशय के आसपास की नसों की सूजन के कारण विकसित होता है। बवासीर दो तरह की होती है, अंदरूनी और बाहरी। अंदरूनी बवासीर में नसों की सूजन दिखती नहीं पर महसूस होती है, जबकि बाहरी बवासीर में यह सूजन गुदा के बिलकुल बाहर दिखती है। बवासीर के आयुर्वेदिक उपचार डेढ़-दो कागज़ी नींबू अनिमा के साधन से गुदा में लें। 10-15 मिनट के अंतराल के बाद थोड़ी देर में इसे लेते रहिए उसके बाद शौच जायें। यह प्रयोग 4-5 दिन में एक बार करें। इसे 3 बार प्रयोग करने से बवासीर में लाभ होता है । हरड या बाल हरड का प्रतिदिन सेवन करने से आराम मिलता है। अर्श (बवासीर) पर अरंडी का तेल लगाने से फायदा होता है। नीम का तेल मस्सों पर लगाइए और इस तेली की 4-5 बूंद रोज़ पीने से बवासीर में लाभ होता है। करीब दो लीटर मट्ठा लेकर उसमे 50 ग्राम पिसा हुआ जीरा और थोडा नमक मिला दें। जब भी प्यास लगे तब पानी की जगह यह छांछ पियें। चार दिन तक यह प्रयोग करेने से मस्सा ठीक हो जाता है। ...

जीरे का फायदा

जीरा एक ऐसा मसाला है जिसके छौंक से दाल और सब्जियों का स्वाद बहुत बढ़ जाता है। चाट का चटपटा स्वाद भी जीरे के बिना अधूरा सा लगता है। अंग्रेजी में इसे क्यूमिन कहा जाता है। इसका वानस्पतिक नाम क्यूमिनम सायमिनम है। यह पियेशी परिवार का एक पुष्पीय पौधा है। मुख्यत: पूर्वी भूमध्य सागर से लेकर भारत तक इसकी पैदावार अधिक होती है। दिखने में सौंफ के आकार का दिखाई देने वाला जीरा सिर्फ खाने का स्वाद ही नहीं बढ़ाता यह बहुत उपयोगी भी है। यही कारण है कि कई रोगों में दवा के रूप में भी जीरे का उपयोग किया जा सकता है। आइए देखते हैं घरेलू नुस्खे के रूप में किन रोगों के उपचार के लिए जीरा उपयोगी है...... - जीरा आयरन का सबसे अच्छा स्रोत है। इसे नियमित रूप से खाने से खून की कमी दूर हो जाती है। गर्भवती महिलाओं के लिए जीरा अमृत का काम करता है। - जीरा, अजवाइन, सौंठ, कालीमिर्च, और काला नमक अंदाज से लेकर इसमें घी में भूनी हींग कम मात्रा में मिलाकर खाने से पाचन शक्ति बढ़ती है। पेट का दर्द ठीक हो जाता है। - जीरा, अजवाइन और काला नमक का चूर्ण बनाकर रोजाना एक चम्मच खाने से तेज भूख लगती है। - 3 ग्राम जीरा और 12...

नींबू के फायदे

नींबू को विटामिन ''सी'' का सबसे अच्छा स्त्रोत व स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक माना जाता है। विशेषकर पेट से संबंधित समस्याओं के लिए नींबू का प्रयोग अनेक तरीकों से किया जाता है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं नींबू के ऐसे ही कुछ प्रयोगों के बारे में जिनसे आप कई छोटी-मोटी स्वास्थ्य समस्याओं से निजात पा सकते हैं। - नींबू की शिकंजी, चीनी के बजाय सेंधा नमक डालकर पिएं कब्ज दूर हो जाएगी। स्कर्वी रोग में नींबू कारगर है एक भाग नींबू का रस और आठ भाग पानी मिलाकर रोजाना दिन में एक बार लें। नींबू के रस में थोड़ी शकर मिलाकर इसे गर्म कर सिरप जैसा बना लें। फिर इसमें थोड़ा पानी मिलाकर पीएं पित्त के लिए यह अचूक औषधि है। - आधे नींबू का रस और दो चम्मच शहद मिलाकर चाटने से तेज खांसी व जुकाम में लाभ होता है। - नींबू से हृदय की असामान्य धड़कन सामान्य हो जाती है। - उच्च रक्तचाप के रोगियों की रक्तवाहिनियों को यह शक्ति देता है। - एक नींबू के रस में तीन चम्मच शकर, दो चम्मच पानी घोलकर बालों की जड़ों में लगाकर एक घंटे बाद अच्छे से सिर धोने से रूसी दूर हो जाती है और बाल गिरना बंद हो जाते हैं। ...

मूली और उसके फायदे

पौष्टिक गुणों से मालामाल मूली औक्सिका मैक्सिको में क्रिसमस की पूर्व संध्या को मूली संध्या के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन मूली को विभिन्न पशुओं के आकार में काट कर सजाया जाता है। अमरीकी ४०० मिलियन पाउन्ड मूली प्रतिवर्ष खा कर खतम कर देते हैं। इसमें से अधिकतर का प्रयोग सलाद के रूप में होता है। प्राचीनकाल में जैतून के तेल के आविष्कार होने से पहले, मिस्र के लोग मूली के बीजों का तेल प्रयोग में लाते थे। हार्स रैडिश या घोड़ा मूली, मूली नहीं बल्कि सरसों की जाति का तीखा सुगंध वाला पौधा है। मूली कृषक सभ्यता के सबसे प्राचीन आविष्कारों में से एक है। ३००० वर्षो से भी पहले के चीनी इतिहास में इसका उल्लेख मिलता है। अत्यंत प्राचीन चीन और यूनानी व्यंजनों में इसका प्रयोग होता था और इसे भूख बढ़ाने वाली समझा जाता था। यूरोप के अनेक देशों में भोजन से पहले इसको परोसने परंपरा का उल्लेख मिलता है। मूली शब्द संस्कृत के 'मूल' शब्द से बना है। आयुर्वेद में इसे मूलक नाम से, स्वास्थ्य का मूल (अत्यंत महत्वपूर्ण) बताया गया है। आजकल हम लोग अस्पतालों तथा अंग्रेज़ी दवाइयों की दुनिया में इतने खो गए क...

चैतन्य महाप्रभु

चैतन्य महाप्रभु का जन्म सन 18 फ़रवरी सन 1486 की फाल्गुन, शुक्लपक्ष, पूर्णिमा को पश्चिम बंगाल के नवद्वीप (नादिया) नामक उस गांव में हुआ, जिसे अब 'मायापुर' कहा जाता है। बाल्यावस्था में इनका नाम विश्वंभर था, परंतु सभी इन्हें 'निमाई' कहकर पुकारते थे। गौरवर्ण का होने के कारण लोग इन्हें 'गौरांग', 'गौर हरि', 'गौर सुंदर' आदि भी कहते थे। चैतन्य महाप्रभु के द्वारा गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय की आधारशिला रखी गई। उनके द्वारा प्रारंभ किए गए महामन्त्र 'नाम संकीर्तन' का अत्यंत व्यापक व सकारात्मक प्रभाव आज पश्चिमी जगत तक में है। कवि कर्णपुर कृत 'चैतन्य चंद्रोदय' के अनुसार इन्होंने केशव भारती नामक सन्न्यासी से दीक्षा ली थी। कुछ लोग माधवेन्द्र पुरी को इनका दीक्षा गुरु मानते हैं। इनके पिता का नाम जगन्नाथ मिश्र व मां का नाम शचि देवी था। जन्म काल चैतन्य के जन्मकाल के कुछ पहले सुबुद्धि राय गौड़ के शासक थे। उनके यहाँ अलाउद्दीन हुसैनशाह नामक एक पठान नौकर था। राजा सुबुद्धिराय ने किसी राजकाज को सम्पादित करने के लिए उसे रुपया दिया। हुसैन...
श्रीश्यामासुन्दर के 64 गुण (रूप गोस्वामी जी) प्रभु के अनन्त गुण है । यह उनके लीला प्रधान गुण है । ↑ सुरम्‍यांग: - अर्थात भगवान के अवयवों की रचना बड़ी सुन्‍दर है। ↑ सर्वसल्‍लक्षणान्वित: - अर्थात भगवान समस्‍त शुभ लक्षणों से युक्‍त है। ↑ रुचिर : - अर्थात भगवान अपने शरीर की कान्ति से दर्शकों के नेत्रों को आनन्‍द देने वाले है। ↑ तेजसायुक्‍त: - अर्थात भगवान का विग्रह प्रकाश-पुंज से परिवेष्टित है। ↑ बलीयान् - अर्थात भगवान महती प्राणाशक्ति से समन्वित है। ↑ वयसान्वित : - अर्थात भगवान सर्वदा किशोरावस्‍थापन्‍न ही रहते है। ↑ विविधाद्भुतभाषावित् - अर्थात भगवान अनेक अद्भुत भाषाओं का ज्ञान रखते है। ↑ सत्‍वाक्‍य : - अर्थात भगवान कभी झूठ नहीं बोलते है। ↑ प्रियंवद : - अर्थात भगवान अपराधी से भी मधुर वचन बोलते है। ↑ वावदूक : - अर्थात भगवान वक्‍तृत्‍व कला में बड़े निपुण है। ↑ सुपाण्डित्‍य : - अर्थात भगवान चौदहों विद्याओं के निधान एवं नीति विचक्षण है। ↑ बुद्धिमान् - अर्थात भगवान मेधावी (अद्भुत धारणा शक्ति सम्‍पन्‍न) और सूक्ष्‍म बुद्धियुक्‍त है। ↑ प्रतिभान्वित: - अर्थात भगवान प्रतिभा (चमत...

।। श्री राजराजेश्वरी अष्टकम् ।।

।। श्री राजराजेश्वरी अष्टकम् ।। अम्बा शाँभवि चन्द्रमौलि रमलाऽपर्णा उमा पार्वती काली हैमवती शिवा त्रिनयनी कात्यायनी भैरवी । सावित्री नवयौवना शुभकरी साम्राज्य लक्ष्मीप्रदा चिद्रूपी परदेवता भगवती श्री राजराजेश्वरी ।। अम्बा मोहिनी देवता त्रिभुवनी आनन्द सन्दायिनी वाणी पल्लव पाणि वेणु मुरली गानप्रिया लोलिनी । कल्याणी उडुराजबिंब वदना धूम्राक्ष संहारिणी चिद्रूपी परदेवता भगवती श्री राजराजेश्वरी ।। अम्बा नूपुर रत्न कंकणधरी केयूर हारावली जाती चंपक वैजयन्ति लहरी ग्रैवेयकै राजिता । वीणा वेणु विनोद मण्डित करा वीरासने संस्थिता चिद्रूपी परदेवता भगवती श्री राजराजेश्वरी ।। अम्बा रौद्रिणि भद्रकालि बगला ज्वालामुखी वैष्णवी ब्रह्माणी त्रिपुरान्तकी सुरनुता देदीप्यमानोज्वला । चामुण्डा श्रितरक्ष पोष जननी दाक्षायणी वल्लवी चिद्रूपी परदेवता भगवती श्री राजराजेश्वरी ।। अम्बा शूल धनु: कशाँकु़शधरी अर्धेन्दु बिम्बाधरी वाराही मधुकैटभ प्रशमनी वाणी रमा सेविता । मल्लाद्यासुर मूकदैत्य मथनी माहेश्वरी चाम्बिका चिद्रूपी परदेवता भगवती श्री राजराजेश्वरी ।। अम्बा सृष्टिविनाश पालनकरी आर्या विसंशोभिता गायत्री ...