सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

।। श्री राजराजेश्वरी अष्टकम् ।।

।। श्री राजराजेश्वरी अष्टकम् ।।


अम्बा शाँभवि चन्द्रमौलि रमलाऽपर्णा उमा पार्वती काली हैमवती शिवा त्रिनयनी कात्यायनी भैरवी ।
सावित्री नवयौवना शुभकरी साम्राज्य लक्ष्मीप्रदा चिद्रूपी परदेवता भगवती श्री राजराजेश्वरी ।।

अम्बा मोहिनी देवता त्रिभुवनी आनन्द सन्दायिनी वाणी पल्लव पाणि वेणु मुरली गानप्रिया लोलिनी ।
कल्याणी उडुराजबिंब वदना धूम्राक्ष संहारिणी चिद्रूपी परदेवता भगवती श्री राजराजेश्वरी ।।

अम्बा नूपुर रत्न कंकणधरी केयूर हारावली जाती चंपक वैजयन्ति लहरी ग्रैवेयकै राजिता ।
वीणा वेणु विनोद मण्डित करा वीरासने संस्थिता चिद्रूपी परदेवता भगवती श्री राजराजेश्वरी ।।

अम्बा रौद्रिणि भद्रकालि बगला ज्वालामुखी वैष्णवी ब्रह्माणी त्रिपुरान्तकी सुरनुता देदीप्यमानोज्वला ।
चामुण्डा श्रितरक्ष पोष जननी दाक्षायणी वल्लवी चिद्रूपी परदेवता भगवती श्री राजराजेश्वरी ।।

अम्बा शूल धनु: कशाँकु़शधरी अर्धेन्दु बिम्बाधरी वाराही मधुकैटभ प्रशमनी वाणी रमा सेविता ।
मल्लाद्यासुर मूकदैत्य मथनी माहेश्वरी चाम्बिका चिद्रूपी परदेवता भगवती श्री राजराजेश्वरी ।।

अम्बा सृष्टिविनाश पालनकरी आर्या विसंशोभिता गायत्री प्रणवाक्षरामृतरस: पूर्णनुसन्धी कृता ।
ओंकारी विनतासुतार्चित पदा उद्दण्ड दैत्यापहा चिद्रूपी परदेवता भगवती श्री राजराजेश्वरी ।।

अम्बा शाश्वत आगमादि विनुता आर्या महादेवता या ब्रह्मादि पिपलिकान्त जननी या वै जगन्मोहिनी ।
या पन्चप्रणवादि रेफजननी या चित्कला मालिनी चिद्रूपी परदेवता भगवती श्री राजराजेश्वरी ।।

अम्बा पालित भक्तराजमनिशं अम्बाष्टकमं य: पठेत अम्बा लोल कटाक्षवीक्ष ललितं चैश्वर्यमव्याहतम् ।
अम्बा पावन मन्त्र राज पठनात् अन्ते च मोक्षप्रदा चिद्रूपी परदेवता भगवती श्री राजराजेश्वरी ।।

       ।। माँ हो भगवती ।।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पिशाच भाष्य

पिशाच भाष्य  पिशाच के द्वारा लिखे गए भाष्य को पिशाच भाष्य कहते है , अब यह पिशाच है कौन ? तो यह पिशाच है हनुमानजी तो हनुमानजी कैसे हो गये पिशाच ? जबकि भुत पिशाच निकट नहीं आवे ...तो भीमसेन को जो वरदान दिया था हनुमानजी ने महाभारत के अनुसार और भगवान् राम ही कृष्ण बनकर आए थे तो अर्जुन के ध्वज पर हनुमानजी का चित्र था वहाँ से किलकारी भी मारते थे हनुमानजी कपि ध्वज कहा गया है या नहीं और भगवान् वहां सारथि का काम कर रहे थे तब गीता भगवान् ने सुना दी तो हनुमानजी ने कहा महाराज आपकी कृपा से मैंने भी गीता सुन ली भगवान् ने कहा कहाँ पर बैठकर सुनी तो कहा ऊपर ध्वज पर बैठकर तो वक्ता नीचे श्रोता ऊपर कहा - जा पिशाच हो जा हनुमानजी ने कहा लोग तो मेरा नाम लेकर भुत पिशाच को भगाते है आपने मुझे ही पिशाच होने का शाप दे दिया भगवान् ने कहा - तूने भूल की ऊपर बैठकर गीता सुनी अब इस पर जब तू भाष्य लिखेगा तो पिशाच योनी से मुक्त हो जाएगा तो हमलोगों की परंपरा में जो आठ टिकाए है संस्कृत में उनमे एक पिशाच भाष्य भी है !

मनुष्य को किस किस अवस्थाओं में भगवान विष्णु को किस किस नाम से स्मरण करना चाहिए।?

 मनुष्य को किस किस अवस्थाओं में भगवान विष्णु को किस किस नाम से स्मरण करना चाहिए। 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️ भगवान विष्णु के 16 नामों का एक छोटा श्लोक प्रस्तुत है। औषधे चिंतयते विष्णुं, भोजन च जनार्दनम। शयने पद्मनाभं च विवाहे च प्रजापतिं ॥ युद्धे चक्रधरं देवं प्रवासे च त्रिविक्रमं। नारायणं तनु त्यागे श्रीधरं प्रिय संगमे ॥ दुःस्वप्ने स्मर गोविन्दं संकटे मधुसूदनम् । कानने नारसिंहं च पावके जलशायिनाम ॥ जल मध्ये वराहं च पर्वते रघुनन्दनम् । गमने वामनं चैव सर्व कार्येषु माधवम् ॥ षोडश एतानि नामानि प्रातरुत्थाय य: पठेत ।  सर्व पाप विनिर्मुक्ते, विष्णुलोके महियते ॥ (1) औषधि लेते समय विष्णु (2) भोजन के समय - जनार्दन (3) शयन करते समय - पद्मनाभ   (4) विवाह के समय - प्रजापति (5) युद्ध के समय चक्रधर (6) यात्रा के समय त्रिविक्रम (7) शरीर त्यागते समय - नारायण (8) पत्नी के साथ - श्रीधर (9) नींद में बुरे स्वप्न आते समय - गोविंद  (10) संकट के समय - मधुसूदन  (11) जंगल में संकट के समय - नृसिंह (12) अग्नि के संकट के समय जलाशयी  (13) जल में संकट के समय - वाराह (14) पहाड़ पर ...

कार्तिक माहात्म्य (स्कनदपुराण के अनुसार)

 *कार्तिक माहात्म्य (स्कनदपुराण के अनुसार) अध्याय – ०३:--* *(कार्तिक व्रत एवं नियम)* *(१) ब्रह्मा जी कहते हैं - व्रत करने वाले पुरुष को उचित है कि वह सदा एक पहर रात बाकी रहते ही सोकर उठ जाय।*  *(२) फिर नाना प्रकार के स्तोत्रों द्वारा भगवान् विष्णु की स्तुति करके दिन के कार्य का विचार करे।*  *(३) गाँव से नैर्ऋत्य कोण में जाकर विधिपूर्वक मल-मूत्र का त्याग करे। यज्ञोपवीत को दाहिने कान पर रखकर उत्तराभिमुख होकर बैठे।*  *(४) पृथ्वी पर तिनका बिछा दे और अपने मस्तक को वस्त्र से भलीभाँति ढक ले,*  *(५) मुख पर भी वस्त्र लपेट ले, अकेला रहे तथा साथ जल से भरा हुआ पात्र रखे।*  *(६) इस प्रकार दिन में मल-मूत्र का त्याग करे।*  *(७) यदि रात में करना हो तो दक्षिण दिशा की ओर मुँह करके बैठे।*  *(८) मलत्याग के पश्चात् गुदा में पाँच (५) या सात (७) बार मिट्टी लगाकर धोवे, बायें हाथ में दस (१०) बार मिट्टी लगावे, फिर दोनों हाथों में सात (७) बार और दोनों पैरों में तीन (३) बार मिट्टी लगानी चाहिये। - यह गृहस्थ के लिये शौच का नियम बताया गया है।*  *(९) ब्रह्मचारी के लिये, इसस...