रविवार, 3 सितंबर 2017

सुरभी गाय

                         सुरभी गाय


एक बार देवर्षि नारद जी के पूछने पर भगवान नारायण ने उन्हें बतलाया कि गौओ कि अधिष्ठात्री आदि जननी सुरभि गौलोक में प्रकट हुई वह गौओ की अधिष्ठात्री देवी और सम्पूर्ण गौओ में प्रमुख थी भगवान ने कहा - नारद !गौओ से प्रथम वृंदावन में उन सुरभि का ही जन्म हुआ है मै अब आपको  उनका चरित्र कहता हूँ -
एक समय की बात है - राधापति भगवान कृष्ण श्री राधा के साथ गोपागनाओ से घिरे हुए पुण्य वृंदावन में गए और कौतुकवश थक जाने के बहाने सहसा किसी एकांत स्थान में बैठ गए और उन प्रभु के मन में दूध पीने की इच्छा हो गई .
उसी क्षण उन्होंने अपने वामभाग से लीलापूर्वक'सुरभि गौ'को प्रकट कर दिया उस गौ के साथ बछड़ा था सुरभि के थनो में दूध भरा था उसके बछड़े का नाम'मनोरथ'था उस सवत्सा गौ को सामने देखकर श्रीदामा ने पात्र में उसका दूध दुहा वह दूध जन्म और मृत्यु को दूर करने वाला एक अमृत ही था भगवान श्री कृष्ण ने उस स्वादिष्ट दूध पिया फिर हाथ से वह भांड गिरकर फूटा और दूध धरती पर फ़ैल गया.
गिरते ही वह सरोवर के रूप में परिणित हो गया उसके चारो ओर की लम्बाई ओर चौड़ाई सौ सौ योजन थी वही यह सरोवर गौ लोक में क्षीर सरोवर नाम से प्रसिद्ध है गोपिकाओ और राधा जी के लिए वह क्रीडा सरोवर बन गया.
भगवान श्रीकृष्ण की इच्छा से उसी समय अकस्मात असंख्य कामधेनु गौए प्रकट हो गई जितनी वे गौएँ थी उतने ही गोप भी उस सुरभि गौ के रोम कूप से निकल आये फिर उन गौओ से बहुत सी संताने हुई जिनकी संख्या नहीं की जा सकती इस प्रकार उन सुरभि देवी से गौओ की स्रष्टि कही जाती है जिससे जगत व्याप्त है.
उस समय भगवान श्री कृष्ण ने देवी सुरभि की पूजा की थी और त्रिलोकी में उस देवी की दुर्लभ पूजा का प्रचार हो गया दीपावली के दूसरे दिन भगवान श्री कृष्ण की आज्ञा से देवी सुरभि की पूजा संपन्न हुई थी.
"जय जय श्री राधे"

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

If u have any query let me know.

कुंभ महापर्व

 शास्त्रोंमें कुंभमहापर्व जिस समय और जिन स्थानोंमें कहे गए हैं उनका विवरण निम्नलिखित लेखमें है। इन स्थानों और इन समयोंके अतिरिक्त वृंदावनमें...