पौष्टिक गुणों से मालामाल मूली
औक्सिका मैक्सिको में क्रिसमस की पूर्व संध्या को मूली संध्या के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन मूली को विभिन्न पशुओं के आकार में काट कर सजाया जाता है।
अमरीकी ४०० मिलियन पाउन्ड मूली प्रतिवर्ष खा कर खतम कर देते हैं। इसमें से अधिकतर का प्रयोग सलाद के रूप में होता है।
प्राचीनकाल में जैतून के तेल के आविष्कार होने से पहले, मिस्र के लोग मूली के बीजों का तेल प्रयोग में लाते थे।
हार्स रैडिश या घोड़ा मूली, मूली नहीं बल्कि सरसों की जाति का तीखा सुगंध वाला पौधा है।
मूली कृषक सभ्यता के सबसे प्राचीन आविष्कारों में से एक है। ३००० वर्षो से भी पहले के चीनी इतिहास में इसका उल्लेख मिलता है। अत्यंत प्राचीन चीन और यूनानी व्यंजनों में इसका प्रयोग होता था और इसे भूख बढ़ाने वाली समझा जाता था। यूरोप के अनेक देशों में भोजन से पहले इसको परोसने परंपरा का उल्लेख मिलता है। मूली शब्द संस्कृत के 'मूल' शब्द से बना है। आयुर्वेद में इसे मूलक नाम से, स्वास्थ्य का मूल (अत्यंत महत्वपूर्ण) बताया गया है।
आजकल हम लोग अस्पतालों तथा अंग्रेज़ी दवाइयों की दुनिया में इतने खो गए कि उन्हें अपने आसपास उपलब्ध होने वाली, उन शाक-सब्ज़ियों की तरफ़ ध्यान देने का समय ही नहीं मिलता, जो बिना किसी हानि के हमारी अनेक बीमारियों को निर्मूल करने में सक्षम हैं। प्रकृति हमारे लिए शीत ऋतु में इस प्रकार की शाक-सब्ज़ियाँ उदारतापूर्वक उत्पन्न करती है। इन्हीं में से एक है 'मूली'।
मूली में प्रोटीन, कैल्शियम, गन्धक, आयोडीन तथा लौह तत्व पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होते हैं। इसमें सोडियम, फॉस्फोरस, क्लोरीन तथा मैग्नीशियम भी होता है। मूली में विटामिन 'ए' भी होता है। विटामिन 'बी' और 'सी' भी इससे प्राप्त होते हैं। जिसे हम मूली के रूप में जानते हैं, वह धरती के नीचे पौधे की जड होती हैं। धरती के ऊपर रहने वाले पत्ते से भी अधिक पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं। सामान्यत: हम मूली को खाकर उसके पत्तों को फेंक देते हैं। यह गलत आदत हैं। मूली के साथ ही उसके पत्तों का सेवन भी किया जाना चाहिए। इसी प्रकार मूली के पौधे में आने वाली फलियाँ 'मोगर' भी समान रूप से उपयोगी और स्वास्थ्यवर्धक है। सामान्यत: लोग मोटी मूली पसन्द करते हैं। कारण उसका अधिक स्वादिष्ट होना है, मगर स्वास्थ्य तथा उपचार की दृष्टि से छोटी, पतली और चरपरी मूली ही उपयोगी है। ऐसी मूली त्रिदोष (वात, पित्त और कफ) नाशक है। इसके विपरीत मोटी और पकी मूली त्रिदोष कारक मानी जाती है।
१०० ग्राम मूली में अनुमानित निम्न तत्व हैं : प्रोटीन - ०.७ ग्राम, वसा - ०.१ ग्राम, कार्बोहाइड्रेट - ३.४ ग्राम, कैल्शियम - ३५ मि.ग्रा., फॉस्फोरस - २२ मि.ग्रा, लोह तत्व - ०.४ मि.ग्रा., केरोटीन- ३ मा.ग्रा., थायेसिन - ०.०६ मि.ग्रा., रिवोफ्लेविन - ०.०२ मि.ग्रा., नियासिन - ०.५ मि.ग्रा., विटामिन सी - १५ मि.ग्रा.।
अनेक छोटी बड़ी व्याधियाँ मूली से ठीक की जा सकती हैं। मूली का रंग सफेद है, लेकिन यह शरीर को लालिमा प्रदान करती है। भोजन के साथ या भोजन के बाद मूली खाना विशेष रूप से लाभदायक है। मूली और इसके पत्ते भोजन को ठीक प्रकार से पचाने में सहायता करते हैं। वैसे तो मूली के पराठें, रायता, तरकारी, आचार तथा भुजिया जैसे अनेक स्वादिष्ट व्यंजन बनते हैं,मगर सबसे अधिक लाभकारी होती है कच्ची मूली। भोजन के साथ प्रतिदिन एक मूली खा लेने से व्यक्ति अनेक बीमारियों से मुक्त रह सकता है।
मूली, शरीर से विषैली गैस कार्बन-डाई-आक्साइड को निकालकर जीवनदायी आक्सीजन प्रदान करती है। मूली हमारे दाँतों को मज़बूत करती है तथा हडि्डयों को शक्ति प्रदान करती है। इससे व्यक्ति की थकान मिटती है और अच्छी नींद आती है। मूली खाने से पेट के कीड़े नष्ट होते हैं तथा पेट के घाव ठीक होते हैं।
यह उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करती है तथा बवासीर और हृदय रोग को शान्त करती है। इसका ताज़ा रस पीने से मूत्र संबंधी रोगों में राहत मिलती है। पीलिया रोग में भी मूली अत्यंत लाभदायक है। अफारे में मूली के पत्तों का रस विशेष रूप से उपयोगी होता है।
मोटापा अनेक बीमारियाँ की जड़ है। मोटापा कम करने के लिए मूली बहुत लाभदायक है। इसके रस में थोड़ा-सा नमक और नीबू का रस मिलाकर नियमित रूप से पीने से मोटापा कम होता है और शरीर सुडौल बन जाता है। पानी में मूली का रस मिलाकर सिर धोने से जुएँ नष्ट होती हैं। विटामिन 'ए' पर्याप्त मात्रा में होने से मूली का रस नेत्रज्योति बढ़ाने में भी सहायक होता है तथा शरीर के जोड़ों की जकड़न को दूर करता है।
मूली सौन्दर्यवर्धक भी है। इसके प्रतिदिन सेवन से रंग निखरता है, खुश्की दूर होती है, रक्त शुद्ध होता है और चेहरे की झाइयाँ, कील-मुहाँसे आदि साफ़ होते हैं। सर्दी-जुकाम तथा कफ-खाँसी में मूली के बीज का चूर्ण विशेष लाभदायक होता है। मूली के बीजों को उसके पत्तों के रस के साथ पीसकर लेप किया जाए तो अनेक चर्म रोगों से मुक्ति मिल सकती है। मूली के रस में तिल्ली का तेल मिलाकर और उसे हल्का गर्म करके कान में डालने से कर्णनाद, कान का दर्द तथा कान की खुजली ठीक होते हैं। मूली के पत्ते चबाने से हिचकी बन्द हो जाती है।
मूली से अनेक रोगों में भी लाभ मिलता है, एक सप्ताह तक कांजी में डाले रखने तथा उसके बाद उसके सेवन से बढ़ी हुई तिल्ली ठीक होती है और बवासीर का रोग नष्ट हो जाता है। हल्दी के साथ मूली खाने से भी बवासीर में लाभ होता है।
मूली के पत्तों के चार तोला रस में तीन माशा अजमोद का चूर्ण और चार रत्ती जोखार मिलाकर दिन में दो बार एक सप्ताह तक नियमित रूप से लेने पर गुर्दे की पथरी गल जाती है। एक कप मूली के रस में एक चम्मच अदरक का और एक चम्मच नींबू का रस मिलाकर नियमित सेवन से भूख बढ़ती है और पेट संबंधी सभी रोग नष्ट हो जाते हैं।
मूली के रस में समान मात्रा में अनार का रस मिलाकर पीने से रक्त में हीमोग्लोबिन बढ़ता है और रक्ताल्पता का रोग दूर होता है। सूखी मूली का काढ़ा बनाकर, उसमें जीरा और नमक डालकर पीने से खाँसी और दमा में राहत मिलती है।
मूली के औषधीय प्रयोग।
आज हम आपको बताने जा रहे हैं मूली के औषधीय प्रयोग। मूली जितनी स्वाद में बढ़िया हैं उतनी ही ये गुणों में भी बढ़िया हैं। आइये जानते हैं, मूली को विभिन्न रोगो में कैसे प्रयोग करे।
पेशाब के समय जलन व दर्द:
आधा गिलास मूली के रस का सेवन करने से पेशाब के साथ होने वाली जलन और दर्द मिट जाता है।
पेशाब कम बनना:
गुर्दे की खराबी से यदि पेशाब का बनना बंद हो जाए तो मूली का रस 50 मिलीलीटर रोजाना पीने से, पेशाब फिर बनने लगता है।
पेट में दर्द:
1 कप मूली के रस में नमक और मिर्च डालकर सेवन करने से पेट साफ हो जाता है और पेट का दर्द भी दूर हो जाता है।
मूली का लगभग 1 ग्राम के चौथे भाग के रस में आवश्यकतानुसार नमक और 3-4 कालीमिर्च का चूर्ण डालकर 3-4 बार रोगी को पिलाने से पेट के दर्द में लाभ मिलता है।
10 मिलीलीटर मूली का रस, 10 ग्राम यवक्षार, 50 ग्राम हिंग्वाष्टक चूर्ण, 50 ग्राम सोडा बाइकार्बोनेट, 2 ग्राम नौसादर, 10 ग्राम टार्टरी को मिलाकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण 3 ग्राम पानी के साथ खाने से हर प्रकार का पेट का दर्द दूर हो जाता है।
100 मिलीलीटर मूली का रस, 200 ग्राम घीकुंवार का रस, 50 मिलीलीटर अदरक का रस, 20 ग्राम सुहागे का फूल, 20 ग्राम नौसादर ठीकरी, 20 ग्राम पांचों नमक, 10-10 ग्राम चित्रकमूल, भुनी हींग, पीपल मूल, सोंठ, कालीमिर्च, पीपल, भुना जीरा, अजवाइन, लौह भस्म और 150 ग्राम पुराना गुड़। सभी औषधियों को पीसकर चूर्ण बनाकर मूली, घीकुंवार और अदरक के रस में मिलाकर, अमृतबान (एक बर्तन) में भरकर, अमृतबान का मुंह बंद करके 15 दिन धूप में रखें। 15 दिन बाद इसे छानकर बोतल में भर लें, आवश्यकतानुसार इस मिश्रण को 6-10 ग्राम तक लगभग 30 मिलीलीटर पानी में मिलाकर भोजन के बाद सेवन करने से पाण्डु (पीलिया), मंदाग्नि (पाचन क्रिया खराब होना), अजीर्ण (भूख न लगना), आध्यमान, कब्ज और पेट में दर्द आदि पेट से सम्बंधित रोग दूर हो जाते हैं। मासिक-धर्म के कष्ट के साथ आता हो या अनियमित हो तो इस मिश्रण को 2 चाय वाले चम्मच-भर सुबह-शाम 3 सप्ताह तक नियमित रूप से सेवन करना लाभदायक है।
मूली के रस में कालीमिर्च और 1 चुटकी काला नमक मिलाकर खाने से लाभ होता है।
मूली के रस में काला या सेंधानमक मिलाकर प्रयोग करने से पेट की पीड़ा में राहत मिलती है।
मूली की राख, करेला का रस, साण्डे की जड़ का रस, गडतूम्बा का रस को 10-10 ग्राम की मात्रा में मिलाकर रख लें। इस मिश्रण को दिन में 3 बार पीने से पीलिया, मधुमेह (डाइबिटीज), पेट का दर्द, पथरी, औरतों के वायु गोला (औरतों के पेट में गैस का गोला होना), शरीर का मोटापा, गुल्म वायु (पेट में कब्ज के कारण रूकी हुई वायु या गैस) तथा अजीर्ण आदि रोग ठीक हो जाते हैं।
मूली के रस में नींबू का रस और सेंधानमक मिलाकर सेवन करने से वायु विकार (गैस रोग) से उत्पन्न पेट दर्द समाप्त हो जाता है।
हिचकी:
मूली का जूस पीयें। सूखी मूली का काढ़ा 50 से 100 मिलीलीटर तक 1-1 घंटे पर पिलायें।
मूली के कोमल पत्ते चबाकर रस चूसने से हिचकी तुरन्त बंद हो जाती है। मूली का रस हल्का-सा गर्म करके पीने से भी हिचकी बंद हो जाती है।
मधुमेह (डायबिटिज):
मूली खाने से या इसका रस पीने से मधुमेह (डायबिटीज) में लाभ होता है।
आधी मूली का रस दोपहर के समय मधुमेह (डायबिटीज) के रोगी को देने से लाभ होता है।
पीलिया (कामला, पाण्डु):
एक कच्ची मूली रोजाना सुबह सोकर उठने के बाद ही खाते रहने से कुछ ही दिनों में ही पीलिया रोग ठीक हो जाता है।
125 मिलीलीटर मूली के पत्तों के रस में 30 ग्राम चीनी मिलाकर सुबह के समय रोगी को पिलाएं, इसे पीते ही लाभ होगा और 1 सप्ताह में रोगी को आराम मिल जाएगा।
मूली में विटामिन `सी´, लौह, कैल्शियम, सोडियम, मैग्नेशियम और क्लोरीन आदि कई खनिज लवण होते हैं, जो लीवर (जिगर) की क्रिया को ठीक करते हैं। अत: पाण्डु (पीलिया) रोग में मूली का रस 100 से 150 मिलीलीटर की मात्रा में गुड़ के साथ दिन में 3 से 4 बार पीने से लाभ होता है।
मूली का रस 10-15 मिलीलीटर 1 उबाल आने तक पकाएं। बाद में उतारकर 25 ग्राम खांड या मिश्री मिलाकर पिलाएं, साथ ही मूली और मूली का साग खिलाते रहने से पीलिया ठीक हो जाता है।
सिरके में बने मूली के अचार के सेवन से पीलिया रोग ठीक हो जाता है।
लगभग आधा से 1 ग्राम मण्डूरभस्म, लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग लौह भस्म को शहद के साथ रोगी को चटायें। फिर ऊपर से 100 मिलीलीटर मूली के रस में चीनी मिलाकर पिलायें। इसे रोजाना सुबह-शाम पिलाने से 15-20 दिनों में पीलिया रोग ठीक हो जाता है।
मूली के ताजे पत्तों को पानी के साथ पीसकर उबाल लें इसमें दूध की भांति झाग ऊपर आ जाता है, इसको छानकर दिन में 3 बार पीने से कामला (पीलिया) रोग मिट जाता है।
पत्तों सहित मूली का रस निकाल लें, फिर दिन में 3 बार 20-20 ग्राम की मात्रा में पीने से पीलिया रोग में लाभ होता हैं।
मूली के पत्तों का 80 मिलीलीटर रस निकालकर किसी बर्तन में आग पर चढ़ा दें, जब पानी उबल जाए, तब उसे छानकर उसमें शक्कर मिलाकर खाली पेट पीने से पीलिया रोग मिट जाता है।
25 मिलीलीटर मूली के रस में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग पिसा हुआ नौसादर मिलाकर सुबह-शाम लेने से पीलिया रोग दूर हो जाता है।
1 चम्मच कच्ची मूली का रस तथा उसमें 1 चुटकी जवाखार मिलाकर सेवन करें। कुछ दिनों तक सुबह, दोपहर और शाम को लगातार पीने से पीलिया रोग ठीक हो जाता है।
पीलिया के रोगी को गन्ने के रस के साथ मूली के रस का भी सेवन करना चाहिए, मूली के पत्तों की बिना चिकनाई वाली भुजिया खानी चाहिए।
आंतों के रोग:
मूली का रस आंतों में एण्टीसैप्टिक का कार्य करता हैं।
पथरी:
30 से 35 ग्राम मूली के बीजों को आधा लीटर पानी में उबाल लें। जब पानी आधा शेष रह जाए तब इसे छानकर पीएं। यह प्रयोग कुछ दिनों तक करने से मूत्राशय की पथरी चूर-चूर होकर पेशाब के साथ बाहर आ जाएगी। यह प्रयोग 2 से 3 महीने निरन्तर जारी रखें। मूली का रस पीने से पित्ताशय की पथरी बनना बंद हो जाती है।
मूली का 20 मिलीलीटर रस हर 4 घंटे में 3 बार रोजाना पीएं तथा इसके पत्ते चबा-चबाकर खाएं। इससे मूत्राशय की पथरी चूर-चूर होकर पेशाब के साथ बाहर आ जायेगी। यह प्रयोग 2-3 महीने करें। मूली का रस पीने से पित्ताशय की पथरी (गेल स्टोन) बनना बंद हो जाती है।
80 मिलीलीटर मूली के पत्तों के रस में 30 ग्राम अजमोद मिलाकर रोजाना पीने से पथरी गलकर निकल जाती है।
मूली में गड्ढ़ा कर उसमें शलगम के बीज डालकर गुन्था आटा ऊपर लपेटकर अंगारों पर सेंक लें, जब भरता हो जाये या पक जाये तब निकालकर आटे को अलग करके मूली को खा लें। इससे पथरी के टुकड़े-टुकड़े होकर निकल जाती है।
मूली का रस निकालकर उसमें जौखार का चूर्ण (पाउडर) आधा ग्राम मिलाकर रोजाना सुबह-शाम खायें। इससे पेडू (नाभि के नीचे का हिस्सा) का दर्द और गैस दूर होती है तथा पथरी गल जाती है।
मूली के पत्तों के रस में शोरा डालकर सेवन करने से पथरी मिटती है।
कामेन्द्रिय (लिंग) का शिथिल (ढीला) हो जाना:
मूली के बीजों को तेल में पकाकर (औटाकर) उस तेल से कामेन्द्रिय पर मालिश करें। इससे कामेन्द्रिय की शिथिलता (ढीलापन) दूर होकर उसमें उत्तेजना पैदा होती है।
मासिक-धर्म की रुकावट, अनियमितता व परेशानियां:
मूली के बीजों के चूर्ण को 3 ग्राम की मात्रा में स्त्री को देने से मासिक-धर्म की रुकावट दूर होती है और मासिक-धर्म साफ होता है।
2-2 ग्राम मूली के बीज, गाजर के बीज, नागरमोथा और हथेली भर नीम की छाल को पीस-छानकर गर्म पानी के साथ सेवन करें। इसके सेवन के बाद में दूध का सेवन करना चाहिए। इससे बंद मासिकस्राव (रजोदर्शन) शुरू हो जाता है।
मासिक-धर्म (ऋतुस्राव) के रुकने के कारण चेहरे पर अधिक मुंहासे निकलते हों तो सुबह के समय मूली और उसके कोमल पत्ते चबाकर खाने से आराम मिलता है। मूली के रस का भी सेवन कर सकते हैं।
मूली, गाजर तथा मेथी के बीज 50-50 ग्राम की मात्रा में लेकर पीसकर चूर्ण तैयार कर लें। इस मिश्रण को 10 ग्राम लेकर पानी के साथ सेवन करने से मासिक-धर्म सम्बन्धी शिकायतें दूर हो जाती हैं। 3 ग्राम मूली के बीजों का चूर्ण सुबह-शाम पानी के साथ सेवन करने से ऋतुस्राव (मासिक-धर्म का आना) का अवरोध नष्ट होता है।
बवासीर:
मूली कच्ची खाएं तथा इसके पत्तों की सब्जी बनाकर खाएं। कच्ची मूली खाने से बवासीर से गिरने वाला रक्त (खून) बंद हो जाता है। बवासीर खूनी हो या बादी 1 कप मूली का रस लें। इसमें एक चम्मच देशी घी मिला लें। इसे रोजाना दिन में 2 बार सुबह-शाम पीने से लाभ होता है।
कोमल मूली के 40-60 मिलीलीटर बने काढ़े (क्वाथ) में 1-2 ग्राम पीपर का चूर्ण मिलाकर पीने से बवासीर में आराम आता है।
एक सफेद मूली को काटकर नमक लगाकर रात को ओस में रख दें। इसे सुबह खाली पेट खाएं। मलत्याग के बाद गुदा भी मूली के पानी से धोएं ,
125 मिलीलीटर मूली के रस में 100 ग्राम देशी घी की जलेबी एक घंटा भीगने दें। उसके तुरन्त बाद जलेबी खाकर पानी पी लें। इस प्रकार निरन्तर एक सप्ताह यह प्रयोग करने से जीवन भर के लिए प्रत्येक प्रकार की बवासीर ठीक हो जाएगी।
मूली के टुकड़े को घी में तलकर चीनी के साथ खाएं या मूली काटकर उस पर चीनी डालकर रोजाना 2 महीने तक खाने से भी बवासीर में लाभ होता है।
सूखी मूली की पोटली गर्म करके बवासीर के मस्सों पर सिंकाई करने से आराम आता है।
सूरन के चूर्ण को घी में भूनकर, मूली के रस में घोंटकर 1-1 ग्राम की गोलियां बना लें। फिर रोजाना सुबह-शाम 1-1 गोली ताजे पानी के साथ लेने से हर प्रकार की बवासीर नष्ट होती है।
रसौत और कलमी शोरा दोनों को बराबर लेकर, मूली के रस में घोटकर चने के बराबर गोलियां बना लें। रोजाना सुबह-शाम 1 से 4 गोली बासी पानी के साथ खाने से दोनों प्रकार की बवासीर नष्ट हो जाती है।
10-10 ग्राम नीम की निंबौली, कलमी शोरा, रसावत और हरड़ को लेकर बारीक पीस लें, फिर इसे मूली के रस में मिलाकर जंगली बेर के बराबर आकार की गोलियां बना लें। रोजाना सुबह-शाम 1-1 गोली ताजे पानी या मट्ठा के साथ खाने से खूनी बवासीर से खून आना पहले ही दिन बंद हो जाता है और बादी बवासीर 1 महीने के प्रयोग से पूरी तरह नष्ट हो जाती है।
मूली की जड़ को चाकू या छुरी से गोल-गोल चकतियां बनाकर घी में तलकर मिश्री के साथ खाने से बवासीर में बहुत लाभ होता है।
मूली के रस में नीम की निंबौली की गिरी पीसकर कपूर मिलाकर बवासीर के मस्सों पर लेप करने से मस्से सूख जाते हैं।
एक अच्छी मोटी मूली लेकर ऊपर की ओर से काटकर चाकू या छुरी से उसे खोखली करके उसमें 20 ग्राम `रसवत´ भरकर मूली के कटे हुए भाग का मुंह बंदकर कपड़े और मिट्टी से अच्छी तरह बंद कर दें। इसे कण्डों की आग में रखकर राख बना लें। दूसरे दिन रसवत निकालकर मूली के रस में खरल (कूट) कर झड़बेरी के बराबर गोलियां बना लें। 1-1 गोली सुबह-शाम ताजे पानी के साथ सेवन करने से खूनी बवासीर कुछ ही दिनों में ठीक हो जाती है।
मूली के पत्तों को छाया में सुखाकर बारीक पीस लें, फिर इसमें इसी के समान मात्रा में चीनी, मिश्री या खांड मिलाकर रोजाना बासी मुंह 10 ग्राम की मात्रा में खाने से बवासीर में आराम हो जाता है।
मूली की सब्जी बनाकर खाने से बवासीर और पेट दर्द में आराम मिलता है।
बवासीर में सूखी मूली का 20-50 मिलीलीटर सूप, पानी अथवा बकरी के मांस के सूप में मिलाकर पीने से बवासीर के रोग में आराम आता है।
सूखे हुए मूली के पत्तों का चूर्ण बनाकर उसमें मिश्री मिलाकर प्रतिदिन खाने से बवासीर ठीक होता है।
मूली का रस निकालकर इसके 20 मिलीलीटर रस में 5 ग्राम घी मिलाकर रोजाना सुबह-शाम पीने से खून का निकलना बंद हो जाता है।
बिच्छू के काटने पर:
मूली के टुकड़े पर नमक लगाकर बिच्छू के काटे स्थान पर रखने से दर्द शांत होता है। बिच्छू के काटे रोगी को मूली खिलाएं और पीड़ित स्थान पर भी मूली का रस लगाने से लाभ होता है।
दाद:
मूली के बीजों को नींबू के रस में पीसकर गर्म करके दाद पर लगाएं। पहले दिन लगाने पर जलन व दर्द होगा, दूसरे दिन यह दर्द कम होगा। ठीक होने पर कोई कष्ट नहीं होगा। यह प्रयोग सूखी या गीली दोनों प्रकार के दाद में लाभदायक है।
औक्सिका मैक्सिको में क्रिसमस की पूर्व संध्या को मूली संध्या के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन मूली को विभिन्न पशुओं के आकार में काट कर सजाया जाता है।
अमरीकी ४०० मिलियन पाउन्ड मूली प्रतिवर्ष खा कर खतम कर देते हैं। इसमें से अधिकतर का प्रयोग सलाद के रूप में होता है।
प्राचीनकाल में जैतून के तेल के आविष्कार होने से पहले, मिस्र के लोग मूली के बीजों का तेल प्रयोग में लाते थे।
हार्स रैडिश या घोड़ा मूली, मूली नहीं बल्कि सरसों की जाति का तीखा सुगंध वाला पौधा है।
मूली कृषक सभ्यता के सबसे प्राचीन आविष्कारों में से एक है। ३००० वर्षो से भी पहले के चीनी इतिहास में इसका उल्लेख मिलता है। अत्यंत प्राचीन चीन और यूनानी व्यंजनों में इसका प्रयोग होता था और इसे भूख बढ़ाने वाली समझा जाता था। यूरोप के अनेक देशों में भोजन से पहले इसको परोसने परंपरा का उल्लेख मिलता है। मूली शब्द संस्कृत के 'मूल' शब्द से बना है। आयुर्वेद में इसे मूलक नाम से, स्वास्थ्य का मूल (अत्यंत महत्वपूर्ण) बताया गया है।
आजकल हम लोग अस्पतालों तथा अंग्रेज़ी दवाइयों की दुनिया में इतने खो गए कि उन्हें अपने आसपास उपलब्ध होने वाली, उन शाक-सब्ज़ियों की तरफ़ ध्यान देने का समय ही नहीं मिलता, जो बिना किसी हानि के हमारी अनेक बीमारियों को निर्मूल करने में सक्षम हैं। प्रकृति हमारे लिए शीत ऋतु में इस प्रकार की शाक-सब्ज़ियाँ उदारतापूर्वक उत्पन्न करती है। इन्हीं में से एक है 'मूली'।
मूली में प्रोटीन, कैल्शियम, गन्धक, आयोडीन तथा लौह तत्व पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होते हैं। इसमें सोडियम, फॉस्फोरस, क्लोरीन तथा मैग्नीशियम भी होता है। मूली में विटामिन 'ए' भी होता है। विटामिन 'बी' और 'सी' भी इससे प्राप्त होते हैं। जिसे हम मूली के रूप में जानते हैं, वह धरती के नीचे पौधे की जड होती हैं। धरती के ऊपर रहने वाले पत्ते से भी अधिक पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं। सामान्यत: हम मूली को खाकर उसके पत्तों को फेंक देते हैं। यह गलत आदत हैं। मूली के साथ ही उसके पत्तों का सेवन भी किया जाना चाहिए। इसी प्रकार मूली के पौधे में आने वाली फलियाँ 'मोगर' भी समान रूप से उपयोगी और स्वास्थ्यवर्धक है। सामान्यत: लोग मोटी मूली पसन्द करते हैं। कारण उसका अधिक स्वादिष्ट होना है, मगर स्वास्थ्य तथा उपचार की दृष्टि से छोटी, पतली और चरपरी मूली ही उपयोगी है। ऐसी मूली त्रिदोष (वात, पित्त और कफ) नाशक है। इसके विपरीत मोटी और पकी मूली त्रिदोष कारक मानी जाती है।
१०० ग्राम मूली में अनुमानित निम्न तत्व हैं : प्रोटीन - ०.७ ग्राम, वसा - ०.१ ग्राम, कार्बोहाइड्रेट - ३.४ ग्राम, कैल्शियम - ३५ मि.ग्रा., फॉस्फोरस - २२ मि.ग्रा, लोह तत्व - ०.४ मि.ग्रा., केरोटीन- ३ मा.ग्रा., थायेसिन - ०.०६ मि.ग्रा., रिवोफ्लेविन - ०.०२ मि.ग्रा., नियासिन - ०.५ मि.ग्रा., विटामिन सी - १५ मि.ग्रा.।
अनेक छोटी बड़ी व्याधियाँ मूली से ठीक की जा सकती हैं। मूली का रंग सफेद है, लेकिन यह शरीर को लालिमा प्रदान करती है। भोजन के साथ या भोजन के बाद मूली खाना विशेष रूप से लाभदायक है। मूली और इसके पत्ते भोजन को ठीक प्रकार से पचाने में सहायता करते हैं। वैसे तो मूली के पराठें, रायता, तरकारी, आचार तथा भुजिया जैसे अनेक स्वादिष्ट व्यंजन बनते हैं,मगर सबसे अधिक लाभकारी होती है कच्ची मूली। भोजन के साथ प्रतिदिन एक मूली खा लेने से व्यक्ति अनेक बीमारियों से मुक्त रह सकता है।
मूली, शरीर से विषैली गैस कार्बन-डाई-आक्साइड को निकालकर जीवनदायी आक्सीजन प्रदान करती है। मूली हमारे दाँतों को मज़बूत करती है तथा हडि्डयों को शक्ति प्रदान करती है। इससे व्यक्ति की थकान मिटती है और अच्छी नींद आती है। मूली खाने से पेट के कीड़े नष्ट होते हैं तथा पेट के घाव ठीक होते हैं।
यह उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करती है तथा बवासीर और हृदय रोग को शान्त करती है। इसका ताज़ा रस पीने से मूत्र संबंधी रोगों में राहत मिलती है। पीलिया रोग में भी मूली अत्यंत लाभदायक है। अफारे में मूली के पत्तों का रस विशेष रूप से उपयोगी होता है।
मोटापा अनेक बीमारियाँ की जड़ है। मोटापा कम करने के लिए मूली बहुत लाभदायक है। इसके रस में थोड़ा-सा नमक और नीबू का रस मिलाकर नियमित रूप से पीने से मोटापा कम होता है और शरीर सुडौल बन जाता है। पानी में मूली का रस मिलाकर सिर धोने से जुएँ नष्ट होती हैं। विटामिन 'ए' पर्याप्त मात्रा में होने से मूली का रस नेत्रज्योति बढ़ाने में भी सहायक होता है तथा शरीर के जोड़ों की जकड़न को दूर करता है।
मूली सौन्दर्यवर्धक भी है। इसके प्रतिदिन सेवन से रंग निखरता है, खुश्की दूर होती है, रक्त शुद्ध होता है और चेहरे की झाइयाँ, कील-मुहाँसे आदि साफ़ होते हैं। सर्दी-जुकाम तथा कफ-खाँसी में मूली के बीज का चूर्ण विशेष लाभदायक होता है। मूली के बीजों को उसके पत्तों के रस के साथ पीसकर लेप किया जाए तो अनेक चर्म रोगों से मुक्ति मिल सकती है। मूली के रस में तिल्ली का तेल मिलाकर और उसे हल्का गर्म करके कान में डालने से कर्णनाद, कान का दर्द तथा कान की खुजली ठीक होते हैं। मूली के पत्ते चबाने से हिचकी बन्द हो जाती है।
मूली से अनेक रोगों में भी लाभ मिलता है, एक सप्ताह तक कांजी में डाले रखने तथा उसके बाद उसके सेवन से बढ़ी हुई तिल्ली ठीक होती है और बवासीर का रोग नष्ट हो जाता है। हल्दी के साथ मूली खाने से भी बवासीर में लाभ होता है।
मूली के पत्तों के चार तोला रस में तीन माशा अजमोद का चूर्ण और चार रत्ती जोखार मिलाकर दिन में दो बार एक सप्ताह तक नियमित रूप से लेने पर गुर्दे की पथरी गल जाती है। एक कप मूली के रस में एक चम्मच अदरक का और एक चम्मच नींबू का रस मिलाकर नियमित सेवन से भूख बढ़ती है और पेट संबंधी सभी रोग नष्ट हो जाते हैं।
मूली के रस में समान मात्रा में अनार का रस मिलाकर पीने से रक्त में हीमोग्लोबिन बढ़ता है और रक्ताल्पता का रोग दूर होता है। सूखी मूली का काढ़ा बनाकर, उसमें जीरा और नमक डालकर पीने से खाँसी और दमा में राहत मिलती है।
मूली के औषधीय प्रयोग।
आज हम आपको बताने जा रहे हैं मूली के औषधीय प्रयोग। मूली जितनी स्वाद में बढ़िया हैं उतनी ही ये गुणों में भी बढ़िया हैं। आइये जानते हैं, मूली को विभिन्न रोगो में कैसे प्रयोग करे।
पेशाब के समय जलन व दर्द:
आधा गिलास मूली के रस का सेवन करने से पेशाब के साथ होने वाली जलन और दर्द मिट जाता है।
पेशाब कम बनना:
गुर्दे की खराबी से यदि पेशाब का बनना बंद हो जाए तो मूली का रस 50 मिलीलीटर रोजाना पीने से, पेशाब फिर बनने लगता है।
पेट में दर्द:
1 कप मूली के रस में नमक और मिर्च डालकर सेवन करने से पेट साफ हो जाता है और पेट का दर्द भी दूर हो जाता है।
मूली का लगभग 1 ग्राम के चौथे भाग के रस में आवश्यकतानुसार नमक और 3-4 कालीमिर्च का चूर्ण डालकर 3-4 बार रोगी को पिलाने से पेट के दर्द में लाभ मिलता है।
10 मिलीलीटर मूली का रस, 10 ग्राम यवक्षार, 50 ग्राम हिंग्वाष्टक चूर्ण, 50 ग्राम सोडा बाइकार्बोनेट, 2 ग्राम नौसादर, 10 ग्राम टार्टरी को मिलाकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण 3 ग्राम पानी के साथ खाने से हर प्रकार का पेट का दर्द दूर हो जाता है।
100 मिलीलीटर मूली का रस, 200 ग्राम घीकुंवार का रस, 50 मिलीलीटर अदरक का रस, 20 ग्राम सुहागे का फूल, 20 ग्राम नौसादर ठीकरी, 20 ग्राम पांचों नमक, 10-10 ग्राम चित्रकमूल, भुनी हींग, पीपल मूल, सोंठ, कालीमिर्च, पीपल, भुना जीरा, अजवाइन, लौह भस्म और 150 ग्राम पुराना गुड़। सभी औषधियों को पीसकर चूर्ण बनाकर मूली, घीकुंवार और अदरक के रस में मिलाकर, अमृतबान (एक बर्तन) में भरकर, अमृतबान का मुंह बंद करके 15 दिन धूप में रखें। 15 दिन बाद इसे छानकर बोतल में भर लें, आवश्यकतानुसार इस मिश्रण को 6-10 ग्राम तक लगभग 30 मिलीलीटर पानी में मिलाकर भोजन के बाद सेवन करने से पाण्डु (पीलिया), मंदाग्नि (पाचन क्रिया खराब होना), अजीर्ण (भूख न लगना), आध्यमान, कब्ज और पेट में दर्द आदि पेट से सम्बंधित रोग दूर हो जाते हैं। मासिक-धर्म के कष्ट के साथ आता हो या अनियमित हो तो इस मिश्रण को 2 चाय वाले चम्मच-भर सुबह-शाम 3 सप्ताह तक नियमित रूप से सेवन करना लाभदायक है।
मूली के रस में कालीमिर्च और 1 चुटकी काला नमक मिलाकर खाने से लाभ होता है।
मूली के रस में काला या सेंधानमक मिलाकर प्रयोग करने से पेट की पीड़ा में राहत मिलती है।
मूली की राख, करेला का रस, साण्डे की जड़ का रस, गडतूम्बा का रस को 10-10 ग्राम की मात्रा में मिलाकर रख लें। इस मिश्रण को दिन में 3 बार पीने से पीलिया, मधुमेह (डाइबिटीज), पेट का दर्द, पथरी, औरतों के वायु गोला (औरतों के पेट में गैस का गोला होना), शरीर का मोटापा, गुल्म वायु (पेट में कब्ज के कारण रूकी हुई वायु या गैस) तथा अजीर्ण आदि रोग ठीक हो जाते हैं।
मूली के रस में नींबू का रस और सेंधानमक मिलाकर सेवन करने से वायु विकार (गैस रोग) से उत्पन्न पेट दर्द समाप्त हो जाता है।
हिचकी:
मूली का जूस पीयें। सूखी मूली का काढ़ा 50 से 100 मिलीलीटर तक 1-1 घंटे पर पिलायें।
मूली के कोमल पत्ते चबाकर रस चूसने से हिचकी तुरन्त बंद हो जाती है। मूली का रस हल्का-सा गर्म करके पीने से भी हिचकी बंद हो जाती है।
मधुमेह (डायबिटिज):
मूली खाने से या इसका रस पीने से मधुमेह (डायबिटीज) में लाभ होता है।
आधी मूली का रस दोपहर के समय मधुमेह (डायबिटीज) के रोगी को देने से लाभ होता है।
पीलिया (कामला, पाण्डु):
एक कच्ची मूली रोजाना सुबह सोकर उठने के बाद ही खाते रहने से कुछ ही दिनों में ही पीलिया रोग ठीक हो जाता है।
125 मिलीलीटर मूली के पत्तों के रस में 30 ग्राम चीनी मिलाकर सुबह के समय रोगी को पिलाएं, इसे पीते ही लाभ होगा और 1 सप्ताह में रोगी को आराम मिल जाएगा।
मूली में विटामिन `सी´, लौह, कैल्शियम, सोडियम, मैग्नेशियम और क्लोरीन आदि कई खनिज लवण होते हैं, जो लीवर (जिगर) की क्रिया को ठीक करते हैं। अत: पाण्डु (पीलिया) रोग में मूली का रस 100 से 150 मिलीलीटर की मात्रा में गुड़ के साथ दिन में 3 से 4 बार पीने से लाभ होता है।
मूली का रस 10-15 मिलीलीटर 1 उबाल आने तक पकाएं। बाद में उतारकर 25 ग्राम खांड या मिश्री मिलाकर पिलाएं, साथ ही मूली और मूली का साग खिलाते रहने से पीलिया ठीक हो जाता है।
सिरके में बने मूली के अचार के सेवन से पीलिया रोग ठीक हो जाता है।
लगभग आधा से 1 ग्राम मण्डूरभस्म, लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग लौह भस्म को शहद के साथ रोगी को चटायें। फिर ऊपर से 100 मिलीलीटर मूली के रस में चीनी मिलाकर पिलायें। इसे रोजाना सुबह-शाम पिलाने से 15-20 दिनों में पीलिया रोग ठीक हो जाता है।
मूली के ताजे पत्तों को पानी के साथ पीसकर उबाल लें इसमें दूध की भांति झाग ऊपर आ जाता है, इसको छानकर दिन में 3 बार पीने से कामला (पीलिया) रोग मिट जाता है।
पत्तों सहित मूली का रस निकाल लें, फिर दिन में 3 बार 20-20 ग्राम की मात्रा में पीने से पीलिया रोग में लाभ होता हैं।
मूली के पत्तों का 80 मिलीलीटर रस निकालकर किसी बर्तन में आग पर चढ़ा दें, जब पानी उबल जाए, तब उसे छानकर उसमें शक्कर मिलाकर खाली पेट पीने से पीलिया रोग मिट जाता है।
25 मिलीलीटर मूली के रस में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग पिसा हुआ नौसादर मिलाकर सुबह-शाम लेने से पीलिया रोग दूर हो जाता है।
1 चम्मच कच्ची मूली का रस तथा उसमें 1 चुटकी जवाखार मिलाकर सेवन करें। कुछ दिनों तक सुबह, दोपहर और शाम को लगातार पीने से पीलिया रोग ठीक हो जाता है।
पीलिया के रोगी को गन्ने के रस के साथ मूली के रस का भी सेवन करना चाहिए, मूली के पत्तों की बिना चिकनाई वाली भुजिया खानी चाहिए।
आंतों के रोग:
मूली का रस आंतों में एण्टीसैप्टिक का कार्य करता हैं।
पथरी:
30 से 35 ग्राम मूली के बीजों को आधा लीटर पानी में उबाल लें। जब पानी आधा शेष रह जाए तब इसे छानकर पीएं। यह प्रयोग कुछ दिनों तक करने से मूत्राशय की पथरी चूर-चूर होकर पेशाब के साथ बाहर आ जाएगी। यह प्रयोग 2 से 3 महीने निरन्तर जारी रखें। मूली का रस पीने से पित्ताशय की पथरी बनना बंद हो जाती है।
मूली का 20 मिलीलीटर रस हर 4 घंटे में 3 बार रोजाना पीएं तथा इसके पत्ते चबा-चबाकर खाएं। इससे मूत्राशय की पथरी चूर-चूर होकर पेशाब के साथ बाहर आ जायेगी। यह प्रयोग 2-3 महीने करें। मूली का रस पीने से पित्ताशय की पथरी (गेल स्टोन) बनना बंद हो जाती है।
80 मिलीलीटर मूली के पत्तों के रस में 30 ग्राम अजमोद मिलाकर रोजाना पीने से पथरी गलकर निकल जाती है।
मूली में गड्ढ़ा कर उसमें शलगम के बीज डालकर गुन्था आटा ऊपर लपेटकर अंगारों पर सेंक लें, जब भरता हो जाये या पक जाये तब निकालकर आटे को अलग करके मूली को खा लें। इससे पथरी के टुकड़े-टुकड़े होकर निकल जाती है।
मूली का रस निकालकर उसमें जौखार का चूर्ण (पाउडर) आधा ग्राम मिलाकर रोजाना सुबह-शाम खायें। इससे पेडू (नाभि के नीचे का हिस्सा) का दर्द और गैस दूर होती है तथा पथरी गल जाती है।
मूली के पत्तों के रस में शोरा डालकर सेवन करने से पथरी मिटती है।
कामेन्द्रिय (लिंग) का शिथिल (ढीला) हो जाना:
मूली के बीजों को तेल में पकाकर (औटाकर) उस तेल से कामेन्द्रिय पर मालिश करें। इससे कामेन्द्रिय की शिथिलता (ढीलापन) दूर होकर उसमें उत्तेजना पैदा होती है।
मासिक-धर्म की रुकावट, अनियमितता व परेशानियां:
मूली के बीजों के चूर्ण को 3 ग्राम की मात्रा में स्त्री को देने से मासिक-धर्म की रुकावट दूर होती है और मासिक-धर्म साफ होता है।
2-2 ग्राम मूली के बीज, गाजर के बीज, नागरमोथा और हथेली भर नीम की छाल को पीस-छानकर गर्म पानी के साथ सेवन करें। इसके सेवन के बाद में दूध का सेवन करना चाहिए। इससे बंद मासिकस्राव (रजोदर्शन) शुरू हो जाता है।
मासिक-धर्म (ऋतुस्राव) के रुकने के कारण चेहरे पर अधिक मुंहासे निकलते हों तो सुबह के समय मूली और उसके कोमल पत्ते चबाकर खाने से आराम मिलता है। मूली के रस का भी सेवन कर सकते हैं।
मूली, गाजर तथा मेथी के बीज 50-50 ग्राम की मात्रा में लेकर पीसकर चूर्ण तैयार कर लें। इस मिश्रण को 10 ग्राम लेकर पानी के साथ सेवन करने से मासिक-धर्म सम्बन्धी शिकायतें दूर हो जाती हैं। 3 ग्राम मूली के बीजों का चूर्ण सुबह-शाम पानी के साथ सेवन करने से ऋतुस्राव (मासिक-धर्म का आना) का अवरोध नष्ट होता है।
बवासीर:
मूली कच्ची खाएं तथा इसके पत्तों की सब्जी बनाकर खाएं। कच्ची मूली खाने से बवासीर से गिरने वाला रक्त (खून) बंद हो जाता है। बवासीर खूनी हो या बादी 1 कप मूली का रस लें। इसमें एक चम्मच देशी घी मिला लें। इसे रोजाना दिन में 2 बार सुबह-शाम पीने से लाभ होता है।
कोमल मूली के 40-60 मिलीलीटर बने काढ़े (क्वाथ) में 1-2 ग्राम पीपर का चूर्ण मिलाकर पीने से बवासीर में आराम आता है।
एक सफेद मूली को काटकर नमक लगाकर रात को ओस में रख दें। इसे सुबह खाली पेट खाएं। मलत्याग के बाद गुदा भी मूली के पानी से धोएं ,
125 मिलीलीटर मूली के रस में 100 ग्राम देशी घी की जलेबी एक घंटा भीगने दें। उसके तुरन्त बाद जलेबी खाकर पानी पी लें। इस प्रकार निरन्तर एक सप्ताह यह प्रयोग करने से जीवन भर के लिए प्रत्येक प्रकार की बवासीर ठीक हो जाएगी।
मूली के टुकड़े को घी में तलकर चीनी के साथ खाएं या मूली काटकर उस पर चीनी डालकर रोजाना 2 महीने तक खाने से भी बवासीर में लाभ होता है।
सूखी मूली की पोटली गर्म करके बवासीर के मस्सों पर सिंकाई करने से आराम आता है।
सूरन के चूर्ण को घी में भूनकर, मूली के रस में घोंटकर 1-1 ग्राम की गोलियां बना लें। फिर रोजाना सुबह-शाम 1-1 गोली ताजे पानी के साथ लेने से हर प्रकार की बवासीर नष्ट होती है।
रसौत और कलमी शोरा दोनों को बराबर लेकर, मूली के रस में घोटकर चने के बराबर गोलियां बना लें। रोजाना सुबह-शाम 1 से 4 गोली बासी पानी के साथ खाने से दोनों प्रकार की बवासीर नष्ट हो जाती है।
10-10 ग्राम नीम की निंबौली, कलमी शोरा, रसावत और हरड़ को लेकर बारीक पीस लें, फिर इसे मूली के रस में मिलाकर जंगली बेर के बराबर आकार की गोलियां बना लें। रोजाना सुबह-शाम 1-1 गोली ताजे पानी या मट्ठा के साथ खाने से खूनी बवासीर से खून आना पहले ही दिन बंद हो जाता है और बादी बवासीर 1 महीने के प्रयोग से पूरी तरह नष्ट हो जाती है।
मूली की जड़ को चाकू या छुरी से गोल-गोल चकतियां बनाकर घी में तलकर मिश्री के साथ खाने से बवासीर में बहुत लाभ होता है।
मूली के रस में नीम की निंबौली की गिरी पीसकर कपूर मिलाकर बवासीर के मस्सों पर लेप करने से मस्से सूख जाते हैं।
एक अच्छी मोटी मूली लेकर ऊपर की ओर से काटकर चाकू या छुरी से उसे खोखली करके उसमें 20 ग्राम `रसवत´ भरकर मूली के कटे हुए भाग का मुंह बंदकर कपड़े और मिट्टी से अच्छी तरह बंद कर दें। इसे कण्डों की आग में रखकर राख बना लें। दूसरे दिन रसवत निकालकर मूली के रस में खरल (कूट) कर झड़बेरी के बराबर गोलियां बना लें। 1-1 गोली सुबह-शाम ताजे पानी के साथ सेवन करने से खूनी बवासीर कुछ ही दिनों में ठीक हो जाती है।
मूली के पत्तों को छाया में सुखाकर बारीक पीस लें, फिर इसमें इसी के समान मात्रा में चीनी, मिश्री या खांड मिलाकर रोजाना बासी मुंह 10 ग्राम की मात्रा में खाने से बवासीर में आराम हो जाता है।
मूली की सब्जी बनाकर खाने से बवासीर और पेट दर्द में आराम मिलता है।
बवासीर में सूखी मूली का 20-50 मिलीलीटर सूप, पानी अथवा बकरी के मांस के सूप में मिलाकर पीने से बवासीर के रोग में आराम आता है।
सूखे हुए मूली के पत्तों का चूर्ण बनाकर उसमें मिश्री मिलाकर प्रतिदिन खाने से बवासीर ठीक होता है।
मूली का रस निकालकर इसके 20 मिलीलीटर रस में 5 ग्राम घी मिलाकर रोजाना सुबह-शाम पीने से खून का निकलना बंद हो जाता है।
बिच्छू के काटने पर:
मूली के टुकड़े पर नमक लगाकर बिच्छू के काटे स्थान पर रखने से दर्द शांत होता है। बिच्छू के काटे रोगी को मूली खिलाएं और पीड़ित स्थान पर भी मूली का रस लगाने से लाभ होता है।
दाद:
मूली के बीजों को नींबू के रस में पीसकर गर्म करके दाद पर लगाएं। पहले दिन लगाने पर जलन व दर्द होगा, दूसरे दिन यह दर्द कम होगा। ठीक होने पर कोई कष्ट नहीं होगा। यह प्रयोग सूखी या गीली दोनों प्रकार के दाद में लाभदायक है।
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