रविवार, 10 सितंबर 2017

मल्लियनाथ


जैन धर्म में कुल 24 तीर्थंकर हो चुके हैं।
उनमें एक राजकन्या भी तीर्थंकर हो गयी, जिसका नाम था मल्लियनाथ।
राजकुमारी मल्लिका इतनी खूबसूरत थी कि कई राजकुमार व राजा उसके साथ विवाह करना चाहते थे लेकिन वह किसी को पसंद नहीं करती थी।

आखिरकार उन राजकुमारों व राजाओं ने आपस में एक जुट होकर मल्लिका के पिता को किसी युद्ध में हराकर उसका अपहरण करने की योजना बनायी।

मल्लिका को इस बात का पता चल गया। उसने राजकुमारों व राजाओं को कहलवाया कि "आप लोग मुझ पर कुर्बान हैं तो मैं भी आप पर कुर्बान हूँ। तिथि निश्चित करिये। आप लोग आकर बातचीत करें। मैं आप सबको अपना सौंदर्य दे दूँगी।"

इधर मल्लिका ने अपने जैसी ही एक सुंदर मूर्ति बनवायी एवं निश्चित की गयी तिथि से दो चार दिन पहले से वह अपना भोजन उसमें डाल देती थी। जिस महल में राजकुमारों व राजाओं को मुलाकात देनी थी, उसी में एक ओर वह मूर्ति रखवा दी गयी। निश्चित तिथि पर सारे राजा व राजकुमार आ गये।

मूर्ति इतनी हूबहू थी कि उसकी ओर देखकर राजकुमार विचार कर ही रहे थे कि ʹअब बोलेगी.... अब बोलेगी...ʹ इतने में मल्लिका स्वयं आयी तो सारे राजा व राजकुमार उसे देखकर दंग रह गये कि ʹवास्तविक मल्लिका हमारे सामने बैठी है तो यह कौन है ?ʹ

मल्लिका बोलीः "यह प्रतिमा है। मुझे यही विश्वास था कि आप सब इसको ही सच्ची मानेंगे और सचमुच में मैंने इसमें सच्चाई छुपाकर रखी है। आपको जो सौंदर्य चाहिए वह मैंने इसमें छुपाकर रखा है।"

यह कहकर ज्यों ही मूर्ति का ढक्कन खोला गया, त्यों ही सारा कक्ष दुर्गन्ध से भर गया। पिछले चार पाँच दिनों से जो भोजन उसमें डाला गया था, उसके सड़ जाने से ऐसी भयंकर बदबू निकल रही थी कि सब छिः छिः कर उठे।

तब मल्लिका ने वहाँ आये हुए सभी राजाओं व राजकुमारों को सम्बोधित करते हुए कहाः "भाइयो ! जिस अन्न, जल, दूध, फल, सब्जी इत्यादि को खाकर यह शरीर सुन्दर दिखता है, मैंने वे ही खाद्य सामग्रियाँ चार पाँच दिनों से इसमें डाल रखी थीं। अब ये सड़कर दुर्गन्ध पैदा कर रही हैं। दुर्गन्ध पैदा करने वाले इन खाद्यान्नों से बनी हुई चमड़ी पर आप इतने फिदा हो रहे हो तो इस अन्न को रक्त बनाकर सौंदर्य देने वाला वह आत्मा कितना सुंदर होगा !"

मल्लिका की इन सारगर्भित बातों का राजा एवं राजकुमारों पर गहरा असर हुआ और उन्होंने कामविकार से अपना पिंड छुड़ाने का संकल्प किया।

उधर मल्लिका संत-शरण में पहुँच गयी और उनके मार्गदर्शन से अपने आत्मा को पाकर मल्लियनाथ तीर्थंकर बन गयी। आज भी मल्लियनाथ जैन धर्म के प्रसिद्ध उन्नीसवें तीर्थंकर के रूप में सम्मानित होकर पूजी जा रही हैं।

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