शास्त्रीय सुन्दरता

महाभारत के गालव प्रकरण में आये उद्योग पर्व के ११६ वें अध्याय से ये श्लोक देखिये;

उन्नतेषून्नता षट्सु सूक्ष्मा सूक्ष्मेसु पञ्चसु।
गम्भीरा त्रिषु गम्भीरेष्वियं रक्ता च पञ्चसु।।
श्रोण्यौ ललाट मूरू च घ्राणं चेति षडुन्नतम।
सूक्ष्माण्यङ्गुलिपर्वाणि केशरोमनखत्वचः।।
स्वरः सत्वं च नाभिश्च त्रिगम्भीरे प्रचक्षते।
पाणिपादतले रक्ते नेत्रान्तौ च नखानि च॥

अर्थ: इस कन्या के जो छै अंग ऊँचे होने चाहिये, ऊँचे हैं। पांच अंग जो सूक्ष्म होने चाहिये, सूक्ष्म हैं। तीन अंग जो गम्भीर होने चाहिये, गम्भीर हैं तथा इसके पांच अंग रक्त वर्ण के हैं।

दो नितम्ब, दो जांघे, ललाट, और नासिका, ये छै अंग ऊँचे हैं। अङ्गुलियों के पर्व, केश, रोम, नख और त्वचा- ये पाँच अंग सूक्ष्म हैं। स्वर, अंतःकरण और नाभि- ये तीन गम्भीर कहे जा सकते हैं तथा हथेली, पैरों के तलवे, दक्षिण नेत्र प्रान्त, वाम नेत्र प्रान्त और नख, ये पाँच अंग रक्त वर्ण के हैं

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