संदेश

जुलाई, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मुद्रास्फीति

मुद्रास्फीति माल और सेवाओं के सामान्य मूल्यों में मुद्रास्फीति लगातार वृद्धि है। मुद्रास्फीति बढ़ाना पैसे की क्रय शक्ति को नष्ट कर देता है सभी चीजें समान होती हैं, अगर प्याज की 1 किलोग्राम की कीमत में- 15 से लेकर 20 रुपये तक की बढ़ोतरी के बाद मुद्रास्फीति की वजह से कीमतों में वृद्धि हुई है। मुद्रास्फीति अनिवार्य है- बील लेकिन एक उच्च मुद्रास्फीति की दर वांछनीय नहीं है क्योंकि इससे आर्थिक अस्वस्थता हो सकती है। एक उच्च स्तर मुद्रास्फीति की वजह से बाजारों में खराब संकेत भेजना पड़ता है। सरकारें नीचे कटौती करने की दिशा में काम करती हैं मुद्रास्फीति एक प्रबंधनीय स्तर पर। मुद्रास्फीति आम तौर पर एक सूचकांक का उपयोग कर मापा जाता है। यदि सूचकांक गो- कुछ प्रतिशत अंक के आधार पर यह बढ़ती मुद्रास्फीति को इंगित करता है, इसी तरह सूचकांक इंडी- कैट्स मुद्रास्फीति को ठंडा करना दो प्रकार के मुद्रास्फीति सूचकांक हैं - थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई)। थोक मूल्य सूचकांक (डब्लूपीआई) - थोक मूल्य सूचकांक थोक मूल्यों पर कीमतों के आंदोलन को इंगित करता है। यह कीमतों

स्टॉक ब्रोकर शेयर दलाल

स्टॉक ब्रोकर शेयर दलाल संभवतः एक सबसे महत्वपूर्ण वित्तीय मध्यस्थों में से एक है पता करने की जरूरत। स्टॉक ब्रोकर एक कॉर्पोरेट इकाई है, जो स्टॉक के साथ एक ट्रेडिंग सदस्य के रूप में पंजीकृत है एक शेयर ब्रोकिंग लाइसेंस का आदान-प्रदान और रखता है वे निर्धारित दिशानिर्देशों के तहत संचालित करते हैं सेबी। स्टॉक ब्रोकर स्टॉक एक्सचेंजों के लिए आपका प्रवेश द्वार है। आरंभ करने के लिए, आपको कुछ खोलना होगा एक ब्रोकर के साथ 'ट्रेडिंग अकाउंट' कहा जाता है जो आपकी आवश्यकता को पूरा करता है। आपकी आवश्यकता दलाल के कार्यालय और आपके घर के बीच निकटता के रूप में सरल हो एक ही समय में यह कर सकते हैं एक दलाल की पहचान करने के लिए जितना जटिल हो, जो आपको एक ऐसा मंच प्रदान कर सकते हैं जिसका उपयोग आप कर सकते हैं पूरे विश्व में कई एक्सचेंजों में पार किया जा सकता है। बाद में हम चर्चा करेंगे कि क्या है ये आवश्यकताएं और सही दलाल कैसे चुन सकती हैं एक ट्रेडिंग खाता आपको बाज़ार में वित्तीय लेनदेन करने की सुविधा देता है। एक ट्रेडिंग खाता एसी- दलाल के साथ गिनती करें जो निवेशक को सिक्योरिटीज खरीदने / बेचने क

शेयर बाजार क्या है?

शेयर बाजार क्या है? इक्विटी में निवेश करना एक महत्वपूर्ण निवेश है जो हम मुद्रास्फीति को उत्पन्न करने के लिए करते हैं रिटर्न मारना यह पिछले अध्याय से हमने निष्कर्ष निकाला था यह कहने के बाद, हम इक्विटी में निवेश करने के बारे में कैसे जाते हैं? इससे पहले कि हम इस विषय में आगे बसा, यह पूर्व- पारिस्थितिकी तंत्र को समझने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है जिसमें इक्विटी संचालित होती है। जिस तरह से हम अपने दैनिक के लिए खरीदारी करने के लिए पड़ोस किराना स्टोर या सुपर मार्केट में जाते हैं जरूरत है, इसी तरह हम इक्विटी निवेश के लिए शेयर बाजार में (ट्रांसएक्स के रूप में पढ़ा) जाने जाते हैं। स्टॉक मार्केट है जहां सभी शेयरों में लेनदेन करना चाहते हैं साधारण शब्दों में लेनदेन करें खरीद और बिक्री का मतलब है सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए, आप किसी सार्वजनिक कॉमरेड के शेयर खरीद / बेच नहीं सकते हैं। शेयर बाजारों के माध्यम से लेनदेन किए बिना इंफोसिस जैसी कंपनी शेयर बाजार का मुख्य उद्देश्य आपको अपने लेनदेन को सुविधाजनक बनाने में मदद करना है। तो अगर आप एक हैं एक शेयर के खरीदार, शेयर बाजार में आपको विक्र

मौलिक अधिकार

मौलिक अधिकार संविधान लोगों को "विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, विश्वास और पूजा की स्वतंत्रता को सुरक्षित करना चाहता है; समानता स्थिति और अवसर की; और बिरादरी व्यक्ति की गरिमा को आश्वस्त करती है " इस वस्तु के साथ, मौलिक संविधान के भाग III में अधिकारों की परिकल्पना की गई है मौलिक अधिकारों की संकल्पना 17 वीं शताब्दी में राजनीतिक दार्शनिकों ने यह सोचना शुरू कर दिया था कि जन्म के अनुसार कुछ अधिकार होते हैं जो थे सार्वभौमिक और अतुलनीय, और उन्हें वंचित नहीं किया जा सका। रूसू, लोके, मोंटेसेगु के नाम और ब्लैकस्टोन इस संदर्भ में नोट किया जा सकता है। अमेरिकी स्वतंत्रता की घोषणा 1776, ने कहा कि सभी पुरुषों को समान बनाया जाता है, कि वे अपने निर्माता द्वारा कुछ असहनीय अधिकारों के साथ संपन्न होते हैं: इनमें से, जीवन, स्वतंत्रता और खुशी का पीछा कर रहे हैं 17 वीं शताब्दी के बाद से, यह माना गया था कि आदमी ने निश्चित किया है आवश्यक, बुनियादी, प्राकृतिक और असहनीय अधिकार और यह इन अधिकारों को पहचानने के लिए राज्य का कार्य है और उन्हें एक नि: शुल्क खेल की अनुमति दें ताकि मानव स्वतंत्रता को संरक्षित

रावणकृत शिवताण्डवस्तोत्रम्

रावणकृत शिवताण्डवस्तोत्रम् जटाटवी-गलज्जल-प्रवाह-पावित-स्थले गलेऽव-लम्ब्य-लम्बितां-भुजङ्ग-तुङ्ग-मालिकाम् डमड्डमड्डमड्डम-न्निनादव-ड्डमर्वयं चकार-चण्ड्ताण्डवं-तनोतु-नः शिवः शिवम् .. १.. जिन शिव जी की सघन जटारूप वन से प्रवाहित हो गंगा जी की धारायं उनके कंठ को प्रक्षालित क होती हैं, जिनके गले में बडे एवं लम्बे सर्पों की मालाएं लटक रहीं हैं, तथा जो शिव जी डम-डम डमरू बजा कर प्रचण्ड ताण्डव करते हैं, वे शिवजी हमारा कल्यान करें जटा-कटा-हसं-भ्रम भ्रमन्नि-लिम्प-निर्झरी- -विलोलवी-चिवल्लरी-विराजमान-मूर्धनि . धगद्धगद्धग-ज्ज्वल-ल्ललाट-पट्ट-पावके किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम .. २.. जिन शिव जी के जटाओं में अतिवेग से विलास पुर्वक भ्रमण कर रही देवी गंगा की लहरे उनके शिश पर लहरा रहीं हैं, जिनके मस्तक पर अग्नि की प्रचण्ड ज्वालायें धधक-धधक करके प्रज्वलित हो रहीं हैं, उन बाल चंद्रमा से विभूषित शिवजी में मेरा अंनुराग प्रतिक्षण बढता रहे। धरा-धरेन्द्र-नंदिनी विलास-बन्धु-बन्धुर स्फुर-द्दिगन्त-सन्तति प्रमोद-मान-मानसे . कृपा-कटाक्ष-धोरणी-निरुद्ध-दुर्धरापदि क्वचि-द्दिगम्बरे-मनो विनोदमेतु

नव-नाग

श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागपंचमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन नागों की पूजा करने का विधान है। हिंदू धर्म में नागों को भी देवता माना गया है। महाभारत आदि ग्रंथों में नागों की उत्पत्ति के बारे में बताया गया है। इनमें शेषनाग, वासुकि, तक्षक आदि प्रमुख हैं। नागपंचमी के अवसर पर हम आपको ग्रंथों में वर्णित प्रमुख नागों के बारे में बता रहे हैं-* *वासुकि नाग* *धर्म ग्रंथों में वासुकि को नागों का राजा बताया गया है। ये हैं भगवान शिव के गले में लिपटे रहते हैं। (कुछ ग्रंथों में महादेव के गले में निवास करने वाले नाग का नाम तक्षक भी बताया गया है)। ये महर्षि कश्यप व कद्रू की संतान हैं। इनकी पत्नी का नाम शतशीर्षा है। इनकी बुद्धि भगवान भक्ति में लगी रहती है। जब माता कद्रू ने नागों को सर्प यज्ञ में भस्म होने का श्राप दिया तब नाग जाति को बचाने के लिए वासुकि बहुत चिंतित हुए। तब एलापत्र नामक नाग ने इन्हें बताया कि आपकी बहन जरत्कारु से उत्पन्न पुत्र ही सर्प यज्ञ रोक पाएगा।* *तब नागराज वासुकि ने अपनी बहन जरत्कारु का विवाह ऋषि जरत्कारु से करवा दिया। समय आने पर जरत्कारु ने आस्तीक नामक विद्व

स्त्री-पुरुष का मिलन

ओशो के अनुसार स्त्री-पुरुष का मिलन एक गहरा मिलन है। और जो व्यक्ति उस छोटे से मिलन को भी उपलब्ध नहीं होता, वह स्वयं के और अस्तित्व के मिलन को उपलब्ध नहीं हो सकेगा। स्वयं का और अस्तित्व का मिलन तो और बड़ा मिलन है, विराट मिलन है। यह तो बहुत छोटा सा मिलन है। लेकिन इस छोटे मिलन में भी अखंडता घटित होती है– छोटी मात्रा में। एक और विराट मिलन है, जहां अखंडता घटित होती है–स्वयं के और सर्व के मिलन से। वह एक बड़ा संभोग है, और शाश्वत संभोग है। यह मिलन अगर घटित होता है, तो उस क्षण में व्यक्ति निर्दोष हो जाता है। मस्तिष्क खो जाता है; सोच-विचार विलीन हो जाता है; सिर्फ होना, मात्र होना रह जाता है, जस्ट बीइंग। सांस चलती है, हृदय धड़कता है, होश होता है; लेकिन कोई विचार नहीं होता। संभोग में एक क्षण को व्यक्ति निर्दोष हो जाता है। अगर आपके भीतर की स्त्री और पुरुष के मिलने की कला आपको आ जाए, तो फिर बाहर की स्त्री से मिलने की जरूरत नहीं है। लेकिन बाहर की स्त्री से मिलना बहुत आसान, सस्ता; भीतर की स्त्री से मिलना बहुत कठिन और दुरूह। बाहर की स्त्री से मिलने का नाम भोग; भीतर की स्त्री से मिलने का नाम योग। वह

हरिनाम

प्रभु नाम से कल्याण: एक बार एक पुत्र अपने पिता से रूठ कर घर छोड़ कर दूर चला गया और फिर इधर उधर यूँही भटकता रहा। दिन बीते, महीने बीते और साल बीत गए | एक दिन वह बीमार पड़ गया | अपनी झोपडी में अकेले पड़े उसे अपने पिता के प्रेम की याद आई कि कैसे उसके पिता उसके बीमार होने पर उसकी सेवा किया करते थे | उसे बीमारी में इतना प्रेम मिलता था कि वो स्वयं ही शीघ्र अति शीघ्र ठीक हो जाता था | उसे फिर एहसास हुआ कि उसने घर छोड़ कर बहुत बड़ी गलती की है, वो रात के अँधेरे में ही घर की और हो लिया। जब घर के नजदीक गया तो उसने देखा आधी रात के बाद भी दरवाज़ा खुला हुआ है | अनहोनी के डर से वो तुरंत भाग कर अंदर गया तो उसने पाया की आंगन में उसके पिता लेटे हुए हैं | उसे देखते ही उन्होंने उसका बांहे फैला कर स्वागत किया | पुत्र की आँखों में आंसू आ गए | उसने पिता से पूछा "ये घर का दरवाज़ा खुला है, क्या आपको आभास था कि मैं आऊंगा?" पिता ने उत्तर दिया "अरे पगले ये दरवाजा उस दिन से बंद ही नहीं हुआ जिस दिन से तू गया है, मैं सोचता था कि पता नहीं तू कब आ जाये और कंही ऐसा न हो कि दरवाज़ा बंद देख कर तू वा

सुर एवं असुर

सुर एवं असुर  प्राचीन भारत की गाथाओं में आपने सुर और असुर दो प्रजातियों के बारे में जरूर सुना होगा। अगर हम श्रीमद्भागवत गीता का अध्‍ययन करें तो स्थितियां खुद ब खुद स्पष्ट होने लगती हैं। विडम्बना ये है कि हमने अपने ही धर्मग्रथों को पढ़ना छोड़ दिया है। गीता के 16वें अध्याय में सुर और असुर "प्रवृतियों " के बारे में विस्तार से बताया गया है। तो आइए पहले ये जानते हैं कि आसुरी प्रवृतिया क्या है। आप खुद पढ़िये और अपना मुल्यांकन स्वयम करें । श्रीमद्भागवत गीता के 16वें अध्‍याय में भगवान श्रीकृष्‍ण कहते हैं, अशुद्ध और असत्य बोलने वाले ,,,,,,,,,,,,, ''असुर स्वाभाव वाले मनुष्य प्रवृत्‍ति और निवृत्‍ति इन दोनों को ही नहीं जानते। इसलिए उनमें ना तो बाहर की ना ही भीतर की शुद्धि रहती है। वो ना तो श्रेष्ठ आचरण करते हैं और ना ही सत्य भाषण करते हैं।'' (16/7) ईश्वर की सत्ता से इंकार करते हैं ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, ''आसुरी प्रकृति वाले मनुष्य कहा करते हैं कि जगत् आश्रय रहित, सर्वथा असत्य और बिना ईश्वर के अपने आप केवल स्त्री पुरुष के संयोग से उत्पन्न है। अतएव केवल काम ह

इष्ट देव

इष्ट देव आइये जानते है आप के इष्ट देव              कौन है ? आप की लग्न कुंडली मैं पंचम भाव का स्वामी गृह (पंचमेश ) आपके इष्ट देव है चाहे लाख दोष हो आप के कुंडली में ग्रह अच्छा फल नहीं दे रहे हो तो आप अपने इष्ट देव की आराधना करे उन की आराधना  उपासना  वंदना, पूजा करने से आपके सारे काम बनने लग जायेंगे .... इष्ट देव की आराधना आपके लिए सदैव लाभकारी रहेगा.... मेष लग्न = ( सूर्य देवता, गायत्री देवी आपके इष्ट है उनका मंत्र , पूजन , पाठ आरती आपके लिए सदैव लाभकारी रहेगा..... वृषभ लग्न = ( बुध देवता, गणेश जी आपके इष्ट है उनका मंत्र , पूजन , पाठ आरती आपके लिए सदैव लाभकारी रहेगा.... मिथुन लग्न = ( शुक्र देवता , माँ दुर्गा आपके इष्ट है उनका मंत्र , पूजन , पाठ आरती आपके लिए सदैव लाभकारी रहेगा ..... कर्क लग्न = ( मंगल देवता , हनुमान जी आपके इष्ट देव है उनका मंत्र , पूजन , पाठ आरती आपके लिए सदैव लाभकारी रहेगा ..... सिंह लग्न = ( देव गुरु बृहस्पति, विष्णु जी आपके इष्ट देव है उनका मंत्र , पूजन , पाठ आरती आपके लिए सदैव लाभकारी रहेगा..... कन्या लग्न = (शनि देवता, शिव जी आपके इष्ट देव है उनका मं

ठाकुर का दर्शन

ठाकुर का दर्शन  एक गरीब बालक था जो कि अनाथ था। एक दिन वो बालक एक संत के आश्रम में आया और बोला कि बाबा आप सब का ध्यान रखते है, मेरा इस दुनिया मेँ कोई नही है तो क्या मैँ यहाँ आपके आश्रम में रह सकता हूँ ? बालक की बात सुनकर संत बोले बेटा तेरा नाम क्या है ? उस बालक ने कहा मेरा कोई नाम नहीँ हैँ। तब संत ने उस बालक का नाम रामदास रखा और बोले की अब तुम यहीँ आश्रम मेँ रहना। रामदास वही रहने लगा और आश्रम के सारे काम भी करने लगा। उन संत की आयु 80 वर्ष की हो चुकी थी। एक दिन वो अपने शिष्यो से बोले की मुझे तीर्थ यात्रा पर जाना हैँ तुम मेँ से कौन कौन मेरे मेरे साथ चलेगा और कौन कौन आश्रम मेँ रुकेगा ? संत की बात सुनकर सारे शिष्य बोले की हम आपके साथ चलेंगे.! क्योँकि उनको पता था की यहाँ आश्रम मेँ रुकेंगे तो सारा काम करना पड़ेगा इसलिये सभी बोले की हम तो आपके साथ तीर्थ यात्रा पर चलेंगे। अब संत सोच मेँ पड़ गये की किसे साथ ले जाये और किसे नहीँ क्योँकि आश्रम पर किसी का रुकना भी जरुरी था। बालक रामदास संत के पास आया और बोला बाबा अगर आपको ठीक लगे तो मैँ यहीँ आश्रम पर रुक जाता हूँ। संत

त्रिपुरारी का मनोहारी स्वरूप

त्रिपुरारी का मनोहारी स्वरूप त्रिपुर का अर्थ है लोभ, मोह और अहंकार। मनुष्य के भीतर इन तीन विकारों का वध करने वाले त्रिपुरारी शिव की शक्ति का पुराणों में प्रतीकात्मक वर्णन अभिभूत करने वाला है। जटाजूट में सुशोभित चंद्रमा, सिर से बहती गंगा की धार, हाथ में डमरू, नीला कंठ और तीन नेत्रों वाला दिव्य रूप किसके हृदय को आकर्षित न कर लेगा। भगवान शंकर का तीसरा नेत्र ज्ञानचक्षु है। यह विवेकशीलता का प्रतीक है। इस ज्ञानचक्षु की पलकें खुलते ही काम जलकर भस्म हो जाता है। यह विवेक अपना ऋषित्व स्थिर रखते हुए दुष्टता को उन्मुक्त रूप से नहीं विचरने देता है। अंतत: उसका मद-मर्दन करके ही रहता है। वस्तुत: यह तृतीय नेत्र सृष्टा ने प्रत्येक व्यक्ति को दिया है। यदि यह तीसरा नेत्र खुल जाए, तो सामान्य बीज रूपी मनुष्य की संभावनाएं वट वृक्ष का आकार ले सकती हैं। शिव-सा शायद ही कोई संपन्न हो, पर वे संपन्नता के किसी भी साधन का अपने लिए प्रयोग नहींकरते हैं। हलाहल (विष) को गले में रोकने से वह नीलकंठ हो गए हैं अर्थात विश्व कल्याण के लिए उन्होंने विपरीत परिस्थितियों को तो स्वीकार किया, पर व्यक्तित्व पर उसका प्रभाव नहींप

हनुमानजी ओर भीम की कथा

हनुमानजी ओर भीम की कथा भीम को यह अभिमान हो गया था कि संसार में मुझसे अधिक बलवान कोई और नहीं है। दस हजार हाथियों का बल है उसमें, उसे कोई परास्त नहीं कर सकता... और भगवान अपने सेवक में किसी भी प्रकार का अभिमान रहने नहीं देते। इसलिए श्रीकृष्ण ने भीम के कल्याण के लिए एक लीला रच दी। द्रौपदी ने भीम से कहा, "आप श्रेष्ठ गदाधारी हैं, बलवान हैं, आप गंधमादन पर्वत से दिव्य वृक्ष के दिव्य पुष्प लाकर दें... मैंने अपनी वेणी में सजाने हैं, आप समर्थ हैं, ला सकते हैं। लाकर देंगे न दिव्य कमल पुष्प।" भीम द्रौपदी के आग्रह को टाल नहीं सके। गदा उठाई और गंधमादन पर्वत की ओर चल पड़े मदमस्त हाथी की तरह। किसी तनाव से मुक्त, निडर... भीम कभी गदा को एक कंधे पर रखते, कभी दूसरे पर रखते। बेफिक्री से गंधमादन पर्वत की ओर जा रहे थे... सोच रहे थे, अब पहुंचा कि तब पहुंचा, दिव्य पुष्प लाकर द्रौपदी को दूंगा, वह प्रसन्न हो जाएगी। लेकिन अचानक उनके बढ़ते कदम रुक गए... देखा, एक वृद्ध लाचार और कमजोर वानर मार्ग के एक बड़े पत्थर पर बैठा है। उसने अपनी पूंछ आगे के उस पत्थर तक बिछा रखी है जिससे रास्ता रुक गया है। पू

अर्जुन का अहंकार

महाभारत का युद्ध चल रहा था। अर्जुन के सारथी श्रीकृष्ण थे। जैसे ही अर्जुन का बाण छूटता, कर्ण का रथ कोसों दूर चला जाता। जब कर्ण का बाण छूटता तो अर्जुन का रथ सात कदम पीछे चला जाता। श्रीकृष्ण ने अर्जुन के शौर्य की प्रशंसा के स्थान पर कर्ण के लिए हर बार कहा कि कितना वीर है यह कर्ण? जो उस रथ को सात कदम पीछे धकेल देता है। अर्जुन बड़ा परेशान हुआ। असमंजस की स्थिति में पूछ बैठे कि हे वासुदेव! यह पक्षपात क्यों? मेरे पराक्रम की आप प्रशंसा करते नहीं एवं मात्र सात कदम पीछे धकेल देने वाले कर्ण को बारम्बार वाह वाही देते हो। श्रीकृष्ण बोले-अर्जुन तुम जानते नहीं। तुम्हारे रथ में महावीर हनुमान एवं स्वयं मैं वासुदेव कृष्ण विराजमान् हूँ। यदि हम दोनों न होते तो तुम्हारे रथ का अभी अस्तित्व भी नहीं होता। इस रथ को सात कदम भी पीछे हटा देना भी कर्ण के महाबली होने का परिचायक हैं। अर्जुन को यह सुनकर अपनी क्षुद्रता पर ग्लानि भी हुई। इस तथ्य को अर्जुन और भी अच्छी तरह तब समझ पाए जब युद्ध समाप्त हुआ। प्रत्येक दिन अर्जुन जब युद्ध से लौटते श्रीकृष्ण पहले उतरते, फिर सारथी धर्म के नाते अर्जुन को उतारते। अंतिम दिन वे

गोस्वामीतुलसीदास जी महाराज

 गोस्वामीतुलसीदास जी महाराज  पूरा नाम – गोस्वामी तुलसीदास जन्म – सवंत 1589 जन्मस्थान – राजापुर ( उत्तर प्रदेश ) पिता – आत्माराम दूबे माता – हुलसी शिक्षा – बचपन से ही वेद, पुराण एवं उपनिषदों की शिक्षा मिली थी। विवाह – रत्नावली के साथ।  जन्म के समय इनके मुह में पुरे दांत थे, अंत: अशुभ मानकर माता पिता द्वारा त्याग दिये जाने के कारण संत नरहरिदास ने काशी में उनका पालन पोषण किया था। ऐसा कहा जाता है की रत्नावली के प्रेरणा से घर से विरक्त होकर तीर्थ के लिए निकल पडे और तन – मन से भगवान राम की भक्ति में लीन हो गए। उनके द्वारा लिखा गया ‘रामचरितमानस’ हिंदू धर्म की रचना है और उसे घर – घर में आदर प्राप्त हुआ है। तुलसीदास ने अपने जीवन और कार्यो के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध करवाई है। बाद में 19 वी शताब्दी में प्राचीन भारतीय सूत्रों के अनुसार तुलसीदास के जीवन को भक्तामल में बताया गया था जिसकी रचना नाभादास ने की थी जिसमे उनके जीवनकाल को 1583 से 1639 के बीच बताया गया था। इसके बाद 1712 में भक्तिकाल पर टिपण्णी करते हुए प्रियादास ने भक्तिरसबोधिनी की रचना की। नाभादास ने भी तुलसीदास पर ट

मीरा चरित

मीरा चरित  द्वारिका में ,मीरा, एक ऐसे दुखी व्यक्ति जो पुत्र की मृत्यु के पश्चात हताश हो सन्यास लेना चाहता था ,उसका मार्ग दर्शन कर रही है । मीरा ने उसे समझाया कि इस तरह की परिस्थितियों से आये क्षणिक वैराग्य को आप भक्ति का नाम नहीं दे सकते । मीरा ने उसे सहज़ता से बताते हुये कहा ," अगर तुम भक्ति पथ पर शुभारम्भ करना ही चाहते हो तो शुष्क वैराग्य और सन्यास से नहीं ब्लकि भजन से करो। भजन का नियम लो , और इस नियम को किसी प्रकार टूटने न दो ।अपने शरीर रूपी घर का मालिक भगवान को बनाकर स्वयं उसके सेवक बन जाओ। कुछ भी करने से पूर्व भीतर बैठे स्वामी से उसकी आज्ञा लो ।जिस कार्य का अनुमोदन भगवान से मिले , वही करो ।इस प्रकार तुम्हारा वह कार्य ही नहीं , ब्लकि समस्त जीवन ही पूजा हो जायेगा ।नियम पूर्ण हो जाये तो भी रसना ( जीभ ) को विश्राम मत दो ।खाने , सोने और आवश्यक बातचीत को छोड़कर , ज़ुबान को बराबर प्रभु के नाम उच्चारण में व्यस्त रखो ।" " वर्ष भर में महीने दो महीने का समय निकाल कर सत्संग के लिए निकल पड़ो और अपनी रूचि के अनुकूल स्थानों में जाकर महज्जनों की वार्ता श्रवण करो। सुनने का धैर्

||श्री राधा स्तुति||

||श्री राधा स्तुति|| त्वं देवी जगतां माता विष्णुमाया सनातनी, . कृष्णप्राणाधिदेवि च कृष्णप्राणाधिका शुभा ||1|| कृष्णप्रेममयी शक्तिः कृष्णसौभाग्यरूपिणी . कृष्णभक्तिप्रदे राधे नमस्ते मङ्गलप्रदे .. ||2|| ||कृष्णाश्रय स्तुति|| विवेकधैर्यभक्त्यादिरहितस्य विशेषतः। पापासक्तस्य दीनस्य कृष्ण एव गतिर्मम॥ सर्वसामर्थ्यसहितः सर्वत्रैवाखिलार्थकृत्। शरणस्थमुद्धारं कृष्णं विज्ञापयाम्यहम्॥ भावार्थ : हे प्रभु! मुझमें सत्य को जानने की सामर्थ्य नहीं है, धैर्य धारण करने की शक्ति नहीं है, आप की भक्ति आदि से रहित हूँ और विशेष रूप से पाप में आसक्त मन वाले मुझ दीनहीन के लिए केवल आप भगवान श्रीकृष्ण ही मेरे आश्रय हों। हे प्रभु! आप ही सभी प्रकार से सामर्थ्यवान हैं, आप ही सभी प्रकार की मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाले हैं और आप ही शरण में आये हुए जीवों का उद्धार करने वाले हैं इसलिए मैं भगवान श्रीकृष्ण की वंदना करता हूँ। ||राधा कृष्ण स्तुति|| त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव। त्वमेव विद्या च द्रविणम त्वमेव, त्वमेव सर्वमम देव देवः।।

उद्धव-कृष्ण संवाद

उद्धव बचपन से ही सारथी के रूप में श्रीकृष्ण की सेवा में रहे, किन्तु उन्होंने श्री कृष्ण से कभी न तो कोई इच्छा जताई और न ही कोई वरदान माँगा। जब कृष्ण अपने *अवतार काल* को पूर्ण कर *गौलोक* जाने को तत्पर हुए, तब उन्होंने उद्धव को अपने पास बुलाया और कहा- "प्रिय उद्धव मेरे इस 'अवतार काल' में अनेक लोगों ने मुझसे वरदान प्राप्त किए, किन्तु तुमने कभी कुछ नहीं माँगा! अब कुछ माँगो, मैं तुम्हें देना चाहता हूँ। तुम्हारा भला करके, मुझे भी संतुष्टि होगी। उद्धव ने इसके बाद भी स्वयं के लिए कुछ नहीं माँगा। वे तो केवल उन शंकाओं का समाधान चाहते थे जो उनके मन में कृष्ण की शिक्षाओं, और उनके कृतित्व को, देखकर उठ रही थीं। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा- "भगवन महाभारत के घटनाक्रम में अनेक बातें मैं नहीं समझ पाया! आपके 'उपदेश' अलग रहे, जबकि 'व्यक्तिगत जीवन' कुछ अलग तरह का दिखता रहा! क्या आप मुझे इसका कारण समझाकर मेरी ज्ञान पिपासा को शांत करेंगे?" श्री कृष्ण बोले- “उद्धव मैंने कुरुक्षेत्र के युद्धक्षेत्र में अर्जुन से जो कुछ कहा, वह *"भगवद्गीता"* थी।

सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम्

कुंजीका स्त्रोत वासतव मे सफलता की कुंजी हि है,सप्तशती का पाठ इसके बिना पूर्ण नहीं माना जाता है.षटकर्म में भी कुंजिका रामबाण कि तरह कार्य करता है.परन्तु जब तक इसकी ऊर्जा को स्वयं से जोङ न लीया जाए तबतक इसके पूर्ण प्रभाव कम हि दिख पाते है.आज हम यहा कुंजिका स्त्रोत को सिद्ध करने कि विधि तथा उसके अन्य प्रयोगो पर चर्चा करेंगे।सर्व प्रथम सिद्धि विधान पर चर्चा करते है.साधक किसी भी मंगलवार अथवा शुक्रवार से यह साधना आरम्भ करे.समय रात्रि १० के बाद का हो और ११.३० के बाद कर पाये तो और भि उत्तम होगा।लाल वस्त्र धारण कर लाल आसन पर पूर्व अथवा उत्तर कि और मुख कर बैठ जाये।सामने बाजोट पर लाल वस्त्र बिछा दे और उस पर माँ दुर्गा का चित्र स्थापित करे.अब माँ का सामान्य पूजन करे तेल अथवा घी का दीपक प्रज्वलित करे.किसी भी मिठाई को प्रसाद रूप मे अर्पित करे.और हाथ में जल लेकर संकल्प ले,कि माँ मे आज से सिद्ध कुञ्जिका स्तोत्र का अनुष्ठान आरम्भ कर रहा हु.में नित्य ९ दिनों तक ५१ पाठ करूँगा,माँ मेरी साधना को स्वीकार कर मुझे कुंजिका स्तोत्र कि सिद्धि प्रदान करे तथा इसकी ऊर्जा को मेरे भीतर स्थापित कर दे.जल भूमि पर छोड़ द

जीवनोपयोगी कुछ सरल मंत्र

1. सामूहिक कल्याण के लिये- देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्त्या निश्शेषदेवगणशक्तिसमूहमूत्‍‌र्या। तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां भक्त्या नताः स्म विदधातु शुभानि सा नः॥ 2. विश्‍व के अशुभ तथा भय का विनाश करने के लिये- यस्याः प्रभावमतुलं भगवाननन्तो ब्रह्मा हरश्‍च न हि वक्तुमलं बलं च। सा चण्डिकाखिलजगत्परिपालनाय नाशाय चाशुभभयस्य मतिं करोतु॥ 3. विश्‍व की रक्षा के लिये- या श्रीः स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मीः पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धिः। श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा तां त्वां नताः स्म परिपालय देवि विश्‍वम्॥ 4. विश्‍व के अभ्युदय के लिये- विश्‍वेश्‍वरि त्वं परिपासि विश्‍वं विश्‍वात्मिका धारयसीति विश्‍वम्। विश्‍वेशवन्द्या भवती भवन्ति विश्‍वाश्रया ये त्वयि भक्तिनम्राः॥ 5. विश्‍वव्यापी विपत्तियों के नाश के लिये- देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य। प्रसीद विश्‍वेश्‍वरि पाहि विश्‍वं त्वमीश्‍वरी देवि चराचरस्य॥ 6. विश्‍व के पाप-ताप-निवारण के लिये- देवि प्रसीद परिपालय नोऽरिभीतेर्नित्यं यथासुरवधादधुनैव सद्यः। पापानि सर्वजगतां प्रशमं नयाशु उत्पातपाकजनितांश्‍च महो

एकादशी के दिन तुलसी जी की पूजा का फल

जिसने एकादशी के दिन तुलसी की मंजरियों से श्रीकेशव का पूजन कर लिया है, उसके जन्मभर का पाप निश्चय ही नष्ट हो जाते है । या दृष्टा निखिलाघसंघशमनी स्पृष्टा वपुष्पावनी रोगाणामभिवन्दिता निरसनी सिक्तान्तकत्रासिनी । प्रत्यासत्तिविधायिनी भगवत: कृष्णस्य संरोपिता न्यस्ता तच्चरणे विमुक्तिफलदा तस्यै तुलस्यै नम: ॥ ‘जो दर्शन करने पर सारे पापसमुदाय का नाश कर देती है, स्पर्श करने पर शरीर को पवित्र बनाती है, प्रणाम करने पर रोगों का निवारण करती है, जल से सींचने पर यमराज को भी भय पहुँचाती है, आरोपित करने पर भगवान श्रीकृष्ण के समीप ले जाती है और भगवान के चरणों मे चढ़ाने पर मोक्षरुपी फल प्रदान करती है, उस तुलसी देवी को नमस्कार है ।’ जो मनुष्य एकादशी को दिन रात दीपदान करता है, उसके पुण्य की संख्या चित्रगुप्त भी नहीं जानते । एकादशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण के सम्मुख जिसका दीपक जलता है, उसके पितर स्वर्गलोक में स्थित होकर अमृतपान से तृप्त होते हैं । घी या तिल के तेल से भगवान के सामने दीपक जलाकर मनुष्य देह त्याग के पश्चात् करोड़ो दीपकों से पूजित हो स्वर्गलोक में जाता है ।’

शिव पुराण

 शौनकजी के साधन विषयक प्रश्न पूछने पर सूतजी का उन्हें शिव पुराण की उत्कृष्ट महिमा सुनना श्रीशौनकजी ने पूछा - महाज्ञानी सूतजी ! आप सम्पूर्ण सिद्धांतो के ज्ञाता है | प्रभो ! मुझसे पुराणो के कथाओ के सारतत्व. विशेष रूप से वर्णन कीजिये | ज्ञान और वैराग्य सहित भक्ति से प्राप्त होनेवाले विवेक की वृद्धि कैसे होती है ?तथा साधुपुरुष किस प्रकार अपने काम क्रोध आदि मानसिक विकारो का निवारण करते है ? इस घोर कलिकाल में जीव प्रायः आसुर स्वभाव के हो गए है | उस जीव समुदाय को शुद्ध ( दैवीसंपति से युक्त ) बनाने के लिए सर्वश्रेष्ठ उपाय क्या है ? आप इस समय मुझे ऐसा कोई शास्वत साधन बताइये , जो कल्याणकारी वस्तुओ में सबसे उत्कृष्ट एवं परम मंगलकारी हो तथा पवित्र करने वाले उपयो में भी सबसे उत्तम पवित्रकारी उपाय हो | तात ! वह साधन ऐसा हो , जिसके अनुष्ठान से शीघ्र ही अन्तः कारन की विशेष शुद्धि हो जाये तथा उसमे निर्मल चित्तवाले पुरुषो को सदा के लिए शिव की प्राप्ति हो जाये | अब सूतजी कहते है -- मुनिश्रेष्ठ शौनक ! तुम धन्य हो ; क्युकी तुम्हारे ह्रदय में पुराण कथा सुनने का विशेष प्रेम एवं लालसा है | इसलिए मै शुद्ध

माता पिता की सेवा

एक बालक अपने माँ-बाप की खूब सेवा किया करता था उसके दोस्त उससे भी कहते कि अगर इतनी सेवा तुमने भगवान की की होती तो तुम्हे भगवान मिल जाते ! लेकिन इन सब चीजो से अनजान वो अपने माता पिता की सेवा करता रहा ! एक दिन उसकी माँ बाप की सेवा-भक्ति से खुश होकर भगवान ( मृत्युलोक ) धरती पर प्रकट हो गये ! उस वक्त वो बालक अपनी माँ के पाँव दबा रहा था ! भगवान दरवाजे के बाहर से बोले- दरवाजा खोलो बेटा-- मैं तुम्हारी सेवा से प्रसन्न होकर तुम्हे वरदान देने आया हूँ ! बालक ने कहा - इंतजार करो प्रभु मैं माँ की सेवा मे लगा हूँ ! भगवान बोले - देखो मैं वापस चला जाऊँगा! बालक ने कहा - आप जा सकते है भगवान मैं सेवा बीच मे नही छोड़ सकता ! कुछ देर बाद उसने दरवाजा खोला तो क्या देखता है भगवान बाहर खड़े थे ! भगवान बोले - लोग मुझे पाने के लिये कठोर तपस्या करते है पर मैं तुम्हे सहज ही मे मिल गया , तुमने मुझ से प्रतीक्षा करवाई ! बालक ने आर्त्त भाव से व्याकुल होकर जवाब दिया - हे ईश्वर जिस माँ बाप की सेवा ने आपको मेरे पास आने को मजबूर कर दिया उन माँ बाप की सेवा बीच मे छोड़कर मैं दरवाजा खोलने कैसे आता ! "यही इस जीवन का सार

सूर्य नमस्कार के 12 मंत्र

आदिकाल से प्रायः सभी सभ्यताओं और धर्मों में सूर्य पूजा को विशेष स्थान मिला है. जहां प्राचीन उपासकों ने सूर्य को केवल प्रकाश देनेवाला ही नहीं माना है, बल्कि इसके तेज (चमक) से ज्ञान-प्राप्ति, निरंतर गति से कर्मशीलता, पथ और दिशा से अनुशासन की प्रेरणा ली है, वहीं धार्मिक दृष्टि से सूर्य उपासना को निरोगी जीवन के साथ यश, सम्मान व प्रतिष्ठा देने वाली मानी गई है. हिन्दू वैदिक और पौराणिक आख्यानों में कहा गया है कि सूर्य समस्त जीव-जगत के आत्मस्वरूप हैं. इन्हीं से सब कुछ उत्पन्न हुआ है अर्थात वे सृष्टि के आदि-कारण हैं.  सूर्योपासना के प्रमुख मंत्र निम्न हैं- 1. श्रीसूर्य मंत्र आ कृष्णेन् रजसा वर्तमानो निवेशयत्र अमतं मर्त्य च। हिरणययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन॥ 2. सूर्य अर्घ्य मंत्र ॐ ऐही सूर्यदेव सहस्त्रांशो तेजो राशि जगत्पते। अनुकम्पय मां भक्त्या गृहणार्ध्य दिवाकर: ॥ ॐ सूर्याय नम:, ॐ आदित्याय नम:, ॐ नमो भास्कराय नम:। अर्घ्य समर्पयामि॥ 3. सूर्य गायत्री मंत्र ॐ आदित्याय विद्महे मार्तण्डाय धीमहि तन्न सूर्य: प्रचोदयात्। 4. सूर्य उपासना मंत्र ॐ जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं म

भगवान शिव के श्रृंगार

जानिए भगवान शिव के श्रृंगार और महिमा में छिपे ये रहस्य पुराण कहते हैं कि परमात्मा के विभिन्न कल्याणकारी स्वरूपों में भगवान शिव ही महाकल्याणकारी हैं। जगत कल्याण तथा अपने भक्तों के दुख हरने के लिए वह असंख्य बार विभिन्न नामों और रूपों में प्रकट होते रहते हैं जो मनुष्य के लिए तो क्या, देवताओं के लिए भी मुक्ति का मार्ग बनता है। इसी भावना के कारण भोले भंडारी शिव बाबा को त्रिदेवों में सर्वाधिक महत्व प्राप्त है। तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं में शिव बाबा ही ऐसे हैं जिनकी लिंग के रूप में पूजा होती है और जिन्हें उनके भक्त फक्कड़ बाबा के रूप में जानते हैं। उनकी पूजा ब्रह्मा, विष्णु, राम ने भी की है। सृष्टि की रचना ब्रह्मा जी ने की, विष्णु जी पालक और रक्षक का दायित्व निभाते हैं इसके चलते सृष्टि में जो असंतुलन पैदा होता है उसकी जिम्मेदारी भोले बाबा संभालते हैं। इसलिए उनकी भूमिका को ‘संहारक’ रूप में जाना जाता है। वह संहार करने वाले या मृत्यु देने वाली भूमिका निभाते नहीं हैं, वह तो मृत्युंजय हैं। वह संहार कर नए बीजों, मूल्यों के लिए जगह खाली करते हैं। उनकी भूमिका उस सुनार व लोहार की तरह है जो अच्

FUNDAMENTAL RIGHTS

FUNDAMENTAL RIGHTS The Constitution seeks to secure to the people “liberty of thought, expression, belief, faith and worship; equality of status and of opportunity; and fraternity assuring the dignity of the individual”. With this object, the fundamental rights are envisaged in Part III of the Constitution. The Concept of Fundamental Rights Political philosophers in the 17th Century began to think that the man by birth had certain rights which were universal and inalienable, and he could not be deprived of them. The names of Rousseau, Locke, Montaesgue and Blackstone may be noted in this context. The Declaration of American Independence 1776, stated that all men are created equal, that they are endowed by their creator with certain inalienable rights: that among these, are life, liberty and the pursuit of happiness. Since the 17th century, it had been considered that man has certain essential, basic, natural and inalienable rights and it is the function of the State to reco

मुद्रास्फीति

मुद्रास्फीति माल और सेवाओं के सामान्य मूल्यों में मुद्रास्फीति लगातार वृद्धि है। मुद्रास्फीति बढ़ाना पैसे की क्रय शक्ति को नष्ट कर देता है सभी चीजें समान होती हैं, अगर प्याज की 1 किलोग्राम की कीमत में- 15 से लेकर 20 रुपये तक की बढ़ोतरी के बाद मुद्रास्फीति की वजह से कीमतों में वृद्धि हुई है। मुद्रास्फीति अनिवार्य है- बील लेकिन एक उच्च मुद्रास्फीति की दर वांछनीय नहीं है क्योंकि इससे आर्थिक अस्वस्थता हो सकती है। एक उच्च स्तर मुद्रास्फीति की वजह से बाजारों में खराब संकेत भेजना पड़ता है। सरकारें नीचे कटौती करने की दिशा में काम करती हैं एक प्रबंधनीय स्तर पर मुद्रास्फीति मुद्रास्फीति आम तौर पर एक सूचकांक का उपयोग कर मापा जाता है। यदि सूचकांक गो- कुछ प्रतिशत अंक के आधार पर यह बढ़ती मुद्रास्फीति को इंगित करता है, इसी तरह सूचकांक इंडी- कैट्स मुद्रास्फीति को ठंडा करना मुद्रास्फीति सूचकांक के दो प्रकार हैं- थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई)। थोक मूल्य सूचकांक (डब्लूपीआई) - थोक मूल्य सूचकांक थोक मूल्यों पर कीमतों के आंदोलन को इंगित करता है। यह कीमतों म

स्टॉक ब्रोकर

स्टॉक ब्रोकर शेयर दलाल संभवतः एक सबसे महत्वपूर्ण वित्तीय मध्यस्थों में से एक है पता करने की जरूरत। स्टॉक ब्रोकर एक कॉर्पोरेट इकाई है, जो स्टॉक के साथ एक ट्रेडिंग सदस्य के रूप में पंजीकृत है एक शेयर ब्रोकिंग लाइसेंस का आदान-प्रदान और रखता है वे निर्धारित दिशानिर्देशों के तहत संचालित करते हैं सेबी। स्टॉक ब्रोकर स्टॉक एक्सचेंजों के लिए आपका प्रवेश द्वार है। आरंभ करने के लिए, आपको कुछ खोलना होगा एक ब्रोकर के साथ 'ट्रेडिंग अकाउंट' कहा जाता है जो आपकी आवश्यकता को पूरा करता है। आपकी आवश्यकता दलाल के कार्यालय और आपके घर के बीच निकटता के रूप में सरल हो एक ही समय में यह कर सकते हैं एक दलाल की पहचान करने के लिए जितना जटिल हो, जो आपको एक ऐसा मंच प्रदान कर सकते हैं जिसका उपयोग आप कर सकते हैं पूरे विश्व में कई एक्सचेंजों में पार किया जा सकता है। बाद में हम चर्चा करेंगे कि क्या है ये आवश्यकताएं और सही दलाल कैसे चुन सकती हैं एक ट्रेडिंग खाता आपको बाज़ार में वित्तीय लेनदेन करने की सुविधा देता है। एक ट्रेडिंग खाता एसी- दलाल के साथ गिनती करें जो निवेशक को सिक्योरिटीज खरीदने / बेचने क

शेयर बाजार क्या है?

शेयर बाजार क्या है? • इक्विटी में निवेश करना एक महत्वपूर्ण निवेश है जो हम मुद्रास्फीति को उत्पन्न करने के लिए करते हैं रिटर्न मारना यह पिछले अध्याय से हमने निष्कर्ष निकाला था यह कहने के बाद, हम इक्विटी में निवेश करने के बारे में कैसे जाते हैं? इससे पहले कि हम इस विषय में आगे बसा, यह पूर्व- पारिस्थितिकी तंत्र को समझने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है जिसमें इक्विटी संचालित होती है। जिस तरह से हम अपने दैनिक के लिए खरीदारी करने के लिए पड़ोस किराना स्टोर या सुपर मार्केट में जाते हैं जरूरत है, इसी तरह हम इक्विटी निवेश के लिए शेयर बाजार में (ट्रांसएक्स के रूप में पढ़ा) जाने जाते हैं। स्टॉक मार्केट है जहां सभी शेयरों में लेनदेन करना चाहते हैं साधारण शब्दों में लेनदेन करें खरीद और बिक्री का मतलब है सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए, आप किसी सार्वजनिक कॉमरेड के शेयर खरीद / बेच नहीं सकते हैं। शेयर बाजारों के माध्यम से लेनदेन किए बिना इंफोसिस जैसी कंपनी शेयर बाजार का मुख्य उद्देश्य आपको अपने लेनदेन को सुविधाजनक बनाने में मदद करना है। तो अगर आप एक हैं एक शेयर के खरीदार, शेयर बाजार में आपको विक

नाम जप का परिणाम

एक गाँव में एक वृद्ध स्त्री रहती थीं उसका कोई नहीं था वह गोबर के उपले बनाकर बेचती थी और उसी से अपना गुजारा चलाती थीं पर उस स्त्री की एक विशेषता थी वह कृष्ण भक्त थी !उठते-बैठते कृष्ण नाम जप किया करती थीं यहाँ तक उपले बनाते समय भी ! उस गाँव के कुछ दुष्ट लोग उसकी भक्ति का उपहास करते और एक दिन तो उन दुष्टों ने एक रात उस वृद्ध स्त्री के सारे उपले चुरा लिए और आपस में कहने लगे कि अब देखें कृष्ण कैसे इनकी सहायता करते हैं ! सुबह जब वह उठीं तो देखती है कि सारे उपले किसी ने चुरा लिए !वह मन ही मन हंसने लगी और अपने कान्हा को कहने लगीं -पहले माखन चुराता था और मटकी फोड़ गोपियों को सताता था अब इस बुढ़िया के उपले छुपा मुझे सताता है ;ठीक है जैसी तेरी इच्छा यह कह उसने अगले दिन के लिए उपले बनाना आरंभ कर दिये ! दोपहर हो चली तो भूख लग गयी पर घर में कुछ खाने को नहीं था दो गुड की डली थीं अतः एक अपने मुह में डाल पानी के कुछ घूंट ले लेटने चली गयी ! भगवान तो भक्त वत्सल होते हैं अतः अपने भक्त को कष्ट होता देख वे विचलित हो जाते हैं उनसे उस वृद्ध साधिका के कष्ट सहन नहीं हो पाये ;सोचा उसकी सहायता करने से पहले उ