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भगवान गणेश

शक्ति सूर्य विष्णु और  शिव इस देवताओंकी इसी  क्रमसे भक्ति करनेके बाद ही श्री गणेशजी  भक्ति प्राप्त्त होती है | जिस  साधक  को गणेशजी  बारेमे भक्ति प्रेम उत्पन्न हुआ है उसकी यह चारोंकी उपासना भक्ति जनम जनम में पूरी  हो गई है ऐसा समज़ना चाहिए | क्यों कि गणेशजी की भक्ति उपासना ही अन्तिम उपासना है | और उसने श्री गणेशजी के यहाँ एकनिष्ठ भाव रखकर उपासना और भक्ति करना   चाहिए| दुसरी बात  ऐसी है की यह सब समज जाने के बाद भी अगर मनमे दूसरी देवताओंकी उपासना का भक्ति का प्रेम विचार आ रहा है तो उसी   देवताकी भक्ति अधूरी  गई है ऐसा समज़कर उसीकी भक्ति पहले पूरी करनी चाहिए |
लेकिन वह करते समय श्री गणेशजीका आदिपूजन और स्मरण करना चाहिए |क्यों की कौनसा भी कर्म हो वैदिक लौकिक या यज्ञकर्म प्रथम गणेशजी का पूजन  करना चाहिए यह मनुष्य और देवताओंके लिए भी अनिवार्य है|"ॐकार रुपी भगवान यो वेदादौ प्रतिष्ठितः" ॐकार का अर्थ है श्री गणेश परमात्मा और बाकी  सब देव उसका अंश है | गण यह शब्द का अर्थ है समूह समुदाय  देवगण, मनुष्यगण, गन्धर्वगण और  ब्रह्मगण  यह  सबका अधिपती ईश जो  है  वह श्री गणेश ही है | इसिलीये वेदोने उसकी प्रशंसा करते वक्त कहा है "ब्रह्मणां  ब्रह्मणस्पती"|

शक्ती सुर्य विष्णू आणि शिव या क्रमाने या  देवतांच्या  केलेल्या उपासने नंतरच अन्त्तिम श्री गणेश उपासनेची प्राप्ती होते ज्या साधकाला श्री गणेश उपासनेची ओढ निर्माण झाली आहे त्याच्या या चार इतर उपासना जन्म जन्मांतरी पूर्ण झाल्याच आहेत असे समजावे आणि श्री गणेशाच्या ठिकाणी एकनिष्ठ भाव ठेवून उपासना करावी . दुसरी गोष्ट अशी कि  हे सर्व कळून सुद्धा  इतर उपासने  विषयी ओढ घेत असेल तर  आपली ती उपासना अद्याप पूर्ण व्हायची आहे असे समजून तीच म्हणजे आपली उपासना करावी पण ती करताना श्री गणेशाचे आदिपूजन स्मरण करूनच ती करावी कारण कुठलीही पूजा उपासना यज्ञकर्म वैदिक लौकिक कोणतेही कर्म असो श्री गणेशाचे स्मरण आदि पूजन हे मनुष्य आणि देवादिकांना हि अवश्य कर्तव्य ठरते.  "ॐकार रुपी भगवान यो वेदादौ प्रतिष्ठितः" ॐकारम्हणजेच प्रत्यक्ष श्री गणेश परमात्मा आहे आणि बाकी सर्व देव देवता त्याच्या अंश आहेत.  गण शब्द हा समूह वाचक आहे. देवगण, मनुष्यगण, गन्धर्वगण आणि इतर ब्रह्मगण यांचा अधिपती ईश असतो तो गणेश. म्हणूनच त्याला वेदांनी ब्रह्मणां  ब्रह्मणस्पती असे प्रशंसिले आहे म्हणूनच श्री गणेशाची उपासना करणाऱ्यांनी हे गणेशाचे खरे स्वरूप सार्वभौमत्व जाणून घेवूनच ती केली पाहिजे.

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