श्रेष्ठ भक्त
अर्जुन ने श्री कृष्ण से पूँछा - कि आपका गोपियों से क्या सम्बन्ध है ?
भगवान बोले - सुनो! गोपिया हमारी माता,पिता,स्त्री,सब है वो हमारी गुरु भी है और शिष्या भी है हमारी सब से बड़ी हितैषी भी ये ही है
जब ब्रह्मा सब गोप बछडो को चुरा ले गए थे तब हमने शिशु बन उनका दूध भी पिया ये पूछो कि गोपियों से हमारा क्या सम्बन्ध नही है.
गोपिया हमारी सब ओर से सब कुछ बन गई है ऐसा सम्बन्ध ना संसार में कोई था।और ना कोई होगा मेरे महत्व को,मेरी शारदा को,मेरी गति को, मेरे तत्व को,सब तरह से जितना गोपिया जानती हैं l
उतना कोई भी नही जानता, जैसे वृक्ष की जड़ में पानी देने से ही डाल,पते,फूल,सब सींच जाते है.किसी भी पेड़ को सींचना है तो उसकी जड़ में पानी दे दो जड़ में ना देकर अगर इधर उधर पानी छिड़कोगे तो फ़िर वो पेड़ नही बचेगा l चतुर लोग पेड़ की जड़ में पानी देते है l
जैसे मुख में भोजन देने से सम्पूर्ण शरीर तृप्त हो जाता है वैसे ही जो एकमात्र श्रीकृष्ण है उनकी सेवा से अपने आप माता-पिता, पुत्र, पति आदि सब का कल्याण हो जाता है.
फिर अर्जुन ने श्रीकृष्ण जी से पूँछा -कि महाराज आपके अनंत भक्त हुए है
और होंगे उन सब में से आप किसको श्रेष्ठ समझते है?
गूढ़ प्रश्न था कि अनंत भक्तों में श्रेष्ठ का चयन करना था.लेकिन भगवान ने वहां निर्णय कर दिया निस्संदेह
"गोपियाँ" और कहा कि जो गोपिया देखने में तो बिल्कुल आम संसारी कि तरह क्रिया करती हैं। पर वो अपने शरीर को भी अपना नही अपितु मेरा मानती हैं संसारी लोग शरीर को इसलिए सजाते है,ताकि दूसरे लोग देखे और उनकी ओर आकर्षित हों,पर गोपिया शरीर को श्री कृष्ण का मानती थी l उनकी हर क्रिया सिर्फ श्रीकृष्ण के लिए थी इसी से उनकी शरणागती गहरी हो गई l
जैसे ही अहंता व् ममता हटती है,जीव प्रभु रूप हो जाता है इसीलिए अर्जुन उनसे ज्यादा कोई भी मेरे गूढ़ प्रेम का पात्र नही है l
हम लोग जब भोजन करते है तो अपने शरीर की उपासना करते है हम लोग अपना शरीर मन को देते है। पर गोपिया जितनी भी क्रिया करती थी वो इस भाव से करती थी कि ये शरीर भगवान का है l इसी भाव के कारण उनकी उपासना सबसे गहरी होती थी इसलिए उन से ज्यादा कोई भी प्रेम का पात्र नही है ll
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