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सेवापराध-----श्रीमद्भागवत में भगवान की सेवा में अपराध और उनसे छूटने के उपाय

श्रीमद्भागवत में भगवान की सेवा में अपराध और उनसे छूटने के उपाय बताये गए है तो आईये जाने अपराध और उनसे छूटने के उपाय -
1. -भगवान के मन्दिर में खड़ाऊँ या सवारी पर चढ़कर जाना,
2. -भगवत-सम्बन्धी उत्सवों का सेवन न करना,
3.-भगवान के सामने जाकर प्रणाम न करना,
4. -उच्छिष्ट या अपवित्र अवस्था में भगवान की वन्दना करना,
5. -एक हाथ से प्रणाम करना
6.-भगवान के सामने ही एक स्थान पर खड़े-खड़े प्रदक्षिणा करना,
7. -भगवान के आगे पाँव फैलाना,
8. -पलंग पर बैठना,
9. -सोना,
10. -खाना,
11. -झूठ बोलना,
12. -जोर-जोर से चिल्लाना,
13.-परस्पर बात करना,
14.-रोना,
15.-झगड़ा करना,
16. -किसी को दण्ड देना,
17. -अपने बल के घंमड में आकर किसी पर अनुग्रह करना,
18.-स्त्रियों के प्रति कठोर बात कहना,
19.-कम्बल ओढ़ना,
20.-दूसरे की निन्दा,
21.-परायी स्तुति,
22.-गाली बकना,
23.-अधोवायु का त्याग (अपशब्द) करना
24.-शक्ति रहते हुए गौण उपचारों से पूजा करना-
25.-मुख्य उपचारों का प्रबन्ध न करना,
26.-भगवान को भोग लगाये बिना ही भोजन करना,
27.-सामयिक फल आदि को भगवान की सेवा में अर्पण न करना,
28.-उपयोग में लाने से बचे हुए भोजन को भगवान के लिये निवेदन करना,
29.-भोजन का नाम लेकर दूसरे की निन्दा तथा प्रशंसा करना,
30.-गुरु के समीप मौन रहना,
31.-आत्म-प्रशंसा करना तथा
32.-देवताओं को कोसना- ये विष्णु के प्रति बत्तीस अपराध बताये गये हैं.
'मधुसूदन! मुझसे प्रतिदिन हज़ारों अपराध होते रहते हैं; किन्तु मैं आपका ही सेवक हूँ, ऐसा समझकर मुझे उनके लिये क्षमा करें इस मन्त्र का उच्चारण करके भगवान के सामने पृथ्वी पर दण्ड की भाँति पड़कर साष्टांग प्रणाम करना चाहिये. ऐसा करने से भगवान श्रीहरि सदा हज़ारों अपराध क्षमा करते हैं.

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