शुक्रवार, 28 जुलाई 2017

गणेश जी का स्वरूप

गणेश जी का स्वरूप बहुत मनोहर एवं मंगलदायक है। वह एकदंत और चतुर्बाहु हैं। वह अपने चारों हाथों में पाश, अंकुश, दंत और वरमुद्रा धारण करते हैं। उनके ध्वज में मूषक का चिन्ह है। वे रक्तवर्ण,  लम्बोदर, शूर्पकर्ण तथा रक्त वस्त्रधारी हैं। अपने स्वजनों, उपासकों पर कृपा करने के लिए वह साकार हो जाते हैं। उनके मुख का दर्शन करना अत्यंत मंगलमय माना जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं उनका एक अंग ऐसा भी है जिसके दर्शन करने से दरिद्रा आती है।


गणपति जी के कानों में वैदिक ज्ञान, सूंड में धर्म, दाएं हाथ में वरदान, बाएं हाथ में अन्न, पेट में सुख-समृद्धि, नेत्रों में लक्ष्य, नाभि में ब्रह्मांड, चरणों में सप्तलोक और मस्तक में ब्रह्मलोक होता है। जो जातक शुद्ध तन और मन से उनके इन अंगों के दर्शन करता है उसकी विद्या, धन, संतान और स्वास्थ्य से संबंधित सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। इसके अतिरिक्त जीवन में आने वाली अड़चनों और संकटों से छुटकारा मिलता है।


शास्त्रों के अनुसार गणपति बप्पा की पीठ के दर्शन नहीं करने चाहिए। मान्यता है की उनकी पीठ में दरिद्रता का निवास होता है, इसलिए पीठ के दर्शन नहीं करने चाहिए।  अनजाने में पीठ के दर्शन हो जाएं तो पुन: मुख के दर्शन कर लेने से यह दोष समाप्त हो जाता है।

इन बातो का रखें ध्यान:

 एक घर में तीन गणपति की पूजा न करें।

 घर के मेन गेट पर गणेशजी का स्वरूप लगाकर उसके ठीक पीछे उनका दूसरा स्वरूप इस प्रकार लगाएं कि दोनों की पीठ एक दूसरी से मिली रहें, इससे वास्तुदोष शांत होता है ।

 घर या ऑफिस में श्रीगणेश का स्वरूप लगते समय यह ध्यान रखें की इन का मुंह दक्षिण-पश्चिम दिशा में न हो । 

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