लक्ष्मी जी का प्रतीक "कमल फूल "
ऋषियों ने सभी देवताओं की मूर्तियों और चित्रों का निर्माण इसलिए किया की कलयुग में मानव देवों के बारे में सही ज्ञान प्राप्त कर सके लेकिन मनुष्य की रुचि अध्यात्म में ना होने अथवा औपचारिकता मात्र होने के कारण एवं बौद्धिक स्तर की कमी के कारण मानव उनके दर्शन नहीं कर पाता है ! उनके प्रतीकों के चिंतन एवं मनन तथा सूत्रों के गूढ़ अर्थ को समझने से "देव दर्शन " आज भी संभव है !
१. सूत्र है -- माता लक्ष्मी "सत्व गुण " संपन्न है ! इसका तात्पर्य मेरे विवेक के अनुसार ( आप अपने विवेक से इसका गूढ़ार्थ समझ सकते है या मेरे लेख में कुछ सत्य ज्ञान को जोड़ सकते है ) "नेक कमाई " है जो नष्ट नहीं होती एवं " फलती फूलती " है और परमार्थ के कार्य में ही खर्च होती है ! पौराणिक कथाओं में भी यही कहा गया है की " जहाँ नारायण है वहीँ लक्ष्मी है " यानि जहाँ " देविक प्रवृतियां " है वही लक्ष्मी है ! ( नारायण एक देव है )
जबकि पाप एवं अन्यायपूर्ण तरीके से कमाया धन "दरिद्रा " है जो लक्ष्मी जी की बड़ी बहन है और "तामस गुण " संपन्न है ! उसकी क्रय शक्ति वैसी ही है जो लक्ष्मी जी की है परन्तु तामसिक होने के कारण विषय भोग में खर्च होने वाली एवं अंततः तामस यानि अज्ञान को उत्पन्न करने वाली है ! दोनों बहने एक रूप होने की कारण लोग भ्रमित होकर लक्ष्मी जी के स्थान पर दरिद्रा को आमंत्रित कर बैठते है और भ्रष्ट तरीकों से धन की कमाई करते है !
२. लक्ष्मी जी को "कमल के फूल " पर विराजमान दिखाया है !
कमल के फूल की अनेक पंखुडिया है जो धीरे धीरे खिलती है एवं पुष्प हवा को सुगंधमय बनाते है ! यह कमल का फूल अनेक मानवीय गुणों ( जैसे कुशल चिकित्सक , इंजीनियर , शिक्षक एवं अनेक विद्याओं के जानकार इत्यादि ) का धोतक है साथ ही अनेक स्रोतों से आय ( अनेक पंखुडिया ) की द्योतक है ! यानि नेक कमाई से अनेक आय के स्रोत एवं अनेक प्रकार के मानवीय गुण जैसे कार्यकुशलता , विवेकशील , उद्यमी एवं नेकी इत्यादि उत्पन्न होते है ! अपने अंदर धन के अलावा कार्य कुशलता एवं आध्यात्मिक प्रवृति जैसे गुण भी उत्पन्न कर लेता है !
अतः अपने बच्चों को अन्यायपूर्ण तरीके से कमाया धन जैसे रिश्वत ,ठगी ,बेईमानी एवं चोरी इत्यादि से प्राप्त धन से पोषित ना करें ! पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसे धन में लक्ष्मी का नहीं दरिद्रा का वास है जो आपके वंश में अज्ञान को उत्पन्न करेगी और विषय भोग को बढ़ाकर आलस एवं अहंकार को बढ़ावा देगी !
इस प्रकार हमारे ऋषियों ने देव दर्शन कर नेक कर्म करने की और प्रेरित होने का सन्देश दिया जो इन मूर्तियों एवं चित्रों से अपने विवेक के अनुसार समझने की आवश्यकता है ! इस प्रकार अन्य देवों के देव दर्शन का चिंतन एवं मनन करके "सन्मार्ग " पर अग्रसर हो सकते है !
ऋषियों ने सभी देवताओं की मूर्तियों और चित्रों का निर्माण इसलिए किया की कलयुग में मानव देवों के बारे में सही ज्ञान प्राप्त कर सके लेकिन मनुष्य की रुचि अध्यात्म में ना होने अथवा औपचारिकता मात्र होने के कारण एवं बौद्धिक स्तर की कमी के कारण मानव उनके दर्शन नहीं कर पाता है ! उनके प्रतीकों के चिंतन एवं मनन तथा सूत्रों के गूढ़ अर्थ को समझने से "देव दर्शन " आज भी संभव है !
१. सूत्र है -- माता लक्ष्मी "सत्व गुण " संपन्न है ! इसका तात्पर्य मेरे विवेक के अनुसार ( आप अपने विवेक से इसका गूढ़ार्थ समझ सकते है या मेरे लेख में कुछ सत्य ज्ञान को जोड़ सकते है ) "नेक कमाई " है जो नष्ट नहीं होती एवं " फलती फूलती " है और परमार्थ के कार्य में ही खर्च होती है ! पौराणिक कथाओं में भी यही कहा गया है की " जहाँ नारायण है वहीँ लक्ष्मी है " यानि जहाँ " देविक प्रवृतियां " है वही लक्ष्मी है ! ( नारायण एक देव है )
जबकि पाप एवं अन्यायपूर्ण तरीके से कमाया धन "दरिद्रा " है जो लक्ष्मी जी की बड़ी बहन है और "तामस गुण " संपन्न है ! उसकी क्रय शक्ति वैसी ही है जो लक्ष्मी जी की है परन्तु तामसिक होने के कारण विषय भोग में खर्च होने वाली एवं अंततः तामस यानि अज्ञान को उत्पन्न करने वाली है ! दोनों बहने एक रूप होने की कारण लोग भ्रमित होकर लक्ष्मी जी के स्थान पर दरिद्रा को आमंत्रित कर बैठते है और भ्रष्ट तरीकों से धन की कमाई करते है !
२. लक्ष्मी जी को "कमल के फूल " पर विराजमान दिखाया है !
कमल के फूल की अनेक पंखुडिया है जो धीरे धीरे खिलती है एवं पुष्प हवा को सुगंधमय बनाते है ! यह कमल का फूल अनेक मानवीय गुणों ( जैसे कुशल चिकित्सक , इंजीनियर , शिक्षक एवं अनेक विद्याओं के जानकार इत्यादि ) का धोतक है साथ ही अनेक स्रोतों से आय ( अनेक पंखुडिया ) की द्योतक है ! यानि नेक कमाई से अनेक आय के स्रोत एवं अनेक प्रकार के मानवीय गुण जैसे कार्यकुशलता , विवेकशील , उद्यमी एवं नेकी इत्यादि उत्पन्न होते है ! अपने अंदर धन के अलावा कार्य कुशलता एवं आध्यात्मिक प्रवृति जैसे गुण भी उत्पन्न कर लेता है !
अतः अपने बच्चों को अन्यायपूर्ण तरीके से कमाया धन जैसे रिश्वत ,ठगी ,बेईमानी एवं चोरी इत्यादि से प्राप्त धन से पोषित ना करें ! पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसे धन में लक्ष्मी का नहीं दरिद्रा का वास है जो आपके वंश में अज्ञान को उत्पन्न करेगी और विषय भोग को बढ़ाकर आलस एवं अहंकार को बढ़ावा देगी !
इस प्रकार हमारे ऋषियों ने देव दर्शन कर नेक कर्म करने की और प्रेरित होने का सन्देश दिया जो इन मूर्तियों एवं चित्रों से अपने विवेक के अनुसार समझने की आवश्यकता है ! इस प्रकार अन्य देवों के देव दर्शन का चिंतन एवं मनन करके "सन्मार्ग " पर अग्रसर हो सकते है !
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