श्रम का महत्व


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भाग्य और कर्म धरती की
सैर कर रहे थे।
.
घूमते-घूमते उनकी नजर
एक भिखारी पर पड़ी।
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भाग्य के मन में दया
उपजी और उसने अपनी
उंगली से उतारकर सोने
की अंगूठी उसे दे दी।
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अंगूठी बेचकर भिखारी ने
कुछ दिन सुख से बिताए।
.
अगली बार जब कर्म
और भाग्य दोबारा उधर
से गुजरे तो भिखारी को
फिर भीख मांगते देखा।
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इस बार भाग्य ने अपने
गले से उतारकर सोने
का हार उसे दे दिया।
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भिखारी के थोड़े दिन
और सुख से बीत गए।
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कर्म और भाग्य तीसरी
बार आए तो उन्होंने
भिखारी को फिर भीख
मांगते देखा।
.
भाग्य को बड़ा क्रोध आया।
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बोला, कितना भी भला
कर लो, यह दरिद्र का
दरिद्र ही रहेगा !
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लेकिन इस बार कर्म के
मन में दया आ गई।
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वह भिखारी से बोला-
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'हट्टे-कट्टे हो, तुम कोई
काम क्यों नहीं करते ?
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भीख मांगकर कब तक
गुजारा चलेगा ?'
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भिखारी बोला- 'काम-
धंधे के लिए पास में कुछ
पैसे भी तो हों !'
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कर्म ने कहा- 'देखो, मैं
तुम्हें एक ठेली फल देता
हूं।
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तुम इन्हें बेच कर धंधा
करो।'
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भिखारी खुश हो गया।
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बहुत दिनों के बाद जब
कर्म और भाग्य घूमते-
घूमते फिर उस नगर में
आए तो उन्होंने खूब ढूंढा,
.
पर उस भिखारी के दर्शन
नहीं हुए।
.
अंत में जब वे मुख्य
बाजार से गुजरे तो देखा
भिखारी तो अब फलों का
बड़ा व्यापारी बन चुका
था।
.
भाग्य उसे देखता रह
गया।
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कर्म ने मुस्कराते हुए
कहा, 'देखा, तुमने इसे
भीख में सोना दिया और
मैंने इसे श्रम की गरिमा
से परिचित कराया।
.
सोना पाकर तो यह
निठल्ला बना रहा,
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लेकिन श्रम का महत्व
समझते ही काम में मन
लगाकर फलों का इतना
बड़ा व्यापारी बन गया।'
.
भाग्य उसकी बात का
मर्म समझ गया।


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