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सुर एवं असुर

सुर एवं असुर 

प्राचीन भारत की गाथाओं में आपने सुर और असुर दो प्रजातियों के बारे में जरूर सुना होगा। अगर हम श्रीमद्भागवत गीता का अध्‍ययन करें तो स्थितियां खुद ब खुद स्पष्ट होने लगती हैं। विडम्बना ये है कि हमने अपने ही धर्मग्रथों को पढ़ना छोड़ दिया है।
गीता के 16वें अध्याय में सुर और असुर "प्रवृतियों " के बारे में विस्तार से बताया गया है। तो आइए पहले ये जानते हैं कि आसुरी प्रवृतिया क्या है। आप खुद पढ़िये और अपना मुल्यांकन स्वयम करें ।
श्रीमद्भागवत गीता के 16वें अध्‍याय में भगवान श्रीकृष्‍ण कहते हैं,
अशुद्ध और असत्य बोलने वाले ,,,,,,,,,,,,,
''असुर स्वाभाव वाले मनुष्य प्रवृत्‍ति और निवृत्‍ति इन दोनों को ही नहीं जानते। इसलिए उनमें ना तो बाहर की ना ही भीतर की शुद्धि रहती है। वो ना तो श्रेष्ठ आचरण करते हैं और ना ही सत्य भाषण करते हैं।'' (16/7)
ईश्वर की सत्ता से इंकार करते हैं ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
''आसुरी प्रकृति वाले मनुष्य कहा करते हैं कि जगत् आश्रय रहित, सर्वथा असत्य और बिना ईश्वर के अपने आप केवल स्त्री पुरुष के संयोग से उत्पन्न है। अतएव केवल काम ही इसका कारण है।'' (16/8)
''इस मिथ्‍या ज्ञान को स्वीकार करके ऐसे लोग जिनका स्वाभाव नष्ट हो गया है तथा जिनकी बुद्धि मंद है वे सबका अपकार करने वाले क्रूरकर्मी मनुष्य केवल जगत् के नाश के लिए ही समर्थ होते हैं।'' (16/9)
मद से युक्त रहते हैं,,,,,,,,,,
''वे दम्भ , मान और मद से युक्त मनुष्य किसी प्रकार भी पूरी ना होने वाली कामनाओं का आश्रय लेकर, अज्ञान से मिथ्या सिद्धांतों को ग्रहण करके और भृष्ट आचरणों को धारण करके संसार में विचरण करते हैं।'' (16/10)
भोग और चिंता में लिप्त रहते हैं ,,,,,,,,,,,,,
''वे मृत्यु पर्यन्त रहने वाली असंख्य चिंताओं का आश्रय लेने वाले, विषय भोगों के भोगने में तत्पर रहने वाले होते हैं।'' (16/11)
अन्यायपूर्वक धन जमा करते हैं ,,,,,,,,,,,,,
''वे आशा के सैकड़ों मनोविकारों से बंधे हुए मनुष्य काम क्रोध के वश में होकर विषय भोगों के लिए अन्याय पूर्वक धन आदि पदार्थों का संग्रह करने की चेष्टा करते हैं।'' (16/12)
दूसरों से द्वेष ,,,,,,,,,,,
''वह शत्रु मेने मारा और उन दूसरे शत्रुओं को भी मैं मार डालूंगा। मैं ईश्वर हूं, ऐश्वर्य को भोगने वाला हूं। मैं सब सिद्धियों से युक्त हूं और बलवान तथा सुखी हूं, ऐसी धारणा रखने वाले असुर हैं।'' (16/13)
घमंडी होते हैं ,,,,,,,,,,
''मैं बड़ा धनी और बड़े कुटुंब या संगठन वाला हूं। मेरे समान दूसरा कौन है।'' इस प्रकार अज्ञान से मोहित रहने वाले तथा अनेक प्रकार से भ्रमित चित्त वाले मोहरूप जाल में बंधे और भोगों में लिप्त असुर लोग महान अपवित्र नरक में गिरते हैं।'' (16/14-15)
पाखंडी होते हैं ,,,,,,,,,,
वे अपने आपको ही श्रेष्ठ मानने वाले घमंडी पुरुष धन और मान के मद से युक्त होकर केवल नाम मात्र के यज्ञों द्वारा पाखंड से शास्त्र विधि रहित यज्ञ करते हैं।'' (16/17)
असुर बार बार असुर ही बनते हैं ,,,,,,,,,,
''उन द्वेष करने वाले, पापाचारी और क्रूरकर्मी नराधमों को मैं संसार में बार-बार आसुरी योनियों मं ही डालता हूं।'' (16/19)
जन्म जन्मांतर तक असुर ,,,,,,,,,
''हे अजुर्न, वे मूढ़ मुझको ना प्राप्त होकर ही हर जन्म में आसुरी योनि को प्राप्त होते हैं अर्थात् नरकों में पड़े रहते हैं।'' (16/20)|

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