त्रयंवकेश्वर ज्योतिर्लिंग

त्रयंवकेश्वर ज्योतिर्लिंग 

महाराष्ट्र के नासिक जिले में गोदावरी नदी के करीव स्थित है। इसके सबसे नजदीक ब्रम्हागिरी पर्वत है और इसी पर्वत से गोदावरी नदी निकलती है। प्राचीनकाल में यह स्थान गौतम ऋषि की तपोभूमि थी। अपने ऊपर लगे गोहत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए गौतम ऋषि ने कठोर तप कर भगवान शिव से मां गंगा को यहाँ अवतरित करने का वरदान मांगा था। फलस्वरूप दक्षिण की गंगा अर्थात गोदावरी नदी का उद्गम हुआ।  ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव के तीन नेत्र हैं इसीलिए उन्हैं त्रयंवकेश्वर भी कहा जाता है। इसी कारण इस मंदिर का नाम त्रयंवकेश्वर पड़ा है। धार्मिक शास्त्रों में शिव पुराण में भी मंदिर त्रयंवकेश्वर मंदिर का वर्णन मिलता है। यहां से ब्रम्हागिरी पर्वत पर जाने के लिए सात सौ सीड़ियां हैं। सीड़ियोंसे ऊपर जाने के मध्य में रामकुण्ड और लक्ष्मण कुण्ड हैं। ऊपर पहुंचने पर गो-मुख जो गोदावरी नदी के उद्गम स्थान है के दर्शन होते हैं।
मान्यता-
  यह ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। इस मंदिर की विशेष बात यह है कि मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश करने पर लिंग नहीं वल्कि केवल आर्घा दिखाई देती है। ध्यान से देखने पर एक-एक इंच के तीन लिंग दिखाई देते हैं। इन्हीं तीन लिंगों को त्रिदेव व्रम्हा, विष्णु और शिव का प्रतीक माना गया है। इस स्थान पर तीनों देवों की पूजा संयुक्त रूप से की जाती है। भोर के समय की होने बाली पूजा के बाद इस आर्घा पर चांदी का मुकुट चढ़ा दीया जाता है। त्रयंबकेश्वर महाराज को इस गाँव का राजा माना जाता है। माना जाता है कि हर सोमवार को त्र्यंबकेश्वर के राजा अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए नगर भ्रमण के लिए निकलते हैं। इस दौरान त्रयंकेश्वर महाराज की पालकी निकाली जाती है और कुशावर्त तीर्थ तक ले जायी जाती है और बाद में यहां बापिस लायी जाती है।

कुशावर्त तीर्थ के बारे में मान्यता है कि ब्रम्हागिरी पर्वत से गोदावरी नदी बार-बार लुप्त हो जाती थी। गोदावरी का पलायन रोकने के लिए गोतम ऋषि ने एक कुशा की मदद लेकर गोदावरी को बंदन में बांद दिया था, उसके बाद से इस कुण्ड में हमेशा पानी रहता है।
मंदिर का निर्माण-

  कहा जाता है कि त्रयम्बकेश्वर महादेव का वर्तमान भवन 1755 से 1786 के बीच वाला जी बाजीराव नाना साहेब पेशवा ने बनवाया था। इस मंदिर को वनाने के लिए काले पत्थर का इस्तमाल किया गया है। यह मंदिर सिंधू-आर्य शैली का उत्कृष्ट नमूना है। इस मंदिर की नक्काशी वेहद सुंदर है। यह मंदिर अपने विशिष्ट आकार और खूबसूरत दृश्यावली के कारण पर्यटकों के आकषर्ण का केंद्र है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर को बनवाने के लिए बहुत अधिक धन खर्च किया गया था। इस मंदिर को बनवाने के लिए 16 लाख रुपये  खर्च किए गए थे जो उस समय के हिसाव से बहुत ज्यादा थे।
पौराणिक कथा-
  शिवपुराण में इस ज्योतिर्लिंग के संबंध में प्रचलित कथा के अनुसार एक बार महर्षि गौतम के तपोवन में रहने वाले ब्राह्मणों की पत्नियाँ किसी बात पर उनकी पत्नी अहिल्या से नाराज हो गईं। उन्होंने अपने पतियों को ऋषि गौतम का उपहास करने के लिए प्रेरित किया। उन ब्राह्मणों ने इस कार्य की पूर्ति के लिए भगवान श्रीगणेश जी की आराधना की।

   उनकी आराधना से प्रसन्न होकर श्री गणेशजी प्रकट हुए और उनसे वर मांगने को कहा। उन ब्राह्मणों ने कहा कि 'भगवन' यदि आप हम पर प्रसन्न हैं तो किसी प्रकार ऋषि गौतम को इस आश्रम से बाहर निकाल दें। उनकी यह बात सुनकर गणेशजी ने उन्हें ऐसा वर न मांगने के लिए समझाया किंतु वे नहीं माने।
अंततः गणेशजी को विवश होकर उनकी बात माननी पड़ी। तब उन्होंने एक दुर्बल गाय का रूप धारण किया और ऋषि गौतम के खेत में जाकर फसल चरने लगे। गाय को फसल चरते देखकर गोतम ऋषि हाथ में तृण लेकर धीरे से उसे हांकने लगे। उन तृणों का स्पर्श होते ही वह गाय वहीं मरकर गिर पड़ी।

  ब्राह्मणों को इसी बात का इंतजार था। जैसे ही उन्है इस बात का पता चला सारे ब्राह्मण एकत्र होकर गो-हत्यारा कहकर ऋषि गौतम की भर्त्सना करने लगे। ऋषि गौतम इस घटना से बहुत आश्चर्यचकित और दुःखी थे। अब उन ब्राह्मणों ने उनका वहां रहना दूभर कर दिया। वे कहने लगे कि गो-हत्या के कारण तुमने हमारे बीच रहने का अधिकार खो दिया है। अब तुम्हैं वेद-पाठ और यज्ञादि के कार्य करने का कोई अधिकार नहीं रह गया है। अत: तुम्हैं यह स्थान छोड़कर किसी दूसरे स्थान पर चले जाना चाहिए। अंतत: अनुनय भाव से ऋषि गौतम ने उन ब्राह्मणों से गो-हत्या के पाप के प्रायश्चित का उपाय पूछा।

   तब उन्होंने कहा कि तुम अपने पाप को सबको बताते हुए तीन बार पूरी पृथ्वी की परिक्रमा पूरी करो। इसके बाद ब्रह्मगिरी पर्वत की 101 परिक्रमा करने के बाद तुम्हारी शुद्धि होगी अथवा यहां गंगाजी को यहां लाकर उनके जल से स्नान करके शिवजी की आराधना करो। इसके बाद पुनः गंगाजी में स्नान करके इस ब्रह्मगीरी पर्वत की 11 बार परिक्रमा करो। फिर सौ घड़ों से पवित्र जल से पार्थिव शिवलिंग को स्नान कराने से तुम्हारा उद्धार होगा।

  ब्राह्मणों के कहे अनुसार महर्षि गौतम वे सारे कार्य पूरे किए और पत्नी के साथ भगवान शिव की आराधना करने लगे। उनकी अअराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने प्रकट हुए और उनसे वर माँगने को कहा। महर्षि गौतम ने उनसे कहा कि 'भगवन' यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो आप मां गंगा को यहां अवतरित करें और मुझे गो-हत्या के पाप से मुक्त कर दें। भगवान शिव ने कहा कि तुम सर्वथा निष्पाप हो। तुमने कोई पाप नहीं किया है, गो-हत्या का अपराध तुम पर छल पूर्वक लगाया गया था। अगर तुम चाहो तो छल पूर्वक ऐसा करवाने वाले तुम्हारे आश्रम के ब्राह्मणों को मैं दण्ड देना चाहता हूं।

   इस पर महर्षि गौतम ने कहा कि 'भगवन' उन्हीं के कारण तो मुझे आपका दर्शन प्राप्त हुआ है। अब उन्हें मेरा परमहित समझकर उन पर आप क्रोध न करें। तब बहुत से ऋषियों, मुनियों और देव गणों ने वहां एकत्र हो गौतम ऋषि के साथ मिलकर लोक कल्याण के लिए भगवान शिव से सदा वहां निवास करने की प्रार्थना की। वे उनकी बात प्रसन्न हुए और वहां त्रयंम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से स्थापित हो गए। गौतमजी के अनुरोध पर लाई गई गंगा जी भी वहां पास में गोदावरी के नाम से प्रवाहित होने लगीं। तब से यह ज्योतिर्लिंग त्रयंवकेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

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