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भगवान गणेश

गणेश यह शिवपुत्र समझानेसे  लोग ऐसा भी समझते है कि इसे प्रथम पूजन का मान और वर शंकरजीने हि दिया है लेकिन ऐसा समझाना अधःपात है शिवपुराण मे हि  लिखा है  कि शंकर पार्वती के विवाह मे आदिपूजन भगवान श्री गणेशजीका हि हुआ था | जो कि आदिदेव परमदेव है । शिवपार्वतीने तपस्या करक्रे उनसे वर प्राप्त किया कि आप हमारे यह पुत्र के रूप मे जनम ले और भगवान गणेशजीने  स्वनान्देशजीने उन्हे  प्रसन्न होकर उनके यह अवतार  धारण किया।   भगवान विष्णू सुर्य शिव शक्ती ब्रह्मा यह  सब देव गणेशजीकाहि  ध्यान आराधन   करते है । खुद शंकर कहते है कि "गणेश देव देवेश ब्रह्म महेश मादरात ।  ध्यायामी  सर्व भावज्ञ कुलदेव सनातनम । अर्थात भगवान गणेश हि सबके कुलदेव है सनातन है परमदेव है आदिदेव है ।
अठराह महापुराण पढके हि गणेशपुराण पढनेकी   पात्रता मिलती है । इसिलीऐ  गणेशपुराण को उपपुराण कहा है । यहा उप का अर्थ है कनिष्ठ ऐसा नही है बल्कि उप का अर्थ है महत  श्रेष्ठ । अठराह महापुराण पढके हि आप गणेशपुराणका  भव्यत्त्व दिव्यत्व अनुभव कर सकते है । श्री गणेश प्रभू हि पूर्ण ॐकार  रूप है ।और यहि भगवान श्री गणेश शिव विष्णू शक्ती सुर्य और ब्रह्मा यह पंचदेवता के    पिता है । और इनको सत्ता और सामर्थ्य देनेवाले वरदमूर्ती है । यहि भगवान गणेशजी की जो कि पूर्ण ब्रह्म है सबसे शास्त्रोक्तरितीसे विधीविधानसे  उनका पूर्ण और सत्त्य स्वरूप जानकर उपासना होनि चाहिये । इस लोकमे उन सब लोगोंको भगवान गणेशजीकि कृपांसें शांति समाधान  धन धान्य  जय मिलनेके बाद उनके हाथ  से गणेशजीकि ठिकरूप से भक्ती सेवा कार्य उपासना होनी चाहिये । उसके बाद हि उन्हे परममोक्ष जो गणेशजीका स्वानंदलोक है उस लोक कि प्राप्ती होगी । एक बार स्वानंद लोक मिलने के बाद पुनः पृथ्वीपर कभीभी नहि आना  पडेगा यहि सत्य है । इसी हेतुसे यह गणेशपुराण हिंदी में प्रकाशीत करने  का कार्य उन्हीकी इच्छासे  कृपादृष्टीसे प्रेरणासें  किया गया  है ।
शक्ति सूर्य विष्णु और शिव इस देवताओंकी इसी क्रमसे भक्ति करनेके बाद ही श्री गणेशजी कि भक्ति प्राप्त्त होती है | जिस साधक को गणेशजी बारेमे भक्ति प्रेम उत्पन्न हुआ है उसकी यह चारोंकी उपासना भक्ति जनम जनम में पूरी हो गई है ऐसा समज़ना चाहिए | क्यों कि गणेशजी की भक्ति उपासना ही अन्तिम उपासना है | और उसने श्री गणेशजी के यहाँ एकनिष्ठ भाव रखकर उपासना और भक्ति करना चाहिए| दुसरी बात ऐसी है की यह सब समज जाने के बाद भी अगर मनमे दूसरी देवताओंकी उपासना का भक्ति का प्रेम विचार आ रहा है तो उसी देवताकी भक्ति अधूरी गई है ऐसा समज़कर उसीकी भक्ति पहले पूरी करनी चाहिए |
लेकिन वह करते समय श्री गणेशजीका सार्वभौमत्व जानकर उनका आदिपूजन और स्मरण करना चाहिए |क्यों की कौनसा भी कर्म हो वैदिक लौकिक या यज्ञकर्म प्रथम गणेशजी का पूजन करना चाहिए यह मनुष्य और देवताओंके लिए भी अनिवार्य है|
 "ॐकार रुपी भगवान यो वेदादौ प्रतिष्ठितः" ॐकार का अर्थ है श्री गणेश परमात्मा और बाकी सब देव उसका अंश है | गण यह शब्द का अर्थ है समूह समुदाय देवगण, मनुष्यगण, गन्धर्वगण और ब्रह्मगण यह सबका अधिपती ईश जो है वह श्री गणेश ही है | इसिलीये वेदोने उसकी प्रशंसा करते वक्त कहा है "ब्रह्मणां ब्रह्मणस्पती"|
गणेश भक्त कृपया इस बात का ध्यान रखें :-
१) गणेशजी का नाम लेते वक्त खुदको शेंदूर का तिलक करके लगाना चाहिये ( Orange color shendur not red color sindoor) अगर उसका नाम लेते वक्त शेंदूर का तिलक  नही  है तो वह नाम उसे मान्य हि नाही होता बल्की उसे बहोत गुस्सा भी आता हैं ।
२) गणेशजीको प्रिय और प्रसन्न करानेवली वस्तुऐ।
           दुर्वापत्र, शमीपत्र, लाल रंगके फुल, रक्त्तचन्दन, श्वेत मंदार।
३) गणेशजीको अप्रिय और निषिद्ध  वस्तुऐ।
           तुलसी, श्वेत चंदन, गेंदे का झेंडू का फुल, हीना अत्तर (perfume)
अगर घरमे गणेशजीकी  मुर्ती हो तो उसे हररोज दो दुर्वापत्र जरूर अर्पण करना  चाहीये ।
शेंदूर भी जरूर अर्पण करना  चाहीये ।
गणेश जी का पूजा का समान अलग रखना चाहीये । उनका पुजाका सामान उन्ही के  लिये हि इस्तेमाल होना चाहिए । वे ज्येष्टराज है  श्रेष्ट है ।
उनका निर्माल्य  उचित जगह बहते पानीमे प्रवाहीत करना चाहिए । इधर उधर किसीके पांव के नीचे नहि आना चाहिए उससे बहोत बडा दोष लगता है।  इसीके बारे में कथा आप गणेशपुराण में  पढनेहीवाले है ।
 प्रेषक –  डॉ. श्रीमती राधिका श्रीकृष्ण तांबे,
गाणपत्त्य,  भक्त,  गणेश योगींद्र मठ,  मोरगाव,  मोरया,  मयुरेश्वर,  बारामती,  पुणे,  पहला गणेश स्थान,  अष्ट विनायक,  महाराष्ट्र,  भारत.

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