सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

नाग पंचमी महत्त्व

नाग पंचमी महत्त्व  


नाग पंचमी का त्यौहार सावन में मनाया जाता हैं श्रावण में शुक्ल पक्ष की पंचमी को नाग देवता की पूजा की जाती हैं | रिवाजानुसार इस दिन नाग/ सर्प को दूध पिलाया जाता हैं | गाँव में नाग पंचमी के दिन मेला सजता हैं जिसमे झूले लगते हैं | पहलवानी का खेल कुश्ती भी नाग पंचमी की एक विशेषता हैं | कई स्थानों पर नाग पंचमी के दिन विवाहित बेटियों को मायके में बुलाया जाता हैं | उनके परिवार को भोजन करवा कर दान दिया जाता हैं | साथ ही खेत के मालिक अन्य पशुओं जैसे बैल, गाय भैस आदि की भी पूजा करते हैं |साथ ही फसलो की भी पूजा की जाती हैं |

नाग पंचमी पूजा विधी

नाग पंचमी की पूजा का नियम सभी का अलग होता हैं कई तरह की मान्यता होती हैं | एक तरह की नाग पंचमी पूजा विधी यहाँ दी गई हैं |

सुबह सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान किया जाता हैं | निर्मल स्वच्छ वस्त्र पहने जाते हैं |

भोजन में सभी के अलग नियम होते हैं अवम उन्ही के अनुसार भोग लगाया जाता हैं | कई घरों में दाल बाटी बनती हैं | कई लोगो के यहाँ खीर पुड़ी बनती हैं | कईयों के यहाँ चावल बनाना गलत माना जाता हैं | कई परिवार इस दिन चूल्हा नहीं जलाते अतः उनके घर बासा खाने का नियम होता हैं | इस तरह सभी अपने हिसाब से भोग तैयार करते हैं |

इसके बाद पूजा के लिए घर की एक दीवार पर गेरू एक विशेष पत्थर से लेप कर एक हिस्सा शुद्ध किया जाता हैं | यह दीवार कई लोगो के घर की प्रवेशद्वार होती हैं तो कई के रसौई घर की दीवार | इस छोटे से भाग पर कोयले एवं घी से बने काजल की तरह के लेप से एक चौकोर डिब्बा बनाया जाता हैं | इस डिब्बे के अन्दर छोटे छोटे सर्प बनाये जाते हैं | इस तरह की आकृति बनाकर उसकी पूजा की जाती हैं |

कई परिवारों के यहाँ यह सर्प की आकृति कागज पर बनाई जाती हैं |

कई परिवार घर के द्वार पर चन्दन से सर्प की आकृति बनाते हैं | एवं पूजा करते हैं |

इस पूजा के बाद घरों में सपेरे को लाया जाता हैं जिनके पास टोकनी में सर्प होता हैं जिसके दांत नहीं होते साथ ही इनका जहर निकाल दिया जाता हैं | उनकी पूजा की जाती हैं | जिसमे अक्षत, पुष्प, कुमकुम, दूध एवं भोजन का भोग लगाया जाता हैं |

सर्प को दूध पिलाने की प्रथा हैं |

सपेरे को दान दिया जाता हैं |

कई लोग इस दिन कीमत देकर सर्प को सपेरे के बंधन से मुक्त भी करते हैं |

इस दिन बाम्बी के भी दर्शन किये जाते हैं | बाम्बी सर्प के रहने का स्थान होता हैं | जो मिट्टी से बना होता हैं उसमे छोटे- छोटे छिद्र होते हैं | यह एक टीले के समान दिखाई देता हैं |

इस प्रकार नाग पंचमी की पूजा की जाती हैं | फिर सभी परिवारजनों के साथ मिलकर भोजन करते हैं |

नगर का एक सेठ था उसके चार पुत्र थे | सभी का विवाह हो चूका था | तीन पुत्र की पत्नियों का मायका बहुत सम्पन्न था उसे धन धान की कोई कमी ना थी लेकिन चौथी के परिवार में कोई नहीं था उसका विवाह किसी रिश्तेदार ने किया था | अन्य तीन बहुए अपने घरो से कई उपहार लाती थी और छोटी बहु को ताने मारती थी | लेकिन छोटी बहुत स्वाभाव से बहुत अच्छी थी उस पर इन बातों का प्रभाव नहीं पड़ता था |

एक दिन बड़ी बहु से सभी बहुओं को साथ चल कर कुछ पौधे लगाने को कहा | सभी साथ गई और बड़ी बहु ने खुरपी से गड्डा करने के लिए जैसे ही उठाया | उस वक्त वहां एक सर्प आ गया उसने उसे मारने की सोची लेकिन छोटी बहु ने उसे रोक दिया कहा दीदी यह बेजुबान जानवर हैं इसे ना मारे | तब सर्प की जान बच गई | कुछ वक्त बाद सर्प छोटी बहु के स्वपन में आया और उसने उससे कहा तुमने मेरी जान बचाई इसलिए तुम जो चाहों मांग लो तब छोटी बहु ने सर्प को उसका भाई बनने का कहा | सर्प ने छोटी बहु को अपनी बहन स्वीकार किया |

कुछ दिनों बाद सारी बहुयें अपने- अपने मायके गई और वापस आकर छोटी बहु को ताना मारने लगी | तब ही छोटी बहु को उस स्वपन का ख्याल आया और उसने मन ही सर्प को याद किया |

एक दिन वह सर्प मानव रूप धर के छोटी बहु के घर आया और उसने सभी को यकीन दिलाया कि वो छोटी बहु का दूर का भाई हैं | और उसे अपने साथ मायके ले जाने आया | परिवार वालो ने उसे जाने दिया | रास्ते में सर्प ने छोटी बहु को अपना वास्तविक परिचय दिया | और उसे शान से घर लेकर गया | जहाँ बहुत धन धान्य था | सर्प ने अपनी बहन को बहुत सा धन, जेवर देकर मायके भेजा | जिसे देख बड़ी बहु जल गई और उसने छोटी बहु के पति को भड़काया और कहा कि छोटी बहु चरित्रहीन हैं | इस पर पति ने छोटी बहु को घर से निकालने का निर्णय लिया | तब छोटी बहु ने अपने भाई सर्प को याद किया | सर्प उसी वक्त उसके घर आया और उसने सभी को कहा कि अगर किसी ने मेरी बहन पर आरोप लगाया तो वो सभी को डस लेगा | इससे वास्तविक्ता सामने आई और इस प्रकार भाई ने अपना फर्ज निभाया | तब ही से सर्प की पूजा सावन की शुक्ल पंचमी के दिन की जाती है।।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पिशाच भाष्य

पिशाच भाष्य  पिशाच के द्वारा लिखे गए भाष्य को पिशाच भाष्य कहते है , अब यह पिशाच है कौन ? तो यह पिशाच है हनुमानजी तो हनुमानजी कैसे हो गये पिशाच ? जबकि भुत पिशाच निकट नहीं आवे ...तो भीमसेन को जो वरदान दिया था हनुमानजी ने महाभारत के अनुसार और भगवान् राम ही कृष्ण बनकर आए थे तो अर्जुन के ध्वज पर हनुमानजी का चित्र था वहाँ से किलकारी भी मारते थे हनुमानजी कपि ध्वज कहा गया है या नहीं और भगवान् वहां सारथि का काम कर रहे थे तब गीता भगवान् ने सुना दी तो हनुमानजी ने कहा महाराज आपकी कृपा से मैंने भी गीता सुन ली भगवान् ने कहा कहाँ पर बैठकर सुनी तो कहा ऊपर ध्वज पर बैठकर तो वक्ता नीचे श्रोता ऊपर कहा - जा पिशाच हो जा हनुमानजी ने कहा लोग तो मेरा नाम लेकर भुत पिशाच को भगाते है आपने मुझे ही पिशाच होने का शाप दे दिया भगवान् ने कहा - तूने भूल की ऊपर बैठकर गीता सुनी अब इस पर जब तू भाष्य लिखेगा तो पिशाच योनी से मुक्त हो जाएगा तो हमलोगों की परंपरा में जो आठ टिकाए है संस्कृत में उनमे एक पिशाच भाष्य भी है !

मनुष्य को किस किस अवस्थाओं में भगवान विष्णु को किस किस नाम से स्मरण करना चाहिए।?

 मनुष्य को किस किस अवस्थाओं में भगवान विष्णु को किस किस नाम से स्मरण करना चाहिए। 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️ भगवान विष्णु के 16 नामों का एक छोटा श्लोक प्रस्तुत है। औषधे चिंतयते विष्णुं, भोजन च जनार्दनम। शयने पद्मनाभं च विवाहे च प्रजापतिं ॥ युद्धे चक्रधरं देवं प्रवासे च त्रिविक्रमं। नारायणं तनु त्यागे श्रीधरं प्रिय संगमे ॥ दुःस्वप्ने स्मर गोविन्दं संकटे मधुसूदनम् । कानने नारसिंहं च पावके जलशायिनाम ॥ जल मध्ये वराहं च पर्वते रघुनन्दनम् । गमने वामनं चैव सर्व कार्येषु माधवम् ॥ षोडश एतानि नामानि प्रातरुत्थाय य: पठेत ।  सर्व पाप विनिर्मुक्ते, विष्णुलोके महियते ॥ (1) औषधि लेते समय विष्णु (2) भोजन के समय - जनार्दन (3) शयन करते समय - पद्मनाभ   (4) विवाह के समय - प्रजापति (5) युद्ध के समय चक्रधर (6) यात्रा के समय त्रिविक्रम (7) शरीर त्यागते समय - नारायण (8) पत्नी के साथ - श्रीधर (9) नींद में बुरे स्वप्न आते समय - गोविंद  (10) संकट के समय - मधुसूदन  (11) जंगल में संकट के समय - नृसिंह (12) अग्नि के संकट के समय जलाशयी  (13) जल में संकट के समय - वाराह (14) पहाड़ पर ...

कार्तिक माहात्म्य (स्कनदपुराण के अनुसार)

 *कार्तिक माहात्म्य (स्कनदपुराण के अनुसार) अध्याय – ०३:--* *(कार्तिक व्रत एवं नियम)* *(१) ब्रह्मा जी कहते हैं - व्रत करने वाले पुरुष को उचित है कि वह सदा एक पहर रात बाकी रहते ही सोकर उठ जाय।*  *(२) फिर नाना प्रकार के स्तोत्रों द्वारा भगवान् विष्णु की स्तुति करके दिन के कार्य का विचार करे।*  *(३) गाँव से नैर्ऋत्य कोण में जाकर विधिपूर्वक मल-मूत्र का त्याग करे। यज्ञोपवीत को दाहिने कान पर रखकर उत्तराभिमुख होकर बैठे।*  *(४) पृथ्वी पर तिनका बिछा दे और अपने मस्तक को वस्त्र से भलीभाँति ढक ले,*  *(५) मुख पर भी वस्त्र लपेट ले, अकेला रहे तथा साथ जल से भरा हुआ पात्र रखे।*  *(६) इस प्रकार दिन में मल-मूत्र का त्याग करे।*  *(७) यदि रात में करना हो तो दक्षिण दिशा की ओर मुँह करके बैठे।*  *(८) मलत्याग के पश्चात् गुदा में पाँच (५) या सात (७) बार मिट्टी लगाकर धोवे, बायें हाथ में दस (१०) बार मिट्टी लगावे, फिर दोनों हाथों में सात (७) बार और दोनों पैरों में तीन (३) बार मिट्टी लगानी चाहिये। - यह गृहस्थ के लिये शौच का नियम बताया गया है।*  *(९) ब्रह्मचारी के लिये, इसस...