श्री राधारानी की कृपा

श्री राधारानी की कृपा
एक बार बरसाना और आसपास के गाँव में ऐसा अकाल पड़ा की लोगों में खाने के लिए त्राहि त्राहि मच गयी,
जितने भी साधू महात्मा थे उनको मधुकरी
(वह जो साधू ब्रज में हर घर से मांग कर प्रसाद पाते है, वह मधुकरी होती है)
कौन दे??
एक बाबा जगन्नाथ भी यह जानकर किसी के घर मधुकरी लेने जाने में संकुचित हो गए.विवश होकर कुटिया में साधू वैष्णवों के लिए जुटाई हुई सामग्री काम में लेने लगे.अंत में ऐसी परिस्थिति आ गयी की बरसाना छोड़कर कही अंत जाने के लिए अपना लोटा कम्बल उठाया और चलाने लगे, बाबा के नेत्रों से अविरल अश्रु प्रवाहित हो रहे थे.
बरसाने वाली श्री राधा ये सब देख रही थी.कुटिया से बाहर आते ही एक ब्रजबाला ने कहा-
"बाबा"! कहाँ जा रहा है?
बाबा ने कहा-"कहीं तो जाकर मरूँगा, जब यहाँ मधुकरी का भी घाटा काल पड़ गया है, निपूता पेट तो नहीं मानता.
ब्रजबाला ने कहा-
"बाबा" हमारे घर क्यों नहीं जाते, तेरे लिए आले में हर रोज मधुकरी मेरी मैया रखती है.
बाबा ने लोटा और सोटा फिर अपनी कुटिया में रखा.उसके घर पहुंचा.
गृहमालिक ब्रजवासी ने कहा-
बाबा इस समय तो मधुकरी नहीं है. जब बाबा ने उसकी लाली का नाम लेकर बताया की आले में रखी है.
ब्रजवासी आश्चर्य में पड़ गया की हमारी लाली तो अनेक दिनों से अपने ससुराल में है.फिर आले में जाकर उसने देखा तो अनेक रोटियां रखी थी.
स्त्री पुरुष दोनों विस्मित रह गए की हमने तो कभी ये रोटियां रखी नहीं,
कहाँ से आई?
ब्रजवासी बोला-
"बाबा" रोज मधुकरी ले जाया करो.बाबा को श्री किशोरी जी ने बरसाने से नहीं जाने दिया.
ऐसी है हमारी लाडली श्री किशोरी जी.कभी किसी का दुःख नहीं देख सकती.

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