प्राचीन काल में स्त्रियों के चार प्रकारों की चर्चा आम थी; हस्तिनी, शंखिनी, चित्रिणी, और पद्मिनी। मलिक मुहम्म्द जायसी ने भी पद्मावत में इसका ज़िक्र इस प्रकार किया है।
चौथी कहौं पदमिनि नारी। पदुम गंध ससि दैउ सँवारी।
पदमिनि जाति, पदुम रंग ओही।पदुम बास,मधुकर संग होही।
ना सुठि लांबी, ना सुठि छोटी। ना सुठि पातरि, ना सुठि मोटी।
सोरह करा रंग ओहि बानी। सो सुलतान! पदमिनि जानी।
दीरघ चारि, चारि लघु सोइ। सुभर चारि, चहुँ खीनी होई।
औ ससि बदन देखि सब सोहा। बाल मराल चलर गति सोहा।
खीर अहार न करि सुकुवाँरी।पान फूल के रहै अघारी।
सोरह करा संपूरन, औ सोरहौ सिंगार।
अब ओहि भाँति कहत हौ, जस बरनै संसार।
अर्थात सोलह कलाओं युक्त पद्मिनी नारी की चार कला/अंग (केश, उंगली, नेत्र, ग्रीवा) लम्बे होते हैं। चार कला/ अंग (दशन, कुच, ललाट और नाभि) छोटे होते हैं। चार कला/अंग (कपोल, नितम्ब, बाहु और जंघा) पुष्ट होते हैं। शेष चार कला/अंग (नासिका, कटि, पेट, और अधर) पतले होते हैं।
नारियों के वर्गीकरण की यह परम्परा मध्यकाल में आ कर नहीं शुरु हुई, बहुत सारी दूसरी चीज़ों की तरह इस के बीज भी पुराने हैं। महाभारत के गालव प्रकरण में आये उद्योग पर्व के ११६ वें अध्याय से ये श्लोक देखिये;
उन्नतेषून्नता षट्सु सूक्ष्मा सूक्ष्मेसु पञ्चसु।
गम्भीरा त्रिषु गम्भीरेष्वियं रक्ता च पञ्चसु।।
श्रोण्यौ ललाट मूरू च घ्राणं चेति षडुन्नतम।
सूक्ष्माण्यङ्गुलिपर्वाणि केशरोमनखत्वचः।।
स्वरः सत्वं च नाभिश्च त्रिगम्भीरे प्रचक्षते।
पाणिपादतले रक्ते नेत्रान्तौ च नखानि च॥
अर्थ: इस कन्या के जो छै अंग ऊँचे होने चाहिये, ऊँचे हैं। पांच अंग जो सूक्ष्म होने चाहिये, सूक्ष्म हैं। तीन अंग जो गम्भीर होने चाहिये, गम्भीर हैं तथा इसके पांच अंग रक्त वर्ण के हैं।
दो नितम्ब, दो जांघे, ललाट, और नासिका, ये छै अंग ऊँचे हैं। अङ्गुलियों के पर्व, केश, रोम, नख और त्वचा- ये पाँच अंग सूक्ष्म हैं। स्वर, अंतःकरण और नाभि- ये तीन गम्भीर कहे जा सकते हैं तथा हथेली, पैरों के तलवे, दक्षिण नेत्र प्रान्त, वाम नेत्र प्रान्त और नख, ये पाँच अंग रक्त वर्ण के हैं। आगे श्लोक और है;
बहुदेवासुरालोका बहुगन्धर्व दर्शना।
बहुलक्षण सम्पन्ना बहुप्रसवधारिणी।।
समर्थेयं जनयितुं चक्रवर्तिनमात्मजम।
ब्रूहि शुल्कं द्विजश्रेष्ठ समीक्ष्य विभव मम॥
अर्थ: यह बहुत से देवो-असुरों के लिए भी दर्शनीय है। इसे गन्धर्वविद्या (संगीत) का भी अच्छा ज्ञान है। यह अनेक शुभ लक्षणों द्वारा सुशोभित और अनेक संतानों का जन्म देने में समर्थ है। विप्रवर आपकी यह कन्या चक्रवर्ती पुत्र उत्पन्न करने में समर्थ है; अतः आप मेरे वैभव की समीक्षा करके इसका समुचित शुल्क बताएं।
चौथी कहौं पदमिनि नारी। पदुम गंध ससि दैउ सँवारी।
पदमिनि जाति, पदुम रंग ओही।पदुम बास,मधुकर संग होही।
ना सुठि लांबी, ना सुठि छोटी। ना सुठि पातरि, ना सुठि मोटी।
सोरह करा रंग ओहि बानी। सो सुलतान! पदमिनि जानी।
दीरघ चारि, चारि लघु सोइ। सुभर चारि, चहुँ खीनी होई।
औ ससि बदन देखि सब सोहा। बाल मराल चलर गति सोहा।
खीर अहार न करि सुकुवाँरी।पान फूल के रहै अघारी।
सोरह करा संपूरन, औ सोरहौ सिंगार।
अब ओहि भाँति कहत हौ, जस बरनै संसार।
अर्थात सोलह कलाओं युक्त पद्मिनी नारी की चार कला/अंग (केश, उंगली, नेत्र, ग्रीवा) लम्बे होते हैं। चार कला/ अंग (दशन, कुच, ललाट और नाभि) छोटे होते हैं। चार कला/अंग (कपोल, नितम्ब, बाहु और जंघा) पुष्ट होते हैं। शेष चार कला/अंग (नासिका, कटि, पेट, और अधर) पतले होते हैं।
नारियों के वर्गीकरण की यह परम्परा मध्यकाल में आ कर नहीं शुरु हुई, बहुत सारी दूसरी चीज़ों की तरह इस के बीज भी पुराने हैं। महाभारत के गालव प्रकरण में आये उद्योग पर्व के ११६ वें अध्याय से ये श्लोक देखिये;
उन्नतेषून्नता षट्सु सूक्ष्मा सूक्ष्मेसु पञ्चसु।
गम्भीरा त्रिषु गम्भीरेष्वियं रक्ता च पञ्चसु।।
श्रोण्यौ ललाट मूरू च घ्राणं चेति षडुन्नतम।
सूक्ष्माण्यङ्गुलिपर्वाणि केशरोमनखत्वचः।।
स्वरः सत्वं च नाभिश्च त्रिगम्भीरे प्रचक्षते।
पाणिपादतले रक्ते नेत्रान्तौ च नखानि च॥
अर्थ: इस कन्या के जो छै अंग ऊँचे होने चाहिये, ऊँचे हैं। पांच अंग जो सूक्ष्म होने चाहिये, सूक्ष्म हैं। तीन अंग जो गम्भीर होने चाहिये, गम्भीर हैं तथा इसके पांच अंग रक्त वर्ण के हैं।
दो नितम्ब, दो जांघे, ललाट, और नासिका, ये छै अंग ऊँचे हैं। अङ्गुलियों के पर्व, केश, रोम, नख और त्वचा- ये पाँच अंग सूक्ष्म हैं। स्वर, अंतःकरण और नाभि- ये तीन गम्भीर कहे जा सकते हैं तथा हथेली, पैरों के तलवे, दक्षिण नेत्र प्रान्त, वाम नेत्र प्रान्त और नख, ये पाँच अंग रक्त वर्ण के हैं। आगे श्लोक और है;
बहुदेवासुरालोका बहुगन्धर्व दर्शना।
बहुलक्षण सम्पन्ना बहुप्रसवधारिणी।।
समर्थेयं जनयितुं चक्रवर्तिनमात्मजम।
ब्रूहि शुल्कं द्विजश्रेष्ठ समीक्ष्य विभव मम॥
अर्थ: यह बहुत से देवो-असुरों के लिए भी दर्शनीय है। इसे गन्धर्वविद्या (संगीत) का भी अच्छा ज्ञान है। यह अनेक शुभ लक्षणों द्वारा सुशोभित और अनेक संतानों का जन्म देने में समर्थ है। विप्रवर आपकी यह कन्या चक्रवर्ती पुत्र उत्पन्न करने में समर्थ है; अतः आप मेरे वैभव की समीक्षा करके इसका समुचित शुल्क बताएं।
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