वन मे फल सड़ जाय फिर भी किसी को कुछ न दे वही धेनुकासुर है । अपने पास बहुत सा होने पर भी किसी को कुछ न दे वह धेनुकासुर है, गधा है । देह को ही सर्वस्व मानने वाला , अतिशय संग्रह करने वाला धेनुकासुर ही है ।
धेनुकासुर तालवन का मालिक तो नहीँ था किन्तु बर्षो से वह वहाँ रहता था और जबरन उसने कब्जा जमा लिया था । कई लोग सार्वजनिक संस्थाओ का बहीखाता करते करते उस पर कब्जा जमा लेते हैँ । कुछ ऐसी संस्था मेँ गोलमाल करते हैँ , रुपये पैसे डकार जाते हैँ। इस तरह समाज का धन का उड़ाने वाला गधा ही बनता है।
धेनुकासुर देहाध्यास हैँ , देहाध्यास अविद्या के कारण होता है । अविद्या जीव को संसार के बन्धनोँ मेँ फँसाती है । ऐसा होने पर सांसारिक पदार्थो के लिए जीव के मन मेँ ममता , राग द्वेष आदि उत्पन्न होते हैँ । जब तक अविद्या नष्ट नहीँ हो पाती तब तक संसार छूट नहीँ पाता ।
अविद्या जीव को पाँच प्रकार से बाँधती है >>
1. स्वरुप विस्मृति ।
2. देहाध्यास ।
3. इन्द्रियाध्यास ।
4. प्राणाध्यास ।
5. अन्तः करणाध्यास ।
देहाध्यास मेँ जीव अपने को बड़ा , स्वरुपवान , विद्यावान , सम्पत्तिवान . मानने लगता है , देहाभिमानी हो जाता है । ऐसे लोग दूसरोँ का अपमान करने लगते हैँ , दूसरोँ को सताते हैँ । ऐसे देहाध्यास को बलभद्र जी (बलराम) ने मारा । भगवान की आधिदैविक शक्ति से ही देहाध्यास का नाश हो सकता है ।।।
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