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अच्युताष्टकं

अच्युतं केशवं स्वामिनारायणम् कृष्णदामोदरम् वासुदेवम् हरिम्।
श्रीधरं माधवं गोपीकावल्ल्भं जानकीनायकं रामचन्द्रं भजे ॥१॥

अच्युतं केशवं सत्यभामाधवं माधवं श्रीधरं राधिकाराधितम्।
इन्दिरामन्दिरं चेतसा सुन्दरं देवकीनंदनं नंदजं संदधे ॥२॥

विष्णवे जिष्णवे शंखिने चक्रिणे रुक्मिणीरागिणे जानकीजानये।
बल्लवीवल्लभायाऽर्चितायात्मने कंसविध्वंसिने वंशिने ते नम: ॥३॥

कृष्ण गोविन्द हे राम नारायण श्रीपते वासुदेवाजित श्रीनिधे।
अच्युतानन्त हे माधवाधोक्षज द्वारकानायक द्रोपदीरक्षक ॥४॥

राक्षसक्षोभित: सीतया शोभितो दण्डकारण्यभूपुण्यताकारण:।
लक्ष्मणेनान्वितो वानरै: सेवितोऽगस्त्यसंपूजितो राघव: पातु माम् ॥५॥

धेनुकारिष्टकोऽनिष्टकृद् द्वेषिणां केशिहा कंसह्रद्वंशिकावादक:।
पूतनाकोपक: सूरजाखेलनो बालगोपालक: पातु मां सर्वदा ॥६॥

विद्युदुद्योतवान् प्रस्फुरद्वाससं प्रावृडम्भोदवत् प्रोल्लसद्विग्रहम्।
वन्यया मालया शोभितोरस्थलं लोहिताङ्घ्रिद्वयं वारिजाक्षं भजे ॥७॥

कुञ्चितै: कुन्तलैर्भ्राजमानाननम् रत्नमौलिं लसत् कुंडलं गण्डयो:।
हारकेयूरकं कङ्कणप्रोज्ज्वलं किङ्किणीमञ्जुलं श्यामलं तं भजे ॥८॥

अच्युतस्याष्टकं य: पठेदिष्टदं प्रेमत: प्रत्यहं पूरुष: सस्पृहम्।
वृत्तत: सुन्दरं कर्तृविश्वम्भरं तस्य वश्यो हरिर्जायते सत्वरम् ॥९॥

॥ इति श्रीमच्छंकराचार्यविरचितं अच्युताष्टकं संपूर्णम् ॥

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