वेदव्यास जी ने कहा है:
ब्रह्मचर्यं गुप्तेन्द्रियस्योपस्थस्य संयमः
ʹविषय-इन्द्रियों द्वारा प्राप्त होने वाले सुख का संयमपूर्वक त्याग करना ब्रह्मचर्य है।ʹ
शक्ति, प्रभाव और सभी क्षेत्रों में सफलता की कुंजी – ब्रह्मचर्य
राजा जनक शुकदेव जी से बोलेः तपसा गुरुवृत्त्या च ब्रह्मचर्येण वा विभो।
ʹबाल्यावस्था में विद्यार्थी को तपस्या, गुरु की सेवा, ब्रह्मचर्य का पालन एवं वेदाध्ययन करना चाहिए।ʹ (महाभारत, मोक्षधर्म पर्वः 326.15)
ब्रह्मचर्य का ऊँचे-में-ऊँचा अर्थ हैः ब्रह्म में विचरण करना। ʹजो मैं हूँ वही ब्रह्म है और जो ब्रह्म है वही मैं हूँ....ʹ ऐसा अनुभव जिसे हो जाये वही ब्रह्मचारी है।
ʹव्रतों में ब्रह्मचर्य उत्कृष्ट है।ʹ (अथर्ववेद)
ʹअब्रह्मचर्य घोर प्रमादरूप पाप है।ʹ (दश वैकालिक सूत्रः 6.17)
अतः चलचित्र और विकारी वातावरण से अपने को बचायें। पितामह भीष्म, हनुमानजी और गणेशजी का चिंतन करने से रक्षण होता है।
"मैं विद्यार्थियों और युवकों से यही कहता हूँ कि वे ब्रह्मचर्य और बल की उपासना करें। बिना शक्ति व बुद्धि के, अधिकारों की रक्षा और प्राप्ति नहीं हो सकती। देश की स्वतंत्रता वीरों पर ही निर्भर है।" – लोकमान्य तिलक
◼ब्रह्मचर्य रक्षा का मंत्र◼
ૐ नमो भगवते महाबले पराक्रमाये मनोभिलाषितं मनः स्तंभ कुरु कुरु स्वाहा।
रोज दूध में निहारकर 21 बार इस मंत्र का जप करें और दूध पी लें। इससे ब्रह्मचर्य की रक्षा होती है।
*🌺जय राम जी की🌺*
ब्रह्मचर्यं गुप्तेन्द्रियस्योपस्थस्य संयमः
ʹविषय-इन्द्रियों द्वारा प्राप्त होने वाले सुख का संयमपूर्वक त्याग करना ब्रह्मचर्य है।ʹ
शक्ति, प्रभाव और सभी क्षेत्रों में सफलता की कुंजी – ब्रह्मचर्य
राजा जनक शुकदेव जी से बोलेः तपसा गुरुवृत्त्या च ब्रह्मचर्येण वा विभो।
ʹबाल्यावस्था में विद्यार्थी को तपस्या, गुरु की सेवा, ब्रह्मचर्य का पालन एवं वेदाध्ययन करना चाहिए।ʹ (महाभारत, मोक्षधर्म पर्वः 326.15)
ब्रह्मचर्य का ऊँचे-में-ऊँचा अर्थ हैः ब्रह्म में विचरण करना। ʹजो मैं हूँ वही ब्रह्म है और जो ब्रह्म है वही मैं हूँ....ʹ ऐसा अनुभव जिसे हो जाये वही ब्रह्मचारी है।
ʹव्रतों में ब्रह्मचर्य उत्कृष्ट है।ʹ (अथर्ववेद)
ʹअब्रह्मचर्य घोर प्रमादरूप पाप है।ʹ (दश वैकालिक सूत्रः 6.17)
अतः चलचित्र और विकारी वातावरण से अपने को बचायें। पितामह भीष्म, हनुमानजी और गणेशजी का चिंतन करने से रक्षण होता है।
"मैं विद्यार्थियों और युवकों से यही कहता हूँ कि वे ब्रह्मचर्य और बल की उपासना करें। बिना शक्ति व बुद्धि के, अधिकारों की रक्षा और प्राप्ति नहीं हो सकती। देश की स्वतंत्रता वीरों पर ही निर्भर है।" – लोकमान्य तिलक
◼ब्रह्मचर्य रक्षा का मंत्र◼
ૐ नमो भगवते महाबले पराक्रमाये मनोभिलाषितं मनः स्तंभ कुरु कुरु स्वाहा।
रोज दूध में निहारकर 21 बार इस मंत्र का जप करें और दूध पी लें। इससे ब्रह्मचर्य की रक्षा होती है।
*🌺जय राम जी की🌺*
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