मंगलवार, 30 जनवरी 2018

संतवाणी

परमात्माकी प्राप्तिके लिये ही तो मानवजन्म मिला है,नहीं तो पशुमें और मनुष्यमें क्या फर्क हुआ ?

खादते मोदते नित्यं  शुनकः  शूकरः  खरः ।

तेषामेषां को विशेषो वृत्तिर्येषां तु तादृशी ॥

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सूकर कूकर ऊँट खर,   बड़  पशुअन  में चार ।

तुलसी हरि की भगति बिनु, ऐसे ही नर नार ॥

    (स्वामी रामसुखदास जी महाराज)

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