सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

||श्री दक्षिणामूर्ति नवरत्नमालिका स्तोत्रम्||


मूलेवटस्य मुनिपुङ्गवसेव्यमानं
मुद्राविशेषमुकुलीकृतपाणिपद्मम् .
मन्दस्मितं मधुरवेषमुदारमाद्यं
तेजस्तदस्तु हृदि मे तरुणेन्दुचूडम् .. १..

शान्तं शारदचन्द्रकान्तिधवळं चन्द्राभिरमाननं
चन्द्रार्कोपमकान्तिकुण्डलधरं चन्द्रावदातांशुकम् .
वीणापुस्तकमक्षसूत्रवलयं व्याख्यानमुद्रांकरै-
र्बिभ्राणं कलये हृदा मम सदा शास्तारमिष्टार्थदम् .. २..

कर्पूरपात्रमरविन्ददळायताक्षं
कर्पूरशीतलहृदं करुणाविलासम् .
चन्द्रार्धशेखरमनन्तगुणाभिराम-
मिन्द्रादिसेव्यपदपङ्कजमीशमीडे .. ३..

द्युद्रोधः स्वर्णमयासनस्थं
मुद्रोल्लसद्बाहुमुदारकायम् .
सद्रोहिणीनाथकळावतंसं
भद्रोदधिं कञ्चन चिन्तयामः .. ४..

उद्यद्भास्करसन्निभं त्रिणयनं श्वेताङ्गरागप्रभं
बालं मौञ्जिधरं प्रसन्नवदनं न्यग्रोधमूलेस्थितम् .
पिङ्गाक्षं मृगशावकस्थितिकरं सुब्रह्मसूत्राकृतिम्
भक्तानामभयप्रदं भयहरं श्रीदक्षिणामूर्तिकम् ..५..

श्रीकान्तद्रुहिणोपमन्यु तपन स्कन्देन्द्रनन्द्यादयः
प्राचीनागुरवोऽपियस्य करुणालेशाद्गतागौरवम् .
तं सर्वादिगुरुं मनोज्ञवपुषं मन्दस्मितालङ्कृतं
चिन्मुद्राकृतिमुग्धपाणिनळिनं चित्तं शिवं कुर्महे .. ६..

कपर्दिनं चन्द्रकळावतंसं
त्रिणेत्रमिन्दुपतिमाननोज्वलम् .
चतुर्भुजं ज्ञानदमक्षसूत्र-
पुस्ताग्निहस्तं हृदि भावयेच्छिवम् .. ७..

वामोरूपरिसंस्थितां गिरिसुतामन्योन्यमालिंगितां
श्यामामुत्पलधारिणी शशिनिभांचालोकयन्तं शिवम् .
आश्लिष्टेन करेण पुस्तकमधो कुंभं सुधापूरितं
मुद्रां ज्ञानमयीं दधानमपरैर्मुक्ताक्षमालां भजे.. ८..

वटतरुनिकटनिवासं पटुतरविज्ञानमुद्रितकराब्जम् .
कञ्चनदेशिकमाद्यं कैवल्यानन्दकन्दळं वन्दे .. ९..

इति श्री दक्षिणामूर्ति नवरत्नमाला स्तोत्रं संपूर्णम् ..

कर्पूरगौरं करुणावतार संसारसारम् भुजगेन्द्रहारम् ।
सदावसन्तं हृदयारविन्द भवं भवानीसहितं नमामि ॥

ॐ नमः शिवाय !ॐ नमः शिवाय !ॐ नमः शिवाय !ॐ नमः शिवाय ! ॐ नमः शिवाय !

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पिशाच भाष्य

पिशाच भाष्य  पिशाच के द्वारा लिखे गए भाष्य को पिशाच भाष्य कहते है , अब यह पिशाच है कौन ? तो यह पिशाच है हनुमानजी तो हनुमानजी कैसे हो गये पिशाच ? जबकि भुत पिशाच निकट नहीं आवे ...तो भीमसेन को जो वरदान दिया था हनुमानजी ने महाभारत के अनुसार और भगवान् राम ही कृष्ण बनकर आए थे तो अर्जुन के ध्वज पर हनुमानजी का चित्र था वहाँ से किलकारी भी मारते थे हनुमानजी कपि ध्वज कहा गया है या नहीं और भगवान् वहां सारथि का काम कर रहे थे तब गीता भगवान् ने सुना दी तो हनुमानजी ने कहा महाराज आपकी कृपा से मैंने भी गीता सुन ली भगवान् ने कहा कहाँ पर बैठकर सुनी तो कहा ऊपर ध्वज पर बैठकर तो वक्ता नीचे श्रोता ऊपर कहा - जा पिशाच हो जा हनुमानजी ने कहा लोग तो मेरा नाम लेकर भुत पिशाच को भगाते है आपने मुझे ही पिशाच होने का शाप दे दिया भगवान् ने कहा - तूने भूल की ऊपर बैठकर गीता सुनी अब इस पर जब तू भाष्य लिखेगा तो पिशाच योनी से मुक्त हो जाएगा तो हमलोगों की परंपरा में जो आठ टिकाए है संस्कृत में उनमे एक पिशाच भाष्य भी है !

शिव नाम महिमा

भगवान् श्रीकृष्ण कहते है ‘महादेव महादेव’ कहनेवाले के पीछे पीछे मै नामश्रवण के लोभ से अत्यन्त डरता हुआ जाता हूं। जो शिव शब्द का उच्चारण करके प्राणों का त्याग करता है, वह कोटि जन्मों के पापों से छूटकर मुक्ति को प्राप्त करता है । शिव शब्द कल्याणवाची है और ‘कल्याण’ शब्द मुक्तिवाचक है, वह मुक्ति भगवन् शंकर से ही प्राप्त होती है, इसलिए वे शिव कहलाते है । धन तथा बान्धवो के नाश हो जानेके कारण शोकसागर मे मग्न हुआ मनुष्य ‘शिव’ शब्द का उच्चारण करके सब प्रकार के कल्याणको प्राप्त करता है । शि का अर्थ है पापोंका नाश करनेवाला और व कहते है मुक्ति देनेवाला। भगवान् शंकर मे ये दोनों गुण है इसीलिये वे शिव कहलाते है । शिव यह मङ्गलमय नाम जिसकी वाणी मे रहता है, उसके करोड़ जन्मों के पाप नष्ट हो जाते है । शि का अर्थ है मङ्गल और व कहते है दाता को, इसलिये जो मङ्गलदाता है वही शिव है । भगवान् शिव विश्वभर के मनुष्योंका सदा ‘शं’ कल्याण करते है और ‘कल्याण’ मोक्ष को कहते है । इसीसे वे शंकर कहलाते है । ब्रह्मादि देवता तथा वेद का उपदेश करनेवाले जो कोई भी संसार मे महान कहलाते हैं उन सब के देव अर्थात् उपास्य होने...

श्रीशिव महिम्न: स्तोत्रम्

              __श्रीशिव महिम्न: स्तोत्रम्__ शिव महिम्न: स्तोत्रम शिव भक्तों का एक प्रिय मंत्र है| ४३ क्षन्दो के इस स्तोत्र में शिव के दिव्य स्वरूप एवं उनकी सादगी का वर्णन है| स्तोत्र का सृजन एक अनोखे असाधारण परिपेक्ष में किया गया था तथा शिव को प्रसन्न कर के उनसे क्षमा प्राप्ति की गई थी | कथा कुछ इस प्रकार के है … एक समय में चित्ररथ नाम का राजा था| वो परं शिव भक्त था| उसने एक अद्भुत सुंदर बागा का निर्माण करवाया| जिसमे विभिन्न प्रकार के पुष्प लगे थे| प्रत्येक दिन राजा उन पुष्पों से शिव जी की पूजा करते थे | फिर एक दिन … पुष्पदंत नामक के गन्धर्व उस राजा के उद्यान की तरफ से जा रहा था| उद्यान की सुंदरता ने उसे आकृष्ट कर लिया| मोहित पुष्पदंत ने बाग के पुष्पों को चुरा लिया| अगले दिन चित्ररथ को पूजा हेतु पुष्प प्राप्त नहीं हुए | पर ये तो आरम्भ मात्र था … बाग के सौंदर्य से मुग्ध पुष्पदंत प्रत्यक दिन पुष्प की चोरी करने लगा| इस रहश्य को सुलझाने के राजा के प्रत्येक प्रयास विफल रहे| पुष्पदंत अपने दिव्या शक्तियों के कारण अदृश्य बना रहा | और फिर … राजा च...