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श्री रामचरित मानस

श्री राम चरित मानस अवधी भाषा में गोस्वामी तुलसीदासद्वारा १६वीं सदी में रचित एक महाकाव्य है। इस ग्रन्थ को हिंदी साहित्य की एक महान कृति माना जाता है। इसे सामान्यतः 'तुलसी रामायण' या 'तुलसीकृत रामायण' भी कहा जाता है। रामचरितमानस भारतीय संस्कृति में एक विशेष स्थान रखता है। उत्तर भारत में 'रामायण' के रूप में बहुत से लोगों द्वारा प्रतिदिन पढ़ा जाता है। शरद नवरात्रि में इसके सुन्दर काण्ड का पाठ पूरे नौ दिन किया जाता है। रामायण मण्डलों द्वारा शनिवार को इसके सुन्दरकाण्ड का पाठ किया जाता है।

श्री रामचरित मानस के नायक राम हैं जिनको एक महाशक्ति के रूप में दर्शाया गया है जबकि महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण में श्री राम को एक मानव के रूप में दिखाया गया है। तुलसी के प्रभु राम सर्वशक्तिमान होते हुए भी मर्यादा पुरुषोत्तम हैं।

त्रेता युग में हुए ऐतिहासिक राम-रावण युद्ध पर आधारित और हिन्दी की ही एक लोकप्रिय भाषा अवधी में रचित रामचरितमानस को विश्व के १०० सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय काव्यों में ४६वाँ स्थान दिया गया।

संत महात्मा समझाते हैं -कलयुग दोषों का खज़ाना है । पर इसकी एक महिमा यह है कि केवल राम नाम के जाप से ही व्यक्ति की सारी आसक्तियाँ खत्म हो जाती हैं । श्री गोस्वामी जी महाराज जी समझाते हैं कि  राम सबको राम बनाना ही जानते हैं। वह कृपा के भंडार है।  इसलिए उनके गुणों, उनकी विशेषताओं को जानने के लिए आइए आज से श्री  रामचरितमानस का अध्ययन किया जाए।

श्री रामचरित मानस प्रथम सोपान
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बालकाण्ड
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 अक्षरों, अर्थसमूहों, रसों ,छंदों और मंगलों की करने वाली *सरस्वती जी और गणेश जी* की मैं वंदना करता हूं।।

*श्रद्धा और विश्वास के स्वरूप* श्री पार्वती जी और शंकर जी की मैं वंदना करता हूं, जिनके बिना सिद्ध जन अपने अंतकरण में स्थित *ईश्वर को नहीं देख सकते* ।

ज्ञानमय, नित्य, *शंकर रूपी गुरु की* मैं वंदना करता हूं, जिनके आश्रित होने से ही टेढ़ा चंद्रमा भी सर्वत्र वंदित होता है ।

श्री सीताराम जी के गुण समूह रूपी पवित्र वन में विहार करने वाले , विशुद्ध विज्ञान संपन्न कवीश्वर *श्री वाल्मीकि जी* और कपीश्वर *श्री हनुमान जी* की मैं वंदना करता हूं ।।

 उत्पत्ति , स्थिति (पालन) और संहार करने वाली , क्लेशों की हरने वाली तथा संपूर्ण कल्याणों  की करने वाली श्री रामचंद्र जी की प्रियतमा श्री सीता जी को मैं नमस्कार करता हूं ।।  जिनकी माया के वशीभूत संपूर्ण विश्व  , ब्रह्मादि देवता और असुर हैं, जिनकी सत्ता से रस्सी में सर्प के भ्रम की भांति यह सारा दृश्य जगत सत्य प्रतीत होता है और जिनके केवल चरण ही भवसागर से तरने की इच्छा वालों के लिए एकमात्र नौका है, उन समस्त कारणों के कारण और सबसे श्रेष्ठ  *राम कहाने वाले* भगवान श्री हरि कि मैं वंदना करता हूं ।

 अनेक पुराण, वेद और शास्त्र से सम्मत तथा  जो रामायण में वर्णित है और कुछ अन्यंत्र से भी उपलब्ध श्री रघुनाथ जी की कथा को तुलसीदास अपने अंतकरण के सुख के लिए अत्यंत मनोहर भाषा रचना में विस्तृत करता है ।  जिन्हें स्मरण करने से सब कार्य सिद्ध होते हैं जो गुणों के स्वामी और सुंदर हाथी के मुख वाले हैं वही बुद्धि के राशि और शुभ गुणों की धाम *श्री गणेश जी* मुझ पर कृपा करें ।।

 जिनकी कृपा से गूंगा बहुत सुंदर बोलने वाला हो जाता है और लंगड़ा लूला दुर्गम पहाड़ पर चढ़ जाता है, वे *कलयुग के सब पापों को जला डालने वाले* दयालु भगवान मुझ पर *दया* करें ।।

जो नील कमल के समान श्याम वर्ण हैं, पूर्ण खिले हुए लाल कमल के समान जिनके नेत्र हैं और जो सदा क्षीरसागर पर शयन करते हैं वह भगवान नारायण *मेरे हृदय में निवास करें* ।।

जिनका कुंद के पुष्प और चंद्रमा के समान गौर शरीर है , जो पार्वती जी के प्रियतम और दया के धाम हैं और *जिनका दीनों पर स्नेह है*,  कामदेव का मर्दन करने वाले शंकर जी मुझ पर कृपा करें।।

मैं *गुरु महाराज जी के चरण कमल की वंदना* करता हूं जो कृपा के समुद्र और नर रूप में श्रीहरि ही हैं और जिनके वचन *महामोह रूपी घने अंधकार के नाश करने के लिए सूर्य किरणों के समूह हैं* ।।

मैं गुरु महाराज जी के चरण कमलों की रज की वंदना करता हूं जो सुंदर स्वाद , सुगंध तथा अनुराग रूपी रस से पूर्ण है । वह अमर मूल संजीवनी जड़ी का सुंदर चूर्ण है ,जो *संपूर्ण भव रोगों के परिवार को नष्ट* करने वाला है ।। वह रज सुकृति रूपी शिवजी के शरीर पर सुशोभित निर्मल विभूति है और सुंदर कल्याण और आनंद की जननी है भक्त के *मन रूपी सुंदर दर्पण के मैल को दूर करने वाली* और तिलक करने से गुणों के समूह को वश में करने वाली है ।।

 श्री गुरु महाराज के चरण- नखों  की ज्योति मणियों के प्रकाश के समान है जिसके स्मरण करते ही हृदय में *दिव्य दृष्टि उत्पन्न* हो जाती है वह प्रकाश *अज्ञान रुपी अंधकार का नाश करने* वाला है वह जिनके हृदय में आ जाता है *उसके बड़े भाग्य हैं* ।।
उसके हृदय में आते ही हृदय के निर्मल नेत्र खुल जाते हैं और संसाररूपी रात्रि के दोष मिट जाते हैं एवं रामचरित रूपी मणि और माणिक्य , गुप्त और प्रकट जहां जो जिस खान में है सब दिखाई पड़ने लगते हैं ।।

जैसे सिद्धाञ्जन को नेत्रों में लगाकर साधक, सिद्ध और सुजान पर्वतों , वनों और पृथ्वी के अंदर कौतुक  से ही बहुत ही खाने देखते हैं  ,  श्री गुरु महाराज के चरणों की रज कोमल और सुंदर नयनामृत- अंजन है, जो नेत्रों के दोषों का नाश करने वाला है । उस अंजन से विवेक रूपी नेत्रों को निर्मल करके मैं *संसार रूपी बंधन से छुड़ाने वाले* श्री राम चरित्र का वर्णन करता हूं ।।

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