राम और कृष्ण

राम और कृष्ण के बीच में कोई भेद नहीं है, जहाँ भेद है, वेद नहीं है ।

 गोस्वामी तुलसीदास जी ने बड़ी उदारता के साथ में सम्पूर्ण वेदों, पुराणों, शास्त्रों, आगम, निगम सम्पूर्ण भारतीय संस्कृति वाञ्गमय शब्दकोष को रामचरितमानस में उतार करके रखा है ।वे वन्दना करते हैं कि---

वंदउँ गुरु पद पदुम परागा।
सुरुचि सुवास सरस अनुरागा।
अमिय मूरिमय चूरन चारू।
समन सकल भव रुज परिवारू।

         पूज्य गुरुदेव के श्रीचरणों का सादर उन्होंने नमन किया है ।रामचरितमानस में राम जी के सम्पूर्ण परिकर का उन्होंने वंदन किया है ।अवधवासियों का वंदन किया गोस्वामी तुलसीदास जी ने ।

वंदउँ कौसल्या दिसि प्राची।
कीरति जासु सकल जग माची।।

          सभी पात्रों की उन्होंने वंदना की है ।

एक बार त्रेता जुग माहीं।
संभु गये कुंभज ऋषि पाहीं।।
संग सती जगजननि भवानी।।
पूजे ऋषि अखिलेश्वर जानी।।

          आशुतोष अवढरदानी भगवान विश्वनाथ सबसे बड़े राम उपासक हैं ।इसलिए राम जी की नगरी अयोध्या तो है ही, पर गोस्वामी तुलसीदास जी ने एक दोहा लिखा कि---

राम नगरिया राम की
         बसइ गंग के तीर।
अटल राज महाराज की
         चौकी   हनुमत  वीर।।

         तो कुछ संतों को लगा कि रामनगरी तो अयोध्या है और वह तो सरजू जी के किनारे है ।यह गोस्वामी तुलसीदास जी ने गंग के तीर क्यों लिख दिया ।इसलिए उन्होंने थोड़ा परिवर्तन कर दिया ।प्रार्थनाओं में हम स्तुति जो करते हैं --

राम नगरिया राम की
        बसइ सरजु के तीर।
अटल राज महाराज की
        चौकी हनुमत वीर ।।

         पर गोस्वामी तुलसीदास जी ने यह दोहा जो लिखा है, श्री रामचंद्र शुक्ल जिन्होंने हिन्दी साहित्य का इतिहास लिखा , उन्होंने लिखा कि मैं यह दोहा वस्तुतः अयोध्या जी के लिए नहीं लिख रहा हूँ, काशी जी में काशी के उस पार जो उपनगर है, जिसमें अभी भी एक महीने की रामलीला होती है, वह उस रामनगर के लिए है।राम नगरिया राम की बसइ गंग के तीर, और वहाँ पर हैं संकटमोचन हनुमानजी महाराज और अटलराज महाराज की चौकी हनुमत वीर, और इसलिए आप देखेंगे कि काशी में भगवान शंकर ने,  राम टापू प्रसंग में लिखा है,   सहस्त्रों मनवन्तरों तक राम मन्त्र का जाप किया है । और तो और मणिकर्णिका घाट पर साक्षात् भगवान श्री रामभद्र जी ने प्रकट होकर उनको दर्शन दिया और उन्होंने स्पष्ट वरदान दिया ।यस्य कस्याति वासयन्।यह हमारा जो राम मन्त्र है षड़ाक्षर महामन्त्र है ।आप स्वयं या कोई भी काशी में मरणासन्न प्राणी के कान में  सुना देगा, तो वह मुक्त हो जायगा। भगवान शंकर जी --
तुम पुनि राम राम दिन राती।
सादर जपहु अनंग आराती।।

          इसलिए श्रीमद्जगद्गुरु रामानंदाचार्य जी ने भी काशी के पंचगंगा घाट पर राम भक्ति का विस्तार सम्पूर्ण विश्व में किया ।इसलिए कहने का मतलब यह कि भगवान आशुतोष अवढरदानी शंकर जी ने दुनिया के सामने बहुत सुंदर एक आदर्श रखा, कि श्री रामकथा का श्रवण करने का कितना महत्व है ।

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