श्रीराम! पुराणोंके पारायणके समय त्रिदेवोंकी एकताके विषयमें जो प्रमाण मिलेहैं उन्ही का संग्रह यहाँ जिज्ञा सुओंके लिए प्रस्तुतहै। विचार करनेसे जो साम्प्रदायिक वैमनस्यताहै उसमें अवश्य लाभ होगा ऐसी आशा है--
गुणमैय्या स्वशक्तयाश्च सर्गस्थित्यप्यान्विभो।धत्से यदा स्वदृग्भूमन् ब्रह्मविष्णुशिवाभिधाम्।(भाग .८-७-२३)।हे विभो! हे स्वयं प्रकाश ब्रह्म! इस संसारकी उत्पत्ति स्थिति प्रलयके लिए अपनी गुणमयी मायाप्रकृति) शक्तिके द्वारा ब्रह्मा विष्णु शिव नाम धारण करतेहैं।
त्रयाणामेकभावानां यो न पश्यति वै भिदाम्(भा.४-७ -५४)--एकभावरूप ब्रह्माविष्णु शिवमें जो भेद नहीं देखता।।एवं ज्ञात्वा वरारोहे ह्यभिन्नेनान्तरात्मना। ब्रह्माणं केशवं रुद्रमेकरूपेण पूजयेत्(स्क. पु. २-४-३- १६/६ -२४७--१०-११-१४/७-१- १०५ -७३)--हे वरारोहे! ऐसा जानकर अभि न्न मनसे ब्रह्मा केशव शिव की एक रूपसे पूजा करे।
त्रयाणापि देवानामान्तरं नास्ति शोभने (पद्म .२-८८-४३)-हे शोभने तीनों देवताओंमें कोई अंतर नहीं।
यो विष्णु: स स्वयं ब्रह्मा यो ब्रह्मा स स्वयं हरः(पद्म. पु.५-९८-८८/२-८८-४४/६-८८- ४४)-जो विष्णुहैं वे ही ब्रह्माहैं।जो ब्रह्माहैं वे ही शिवहैं।
हरिशंकरयोर्मध्ये ब्रह्मणश्चापि यो नरः।भेदं करोति सोभ्येति नरकं भृशदारुणम्।हरं हरिं विधातारं यः पश्यत्येकरूपिणं।स याति पर मानन्दं शास्त्राणामेष निश्चयः।(नार.पु.पूर्वा. ६-४८-४९/२-२८/५-७२/उत्तरा.४३-९२/५९ --२४;३३;३४;४६;४७)-हरि शंकर ब्रह्माके म ध्य जो नर भेद करता है वह भयंकर नरक में जाताहै।हरि हर और ब्रह्माजीको जो एक रू प देखताहै वह परमा नंद को प्राप्त करताहै। यही शास्त्रोंका निश्चयहै।
यो विष्णु: स स्वयं ब्रह्मा यो ब्रह्मासौ महेश्वरः ।यो भेदं कुरुतेस्माकं त्रयाणां द्विजसत्तम।स पापकारी दुष्टात्मा दुर्गतिं समवाप्नुयात् (बा राह.७०/२६-२७-२८)-जो विष्णु हैं वे ही ब्रह्माहैं।जो ब्रह्माहैं वही माहेश्वरहै।जो हम तीनोंमें भेद करताहै वह पापकर्ताहै।दुष्टात्मा दुर्गातीको प्रापत करताहै।
ब्रह्माभूत्वासृजत् विष्णु:जगत्पाति हरि: स्वयं ।रुद्ररूपी च कल्पान्ते जगत्संहरते प्रभु:। ब्रह्मविष्णुशिवान् देवान् न पृथक् भावयेत् सुधी ।(गरु.पु.पू.८-११/२०५-७४)-प्रभुने ब्रह्मा होकर जगतकी रचना की हरि होकर स्वयं पालन किया।कल्पके अंतमे स्वयं रुद्रके रूपमें संहार करतेहैं।बुद्धिमब्रह्माभूत्वासृजत् विष्णु:जगत्पाति हरि: स्वयं ।रुद्ररूपी च कल्पान्ते जगत्संहरते प्रभु:। ब्रह्मविष्णुशिवान् देवान् न पृथक् भावयेत् सुधी ।(गरु.पु.पू.८-११/२०५-७४)-प्रभुने ब्रह्मा होकर जगतकी रचना की हरि होकर स्वयं पालन किया।कल्पके अंतमे स्वयं रुद्रके रूपमें संहार करतेहैं।बुद्धिमान ब्रह्मा विष्णु शिवमें भेद भावना न करे।
यथा कृष्णस्तथा शम्भुर्न भेदो माधवेशयोः। (ब्र. वै.प्रकृ. खण्ड. ५६-६१)--जैसे कृष्ण हैं वैसे ही शम्भु हैं।माधव और शंकरमें कोई भेद नहीं है। श्रीराम।।
* पुराणं पंचमों वेद:*
गुणमैय्या स्वशक्तयाश्च सर्गस्थित्यप्यान्विभो।धत्से यदा स्वदृग्भूमन् ब्रह्मविष्णुशिवाभिधाम्।(भाग .८-७-२३)।हे विभो! हे स्वयं प्रकाश ब्रह्म! इस संसारकी उत्पत्ति स्थिति प्रलयके लिए अपनी गुणमयी मायाप्रकृति) शक्तिके द्वारा ब्रह्मा विष्णु शिव नाम धारण करतेहैं।
त्रयाणामेकभावानां यो न पश्यति वै भिदाम्(भा.४-७ -५४)--एकभावरूप ब्रह्माविष्णु शिवमें जो भेद नहीं देखता।।एवं ज्ञात्वा वरारोहे ह्यभिन्नेनान्तरात्मना। ब्रह्माणं केशवं रुद्रमेकरूपेण पूजयेत्(स्क. पु. २-४-३- १६/६ -२४७--१०-११-१४/७-१- १०५ -७३)--हे वरारोहे! ऐसा जानकर अभि न्न मनसे ब्रह्मा केशव शिव की एक रूपसे पूजा करे।
त्रयाणापि देवानामान्तरं नास्ति शोभने (पद्म .२-८८-४३)-हे शोभने तीनों देवताओंमें कोई अंतर नहीं।
यो विष्णु: स स्वयं ब्रह्मा यो ब्रह्मा स स्वयं हरः(पद्म. पु.५-९८-८८/२-८८-४४/६-८८- ४४)-जो विष्णुहैं वे ही ब्रह्माहैं।जो ब्रह्माहैं वे ही शिवहैं।
हरिशंकरयोर्मध्ये ब्रह्मणश्चापि यो नरः।भेदं करोति सोभ्येति नरकं भृशदारुणम्।हरं हरिं विधातारं यः पश्यत्येकरूपिणं।स याति पर मानन्दं शास्त्राणामेष निश्चयः।(नार.पु.पूर्वा. ६-४८-४९/२-२८/५-७२/उत्तरा.४३-९२/५९ --२४;३३;३४;४६;४७)-हरि शंकर ब्रह्माके म ध्य जो नर भेद करता है वह भयंकर नरक में जाताहै।हरि हर और ब्रह्माजीको जो एक रू प देखताहै वह परमा नंद को प्राप्त करताहै। यही शास्त्रोंका निश्चयहै।
यो विष्णु: स स्वयं ब्रह्मा यो ब्रह्मासौ महेश्वरः ।यो भेदं कुरुतेस्माकं त्रयाणां द्विजसत्तम।स पापकारी दुष्टात्मा दुर्गतिं समवाप्नुयात् (बा राह.७०/२६-२७-२८)-जो विष्णु हैं वे ही ब्रह्माहैं।जो ब्रह्माहैं वही माहेश्वरहै।जो हम तीनोंमें भेद करताहै वह पापकर्ताहै।दुष्टात्मा दुर्गातीको प्रापत करताहै।
ब्रह्माभूत्वासृजत् विष्णु:जगत्पाति हरि: स्वयं ।रुद्ररूपी च कल्पान्ते जगत्संहरते प्रभु:। ब्रह्मविष्णुशिवान् देवान् न पृथक् भावयेत् सुधी ।(गरु.पु.पू.८-११/२०५-७४)-प्रभुने ब्रह्मा होकर जगतकी रचना की हरि होकर स्वयं पालन किया।कल्पके अंतमे स्वयं रुद्रके रूपमें संहार करतेहैं।बुद्धिमब्रह्माभूत्वासृजत् विष्णु:जगत्पाति हरि: स्वयं ।रुद्ररूपी च कल्पान्ते जगत्संहरते प्रभु:। ब्रह्मविष्णुशिवान् देवान् न पृथक् भावयेत् सुधी ।(गरु.पु.पू.८-११/२०५-७४)-प्रभुने ब्रह्मा होकर जगतकी रचना की हरि होकर स्वयं पालन किया।कल्पके अंतमे स्वयं रुद्रके रूपमें संहार करतेहैं।बुद्धिमान ब्रह्मा विष्णु शिवमें भेद भावना न करे।
यथा कृष्णस्तथा शम्भुर्न भेदो माधवेशयोः। (ब्र. वै.प्रकृ. खण्ड. ५६-६१)--जैसे कृष्ण हैं वैसे ही शम्भु हैं।माधव और शंकरमें कोई भेद नहीं है। श्रीराम।।
* पुराणं पंचमों वेद:*
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