सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

वृंदावन

ब्रह्म जिसके इशारे पर नाचता है उसे "वृंदावन कहते है"

एक बार जब ग्रहण के समय सभी व्रज वासियों और द्वारिका वासियों को कुरुक्षेत्र में जाने का अवसर मिला तब श्री राधा रानी भी अपनी सखियों से साथ वहाँ गई,जब रुक्मणि आदि रानियों को पता चला की व्रजवासी सहित राधा रानी जी भी आई है तो उनके मन में तो बहुत वर्षों से उनसे मिलने की इच्छा थी,क्योकि भगवान हमेशा यशोदा जी नन्द बाबा और राधा रानी जी के प्रेम में इतना डूबे रहते थे कि द्वारिका में सभी रानियों को बड़ा आश्चर्य होता था.आज जब पता चला तो सभी ने भगवान कृष्ण से राधा रानी से मिलने की इच्छा व्यक्त की.

भगवान श्री कृष्ण ने कुछ सैनिको के साथ रानियों को भेजा,रानियाँ वहाँ पहुँची जहाँ राधा रानी जी ठहरी हुई थी,रुक्मणि आदि रानियाँ जैसे ही अन्दर गई,तो देखा एक बहुत सुन्दर युवती खड़ी हुई,वह इतनी सुन्दर थी कि सभी रानियाँ उनके सामने फीकी लगने लगी, सभी उसके चरणों में गिर गई,तब वह बोली - आप सभी कौन है?

तब रुक्मणि आदि रानियों ने अपना परिचय बताया और कहा कि हम आपसे ही मिलने आये है आप राधा हो ना ?
तब सखी बोली - मै राधा रानी नहीं हूँ , मै तो उनकी सखी हूँ ,मेरा नाम इन्दुलेखा है.में तो राधारानी जी की दासी हूँ, वे तो सात द्वारों के अन्दर विराजमान है.रानियों को बड़ा आश्चर्य हुआ जिसकी दासी इतनी सुन्दर है तो वे स्वयं कितनी सुन्दर ना होगी?-आगे फिर एक-एक करके अष्ट सखियाँ मिली - रंगदेवी, तुंगविद्या, सुदेवी, चम्पकलता, चित्रा, विशाखा, ललिता.सभी रूप और सुंदरता की मिसाल थी. रानियों ने अपना परिचय बताया और कहा कि हम आपसे ही मिलने आये है आप राधा हो ना ?

सभी रानियाँ आश्चर्य में थी जब ये सभी इतनी सुन्दर है तो राधा रानी कैसी होगी ?

सभी अष्ट द्वार के अन्दर पहुँची,देखा राधा रानी जी के दोनों ओर ललिता विशाखा सखियाँ खड़ी है और श्री राधा रानी जी सुन्दर शय्या पर लंबा सा घूँघट करके बैठी हुई है.रुक्मणि जी ने चरणों में प्रणाम किया और दर्शन की अभिलाषा व्यक्त की.तब श्री राधा रानी जी ने अपने कोमल करो से अपना घूँघट ऊपर उठाया,घूँघट ऊपर उठाते ही इतना प्रकाश उनके श्रीमुख से निकला कि सभी रानियो की आँखे बंद हो गई.

जब उन्होंने राधारानी जी के रूप और सौंदर्य को देखा तो वे बस देखती ही रह गई.तब रुक्मणि जी की नजर राधा रानी जी के चरणों पर पड़ी देखा चरणों में कुछ घाव बने हुए है रुक्मणि जी ने पूंछा तो श्री राधा रानी जी कहने लगी आपने कल रात श्री कृष्ण को दुध पिलाया था,वह दूध गर्म था,जब वह दूध उनके ह्रदय तक पहुँचा तो उनके ह्रदय में हमारे चरण बसते है,इसी से ये घाव मेरे पैरों में आ गए.

इतना सुनते ही रानियों का सारा अभिमान चूर चूर हो गया,वे समझ गई कि कृष्ण क्यों हम सभी से अधिक राधा रानी जी को प्रेम करते है.

वास्तव में वृंदावन श्रीराधा रानी जी का बैडरूम है,जिसे निजकक्ष कहते है, वे रोज रात में वृंदावन आती है रासलीला करती है और प्रातः फिर बरसाने चली जाती है. यदि हमारे घर कोई अपरिचित आये तो हम अपने घर के फाटक के अन्दर होते है वह अपरिचित बाहर होता है हम बाहर से ही उससे बात करते है,यदि कोई परिचित आ जाए तो हम घर के बरामदे में उससे बात करेगे,कोई व्यवहारी आ जाए तो ड्रोइंग रुम में बैठाकर उससे बात करेगे,कोई सगा रिश्तेदार आ जाए तो रसोई घर तक आ सकता है.

पर हमारे निज कक्ष में किसी का भी प्रवेश नहीं होता,यहाँ तक की एक समय के बाद बच्चे भी नहीं आते,श्रीजी का बैडरूम वृंदावन है और उन्होंने हमें अपने निज कक्ष में प्रवेश दिया है. इसलिए वृंदावन साक्षात् राधारानी है. जहाँ ब्रह्म भी उनकी आज्ञा से ही आ सकते है. जिसके संकेत पर ब्रह्माण्ड नाचता है वह "ब्रह्म" है, और ब्रह्म जिसके इशारे पर नाचता है उसे"वृंदावन" कहते है.

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पिशाच भाष्य

पिशाच भाष्य  पिशाच के द्वारा लिखे गए भाष्य को पिशाच भाष्य कहते है , अब यह पिशाच है कौन ? तो यह पिशाच है हनुमानजी तो हनुमानजी कैसे हो गये पिशाच ? जबकि भुत पिशाच निकट नहीं आवे ...तो भीमसेन को जो वरदान दिया था हनुमानजी ने महाभारत के अनुसार और भगवान् राम ही कृष्ण बनकर आए थे तो अर्जुन के ध्वज पर हनुमानजी का चित्र था वहाँ से किलकारी भी मारते थे हनुमानजी कपि ध्वज कहा गया है या नहीं और भगवान् वहां सारथि का काम कर रहे थे तब गीता भगवान् ने सुना दी तो हनुमानजी ने कहा महाराज आपकी कृपा से मैंने भी गीता सुन ली भगवान् ने कहा कहाँ पर बैठकर सुनी तो कहा ऊपर ध्वज पर बैठकर तो वक्ता नीचे श्रोता ऊपर कहा - जा पिशाच हो जा हनुमानजी ने कहा लोग तो मेरा नाम लेकर भुत पिशाच को भगाते है आपने मुझे ही पिशाच होने का शाप दे दिया भगवान् ने कहा - तूने भूल की ऊपर बैठकर गीता सुनी अब इस पर जब तू भाष्य लिखेगा तो पिशाच योनी से मुक्त हो जाएगा तो हमलोगों की परंपरा में जो आठ टिकाए है संस्कृत में उनमे एक पिशाच भाष्य भी है !

मनुष्य को किस किस अवस्थाओं में भगवान विष्णु को किस किस नाम से स्मरण करना चाहिए।?

 मनुष्य को किस किस अवस्थाओं में भगवान विष्णु को किस किस नाम से स्मरण करना चाहिए। 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️ भगवान विष्णु के 16 नामों का एक छोटा श्लोक प्रस्तुत है। औषधे चिंतयते विष्णुं, भोजन च जनार्दनम। शयने पद्मनाभं च विवाहे च प्रजापतिं ॥ युद्धे चक्रधरं देवं प्रवासे च त्रिविक्रमं। नारायणं तनु त्यागे श्रीधरं प्रिय संगमे ॥ दुःस्वप्ने स्मर गोविन्दं संकटे मधुसूदनम् । कानने नारसिंहं च पावके जलशायिनाम ॥ जल मध्ये वराहं च पर्वते रघुनन्दनम् । गमने वामनं चैव सर्व कार्येषु माधवम् ॥ षोडश एतानि नामानि प्रातरुत्थाय य: पठेत ।  सर्व पाप विनिर्मुक्ते, विष्णुलोके महियते ॥ (1) औषधि लेते समय विष्णु (2) भोजन के समय - जनार्दन (3) शयन करते समय - पद्मनाभ   (4) विवाह के समय - प्रजापति (5) युद्ध के समय चक्रधर (6) यात्रा के समय त्रिविक्रम (7) शरीर त्यागते समय - नारायण (8) पत्नी के साथ - श्रीधर (9) नींद में बुरे स्वप्न आते समय - गोविंद  (10) संकट के समय - मधुसूदन  (11) जंगल में संकट के समय - नृसिंह (12) अग्नि के संकट के समय जलाशयी  (13) जल में संकट के समय - वाराह (14) पहाड़ पर ...

कार्तिक माहात्म्य (स्कनदपुराण के अनुसार)

 *कार्तिक माहात्म्य (स्कनदपुराण के अनुसार) अध्याय – ०३:--* *(कार्तिक व्रत एवं नियम)* *(१) ब्रह्मा जी कहते हैं - व्रत करने वाले पुरुष को उचित है कि वह सदा एक पहर रात बाकी रहते ही सोकर उठ जाय।*  *(२) फिर नाना प्रकार के स्तोत्रों द्वारा भगवान् विष्णु की स्तुति करके दिन के कार्य का विचार करे।*  *(३) गाँव से नैर्ऋत्य कोण में जाकर विधिपूर्वक मल-मूत्र का त्याग करे। यज्ञोपवीत को दाहिने कान पर रखकर उत्तराभिमुख होकर बैठे।*  *(४) पृथ्वी पर तिनका बिछा दे और अपने मस्तक को वस्त्र से भलीभाँति ढक ले,*  *(५) मुख पर भी वस्त्र लपेट ले, अकेला रहे तथा साथ जल से भरा हुआ पात्र रखे।*  *(६) इस प्रकार दिन में मल-मूत्र का त्याग करे।*  *(७) यदि रात में करना हो तो दक्षिण दिशा की ओर मुँह करके बैठे।*  *(८) मलत्याग के पश्चात् गुदा में पाँच (५) या सात (७) बार मिट्टी लगाकर धोवे, बायें हाथ में दस (१०) बार मिट्टी लगावे, फिर दोनों हाथों में सात (७) बार और दोनों पैरों में तीन (३) बार मिट्टी लगानी चाहिये। - यह गृहस्थ के लिये शौच का नियम बताया गया है।*  *(९) ब्रह्मचारी के लिये, इसस...