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विभिन्न धान्यों से शिवपूजन


शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव पर अखण्ड चावल चढ़ाने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। शिवजी के ऊपर एक वस्त्र चढ़ाकर उसी पर चावल अर्पित करने चाहिए।
शिवजी पर तिल चढ़ाने से घोर पापों का नाश हो जाता है।
जौ द्वारा की हुई शिव की पूजा स्वर्गीय सुख की वृद्धि करने वाली है।
गेहूँ शंकरजी को संतोष प्रदान करता है। (९ सेर में एक लाख गेहूँ होता है।)
मूँग द्वारा शिवपूजन करने से सुख की प्राप्ति होती है।
प्रियंगु (कंगनी) द्वारा शिव का पूजन करने से उपासक के धर्म, अर्थ, काम-भोग की वृद्धि होती है।
राई से पूजन करने पर काम, क्रोध, लोभ और मोह रूपी शत्रुओं का विनाश होता है।
अरहर के पत्तों से शिवजी का श्रृंगार करके की गयी पूजा सभी फलों को देने वाली है।
शिवोपासना में जहां रत्नों से निर्मित शिवलिंगों की पूजा में विशाल वैभव का प्रयोग होता है, वहां सरलता की दृष्टि से केवल बिल्वपत्र, जल, अक्षत और मुख से बम-बम की ध्वनि निकालने से ही शिवपूजा पूर्ण हो जाती है। इसीलिए वे ‘उदारशिरोमणि’ और ‘आशुतोष’ कहे जाते हैं। भगवान सदाशिव धर्म की साक्षात् प्रतिमूर्ति हैं और उनके विधिवत् पूजन से जीवन में कभी दु:ख की अनुभूति नहीं होती है। अनिष्टकारक दुर्योगों में शिवलिंग के अभिषेक से भगवान आशुतोष की प्रसन्नता प्राप्त हो जाती है, सभी ग्रहजन्य बाधाएं शान्त हो जाती हैं, अपमृत्यु भाग जाती है और सभी प्रकार के सुखभोग प्राप्त हो जाते हैं। शिवलिंग के अर्चन से मनुष्य को भूमि, विद्या, पुत्र, बान्धव, श्रेष्ठता, ज्ञान एवं मुक्ति सब कुछ प्राप्त हो जाता है।
धरती पर जिनके पैर लड़खड़ा जाते हैं, उनके लिए भूमि ही सहारा है; उसी प्रकार जिन्होंने शिव का अपराध किया है, उनके लिए भी भगवान शिव ही शरणदाता हैं। भगवान शंकर सबके एकमात्र मूल हैं, उनकी पूजा ही सबसे बढ़कर है; क्योंकि मूल के सींचे जाने पर शाखा रूपी समस्त देवता स्वत: तृप्त हो जाते हैं।
शिवे भक्ति: शिवे भक्ति: शिवे भक्तिर्भवे भवे।
अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम।।
अर्थात्–’प्रत्येक जन्म में मेरी शिव में भक्ति हो, शिव में भक्ति हो, शिव में भक्ति हो। शिव के सिवा दूसरा कोई मुझे शरण देने वाला नहीं। महादेव ! आप ही मेरे लिए शरणदाता हैं।’

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