गुरुवार, 18 जनवरी 2018

क्यों किया था कृष्‍ण ने पलायन, जानें रहस्य

क्यों किया था कृष्‍ण ने पलायन, जानें रहस्य...

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कहते हैं कि राधा और कृष्ण के प्रेम की शुरुआत बचपन में ही हो गई थी। कृष्ण नंदगांव में रहते थे और राधा बरसाने में। नंदगांव और बरसाने से मथुरा लगभग 42-45 किलोमीटर दूर है। अब सवाल यह उठता है कि जब 11 वर्ष की अवस्था में श्रीकृष्ण मथुरा चले गए थे, तो इतनी लघु अवस्था में गोपियों के साथ प्रेम या रास की कल्पना कैसे की जा सकती है? मथुरा में उन्होंने कंस से लोहा लिया और कंस का अंत करने के बाद तो जरासंध उनकी जान का दुश्मन बन गया था जो शक्तिशाली मगथ का सम्राट था और जिसे कई जनपदों का सहयोग था। उससे दुश्मनी के चलते श्रीकृष्ण को कई वर्षों तक तो भागते रहना पड़ा था। जब परशुराम ने उनको सुदर्शन चक्र दिया तब जाकर कहीं आराम मिला। लेकिन इसके पीछे का सच भी जानेंगे अगले पन्नों पर।

उल्लेखनीय है कि महाभारत या भागवत पुराण में 'राधा' के नाम का  उल्लेख नहीं मिलता है। फिर यह राधा नाम की महिला भगवान कृष्ण के जीवन में कैसे आ गई या कहीं यह मध्यकाल के कवियों की कल्पना तो नहीं?

यह सच है कि कृष्ण से जुड़े ग्रंथों में राधा का नाम नहीं है। सुखदेवजी ने भी भागवत में राधा का नाम नहीं लिया। यदि भगवान कृष्ण के जीवन में राधा का जरा भी महत्व था, तो क्यों नहीं राधा का नाम कृष्ण से जुड़े ग्रंथों में मिलता है? या कहीं ऐसा तो नहीं की वेद व्यासजी ने जानबूझकर श्रीकृष्ण और राधा के प्रेम प्रसंग को नहीं लिखा?

कृष्ण के साथ राधा भक्ति की शुरुआत कहां से हुई
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भक्तिकाल : माना जाता है कि मध्यकाल या भक्तिकाल में राधा और कृष्ण की प्रेमकथा को विस्तार मिला। अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन किया गया और कृष्ण के योद्धा चरित्र का नाश कर दिया गया। राधा-कृष्ण की भक्ति की शुरुआत निम्बार्क संप्रदाय, वल्लभ-संप्रदाय, राधावल्लभ संप्रदाय, सखीभाव संप्रदाय आदि ने की। निम्बार्क, चैतन्य, बल्लभ, राधावल्लभ, स्वामी हरिदास का सखी- ये संप्रदाय राधा-कृष्ण भक्ति के 5 स्तंभ बनकर खड़े हैं। निम्बार्क का जन्म 1250 ईस्वी में हुआ। इसका मतलब कृष्ण की भक्ति के साथ राधा की भक्ति की शुरुआत मध्यकाल में हुई। उसके पूर्व यह प्रचलन में नहीं थी?

पांचों संप्रदायों में सबसे प्राचीन निम्बार्क और राधावल्लभ दो संप्रदाय हैं।दक्षिण के आचार्य निम्बार्कजी ने सर्वप्रथम राधा-कृष्ण की युगल उपासना का प्रचलन किया। राधावल्भ संप्रदाय के लोग कहते हैं कि राधावल्लभ संप्रदाय के प्रवर्तक श्रीकृष्ण वंशी अवतार कहे जाने वाले और वृंदावन के प्राचीन गौरव को पुनर्स्थापित करने वाले रसिकाचार्य हित हरिवंशजी महाप्रभु के संप्रदाय की प्रवर्तक आचार्य राधा हैं।

इन दोनों संप्रदायों मेंराधाष्टमीके उत्सव का विशेष महत्व है। निम्बार्क व राधावल्लभ संप्रदाय का प्रमुख गढ़ वृंदावन है। निम्बार्क संप्रदाय के विद्वान व वृंदावन शोध संस्थान से जुड़े छीपी गली निवासी वृंदावन बिहारी कहते हैं कि कृष्ण सर्वोच्च प्रेमी थे। उनका व्यक्तित्व बहुआयामी था। वैष्णवाचार्यों ने भी अपने-अपने तरीकों से उनकी आराधना की है।

निम्बार्क संप्रदाय कहता है कि श्याम और श्यामा का एक ही स्वरूप हैं। भगवान कृष्ण ने अपनी लीलाओं के लिए स्वयं से राधा का प्राकट्य किया और दो शरीर धारण कर लिए। लेकिन यह तो भक्तिभाव में कही गई बाते हैं, इनमें तथ्‍य कहां है? इतिहास अलौकिक बातों से नहीं बनता। ऐसी बातें करने वालों को झूठा माना जाता है और ऐसे ही लोग तो धर्म की प्रतिष्ठा गिराते हैं। आखिर सच क्या है?जानते हैं अगले पन्नों पर...

 कौन थीं राधा
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बरसाना और नंदगांव :राधा का जिक्र पद्म पुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलता है। पद्म पुराण के अनुसार राधा वृषभानु नामक गोप की पुत्री थीं। वृषभानु वैश्य थे। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार राधा कृष्ण की मित्र थीं और उसका विवाह रापाण, रायाण अथवा अयनघोष नामक व्यक्ति के साथ हुआ था। उस जमाने में स्त्री का विवाह किशोर अवस्था में ही कर दिया जाता था। बरसाना और नंदगाव के बीच 4 मील का फासला है।

महाभारत के सभी प्रमुख पात्र भीष्म, द्रोण, व्यास, कर्ण, अर्जुन, युधिष्ठिर आदि श्रीकृष्ण के महान-चरित्र की प्रशंसा करते थे। उस काल में भी परस्त्री से अवैध संबंध रखना दुराचार माना जाता था। यदि श्रीकृष्ण का भी राधा नामक किसी औरत से संबंध हुआ होता तो श्रीकृष्ण पर भी अंगुली उठाई जाती?

बरसाना राधा के पिता वृषभानु का निवास स्थान था। बरसाने से मात्र 4 मील पर नंदगांव है, जहां श्रीकृष्ण के सौतेले पिता नंदजी का घर था। होली के दिन यहां इतनी धूम होती है कि दोनों गांव एक हो जाते हैं। बरसाने से नंदगाव टोली आती है और नंदगांव से भी टोली जाती है।

कुछ विद्वान मानते हैं कि राधाजी का जन्म यमुना के निकट स्थित रावल ग्राम में हुआ था और बाद में उनके पिता बरसाना में बस गए। लेकिन अधिकतर मानते हैं कि उनका जन्म बरसाना में हुआ था। राधारानी का विश्वप्रसिद्ध मंदिर बरसाना ग्राम की पहाड़ी पर स्थित है। बरसाना में राधा को 'लाड़ली' कहा जाता है।

बरसाना गांव के पास दो पहाड़ियां मिलती हैं। उनकी घाटी बहुत ही कम चौड़ी है। मान्यता है कि गोपियां इसी मार्ग से दही-मक्खन बेचने जाया करती थीं। यहीं पर कभी-कभी कृष्ण उनकी मक्खन वाली मटकी छीन लिया करते थे।

गौरतलब है कि मथुरा में कृष्ण के जन्म के बाद कंस के सभी सैनिकों को नींद आ गई थी और वासुदेव की बेड़ियां किसी चमत्कार से खुल गई थीं, तब वासुदेवजी भगवान कृष्ण को नंदगांव में नंदराय के यहां आधी रात को छोड़ आए थे। कुछ मानते हैं कि वे मथुरा के पास गोकुल में यशोदा के मायके छोड़ आए थे, जहां से यशोदा उन्हें नंदगांव ले गईं।

नंद के घर लाला का जन्म हुआ है, ऐसी खबर धीरे-धीरे गांव में फैल गई। यह सुनकर सभी नंदगांववासी खुशियां मनाने लगे। कृष्ण ने नंदगांव में रहते हुए पूतना, शकटासुर, तृणावर्त आदि असुरों का वध किया। यहां के घाट और उसके पास अन्य मनोरम स्थल हैं, जैसे- गोविंद घाट, गोकुलनाथजी का बाग, बाजनटीला, सिंहपौड़ी, यशोदा घाट, रमणरेती आदि।

गोकुल क्या है :गोकुल यमुना के तट पर बसा एक गांव है, जहां सभी नंदों की गायों का निवास स्थान था। यहीं पर रोहिणी ने बलराम को जन्म दिया था। बलराम देवकी के 7वें गर्भ में थे जिन्हें योगमाया ने आकर्षित करके रोहिणी के गर्भ में डाल दिया था। यह स्थान गोप लोगों का था। मथुरा से गोकुल की दूरी महज 12 किलोमीटर है।

श्रीचैतन्य महाप्रभु के ब्रज आगमन के पश्चात श्रीवल्लभाचार्य ने यमुना के इस मनोहर तट पर श्रीमद्भागवत का पारायाण किया था। इनके पुत्र श्रीविट्ठलाचार्य और उनके पुत्र श्रीगोकुलनाथजी की बैठकें भी यहां पर हैं। असल में श्रीविट्ठलनाथजी ने औरंगजेब को चमत्कार दिखलाकर इस स्थान का अपने नाम पर पट्टा लिया था। उन्होंने ही इस गोकुल को बसाया था। यह नंद का रहने का स्थान नहीं था। गोकुल के पास काम्यवन से कृष्ण का नाता जरूर है।

राधा की कृष्ण से पहली मुलाकात..
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संकेत तीर्थ :कहते हैं कि राधा की कृष्ण से पहली मुलाकात नंदगांव और बरसाने के बीच हुई। एक-दूसरे को देखने के बाद दोनों में सहज ही एक-दूसरे के प्रति आकर्षण बढ़ गया। माना जाता है कि यहीं से राधा-कृष्ण के प्रेम की शुरुआत हुई। इस स्थान पर आज एक मंदिर है। इसे संकेत स्थान कहा जाता है। मान्यता है कि पिछले जन्म में ही दोनों ने यह तय कर लिया था कि हमें इस स्थान पर मिलना है। उस वक्त कृष्ण की उम्र क्या रही होगी?

यहां हर साल राधा के जन्मदिन यानी राधाष्टमी से लेकर अनंत चतुर्दशी के दिन तक मेला लगता है। इन दिनों लाड़ली मंदिर में दर्शन के लिए दूर-दूर से श्रद्घालु आते हैं और राधा-कृष्ण के प्रथम स्थल पर आकर इनके शाश्वत प्रेम को याद करते हैं।

वृंदावन से राधा-कृष्ण का क्या रिश्ता है?
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वृंदावन कृष्ण लीलाओं का स्थल :वृंदावन मथुरा से 14 किलोमीटर दूर है। मथुरा कंस का नगर है, जहां यमुना तट पर बनी जेल से मुक्त कराकर वासुदेवजी कृष्ण को नंदगांव ले गए। मथुरा से नंदगांव 42 किलोमीटर दूर है। प्राचीन वृंदावन गोवर्धन के निकट था। बरसाना मथुरा से 50 किमी दूर उत्तर-पश्चिम में और गोवर्धन से 21 किमी दूर उत्तर में स्थित है। नंदगांव तो बरसाने के बिलकुल पास है लेकिन वृंदावन से दूर।

श्रीमद्भागवत और विष्णु पुराण के अनुसार कंस के अत्याचार से बचने के लिए नंदजी कुटुंबियों और सजातियों के साथ नंदगांव से वृंदावन में आकर बस गए थे। विष्णु पुराण में वृंदावन में कृष्ण की लीलाओं का वर्णन भी है। यहां श्रीकृष्‍ण ने कालिया का दमन किया था।

रासलीला :मान्यता है कि यहीं पर श्रीकृष्‍ण और राधा एक घाट पर युगल स्नान करते थे। यहीं पर श्रीकृष्ण और गोपियां आंख-मिचौनी का खेल खेलते थे। यहीं पर श्रीकृष्ण और उनके सभी सखा और सखियां मिलकर रासलीला अर्थात तीज-त्योहारों पर नृत्य-उत्सव का आयोजन करते थे। कृष्ण की शरारतों के कारण उन्हें बांकेबिहारी कहा जाता है। यहां पर यमुना घाट के प्रत्येक घाट से भगवान कृष्ण की कथा जुड़ी हुई है।

कृष्ण ने जो नंदगांव और वृंदावन में छोटा-सा समय गुजारा था, उसको लेकर भक्तिकाल के कवियों ने ही कविताएं लिखी हैं। उनमें कितनी सच्चाई है? इतिहासकार मानते हैं कि एक सच को इतना महिमामंडित किया गया कि अब वह कल्पनापूर्ण लगता है। कृष्ण जब मथुरा में कंस को मारने गए, तब उनका जीवन पूरी तरह से बदल गया। कंस को मारने के बाद उनके जीवन में उथल-पुथल शुरू हो गई।

क्या राधा कृष्ण की मामी थीं?
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कहते हैं कि राधा ने श्रीकृष्ण के प्रेम के लिए सामाजिक बंधनों का उल्लंघन किया था। ब्रह्मवैवर्त पुराण ब्रह्मखंड के 5वें अध्याय में श्लोक 25, 26 के अनुसार राधा को कृष्ण की पुत्री सिद्ध किया गया है। राधा का पति रायाण गोलोक में श्रीकृष्ण का अंशभूत गोप था। अतः गोलोक के रिश्ते से राधा श्रीकृष्ण की पुत्रवधू हुई। माना जाता है कि गोकुल में रायाण रहते थे।

ब्रह्मवैवर्त पुराण प्रकृति खंड अध्याय 48 के अनुसार राधा कृष्ण की पत्नी (विवाहिता) थीं, जिनका विवाह ब्रह्मा ने करवाया। इसी पुराण के प्रकृति खंड अध्याय 49 श्लोक 35, 36, 37, 40, 47 के अनुसार राधा श्रीकृष्ण की मामी थीं, क्योंकि उनका विवाह कृष्ण की माता यशोदा के भाई रायाण के साथ हुआ था।

ऐसा माना जाता है कि एक जंगल में स्वयं ब्रह्मा ने राधा और कृष्ण का गंधर्व विवाह करवाया था। गर्ग संहिता के अनुसार श्रीकृष्ण के पिता उन्हें अकसर पास के भंडिर ग्राम में ले जाया करते थे। वहां उनकी मुलाकाता राधा से होती थी।

एक बार की बात है कि जब वे अपने पिता के साथ भंडिर गांव गए तो अचानक तेज रोशनी चमकी और मौसम बिगड़ने लगा, कुछ ही समय में आसपास सिर्फ और सिर्फ अंधेरा छा गया। इस अंधेरे में एक पारलौकिक शख्सियत का अनुभव हुआ। वह राधारानी के अलावा और कोई नहीं थी। अपने बाल रूप को छोड़कर श्रीकृष्ण ने किशोर रूप धारण कर लिया और इसी जंगल में ब्रह्माजी ने विशाखा और ललिता की उपस्थिति में राधा-कृष्ण का गंधर्व विवाह करवा दिया। विवाह के बाद माहौल सामान्य हो गया, राधा ब्रह्मा, विशाखा और ललिता अंतर्ध्यान हो गए।

असल में इस वास्तविक घटना को अलंकृत कर दिया गया है। राधा सचमुच ही कृष्ण से बड़ी थीं और सामाजिक दबावों के चलते यह संभव नहीं था कि उम्र में कहीं बड़ी लड़की से विवाह किया जाए। लेकिन यदि दोनों के बीच प्रेम रहा होगा तो निश्चित ही गुपचुप रूप से गंधर्व विवाह किया गया हो और इस बात को छुपाए रखा हो?

पुराणों के अनुसार देवी रुक्मणि का जन्म अष्टमी तिथि को कृष्ण पक्ष में हुआ था और श्रीकृष्ण का जन्म भी कृष्ण पक्ष में अष्टमी तिथि को हुआ था व देवी राधा वह भी अष्टमी तिथि को अवतरित हुई थीं। राधाजी के जन्म में और देवी रुक्मणि के जन्म में एक अंतर यह है कि देवी रुक्मणि का जन्म कृष्ण पक्ष में हुआ था और राधाजी का शुक्ल पक्ष में। राधाजी को नारदजी के शाप के कारण विरह सहना पड़ा और देवी रुक्मणि से कृष्णजी की शादी हुई। राधा और रुक्मणि यूं तो दो हैं, परंतु दोनों ही माता लक्ष्मी के ही अंश हैं।

रामचरित मानस के बालकांड में जैसा कि तुलसीदासजी ने लिखा है कि नारदजी को यह अभिमान हो गया था कि उन्होंने काम पर विजय प्राप्त कर ली है। नारदजी की परीक्षा लेने के लिए भगवान विष्णु ने अपनी माया से एक नगर का निर्माण किया। उस नगर के राजा ने अपनी रूपवती पुत्री के लिए स्वयंवर का आयोजन किया। स्वयंवर में नारद मुनि भी पहुंचे और कामदेव के बाणों से घायल होकर राजकुमारी को देखकर मोहित हो गए।

राजकुमारी से विवाह की इच्छा लेकर वे भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उनसे निवेदन करने लगे कि प्रभु मुझे आप अपना सुंदर रूप प्रदान करें, क्योंकि मुझे राजकुमारी से प्रेम हो गया है और मैं उससे विवाह की इच्छा रखता हूं। नारदजी के वचनों को सुनकर भगवान मुस्कुराए और कहा तुम्हें विष्णु रूप देता हूं। जब नारद विष्णु रूप लेकर स्वयंवर में पहुंचे तब उस राजकुमारी ने विष्णुजी के गले में वरमाला डाल दी। नारदजी वहां से दु:खी होकर चले आ रहे थे। मार्ग में उन्हें एक जलाशय दिखा जिसमें उन्होंने चेहरा देखा तो वे समझ गए कि विष्णु भगवान ने उनके साथ छल किया है और उन्हें वानर रूप दिया है।

नारदजी क्रोधित होकर वैकुंठ पहुंचे और भगवान को बहुत भला-बुरा कहा और उन्हें पत्नी का वियोग सहना होगा, यह श्राप दिया। नारदजी के इस श्राप की वजह से रामावतार में भगवान रामचन्द्रजी को सीता का वियोग सहना पड़ा था और कृष्णावतार में देवी राधा का।

श्रीकृष्ण ने देवी रुक्मणि के प्रेम और पतिव्रत को देखते हुए उन्हें वरदान दिया कि जो व्यक्ति पूरे वर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन आपका व्रत और पूजन करेगा और पौष मास की कृष्ण अष्टमी को व्रत कर के उसका उद्यापन यानी समापन करेगा उसे कभी धनाभाव का सामना नहीं करना होगा। जो आपका भक्त होगा उसे देवी लक्ष्मी की कृपा भी प्राप्त होगी।

राधा की कृष्ण से एक और मुलाकात...

कृष्ण की अनुपस्थिति में उसके प्रेमभाव में और भी वृद्धि हुई। जब कृष्ण वृंदावन छोड़कर मथुरा चले गए, तब राधा के लिए उन्हें देखना और उनसे मिलता और दुर्लभ हो गया।

राधा और कृष्ण दोनों का पुनर्मिलन कुरुक्षेत्र में बताया जाता है, जहां सूर्यग्रहण के अवसर पर द्वारिका से कृष्ण और वृंदावन से नंद के साथ राधा आई थीं। राधा सिर्फ कृष्ण को देखने और उनसे मिलने ही नंद के साथ गई थी। इसका जिक्र पुराणों में मिलता है।

अंत में एक अन्य कथा...
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ब्रह्मवैवर्त पुराण में आया है कि एक बार राधा गोलोक से कहीं बाहर गई थीं। उस समय श्रीकृष्ण अपनी विरजा नाम की सखी के साथ विहार कर रहे थे। संयोगवश राधा वहां आ गईं। विरजा के साथ कृष्ण को देखकर राधा क्रोधित हो गईं और कृष्ण एवं विरजा को भला-बुरा कहने लगी। लज्जावश विरजा नदी बनकर बहने लगी।

कृष्ण के प्रति राधा के क्रोधपूर्ण शब्दों को सुनकर कृष्ण का मित्र सुदामा आवेश में आ गया। सुदामा कृष्ण का पक्ष लेते हुए राधा से आवेशपूर्ण शब्दों में बात करने लगा। सुदामा के इस व्यवहार को देखकर राधा नाराज हो गईं।

राधा ने सुदामा को दानव रूप में जन्म लेने का शाप दे दिया। क्रोध में भरे हुए सुदामा ने भी हित-अहित का विचार किए बिना राधा को मनुष्य योनि में जन्म लेने का शाप दे दिया। राधा के शाप से सुदामा शंखचूर नाम का दानव बना जिसका वध भ गवान शिव ने किया। सुदामा के शाप के कारण राधा को मनुष्य रूप में जन्म लेकर धरती पर आना पड़ा।
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