सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

पत्नी

सा भार्या या गृहे दक्षा सा भार्या या प्रियंवदा।
सा भार्या या पतिप्राणा सा भार्या या पतिव्रता।। (108/18)
अर्थात-जो पत्नी गृहकार्य में दक्ष है, जो प्रियवादिनी है, जिसके पति ही प्राण हैं और जो पतिपरायणा है, वास्तव में वही पत्नी है।-
गृह कार्य में दक्ष-गृह कार्य यानी घर के काम, जो पत्नी घर के सभी कार्य जैसे- भोजन बनाना, साफ-सफाई करना, घर को सजाना, कपड़े-बर्तन आदि साफ करना, बच्चों की जिम्मेदारी ठीक से निभाना, घर आए अतिथियों का मान-सम्मान करना, कम संसाधनों में ही गृहस्थी चलाना आदि कार्यों में निपुण होती है, उसे ही गृह कार्य में दक्ष माना जाता है। ये गुण जिस पत्नी में होते हैं, वह अपने पति की प्रिय होती है।
प्रियवादिनी-पत्नी को अपने पति से सदैव संयमित भाषा में ही बात करना चाहिए। संयमित भाषा यानी धीरे-धीरे व प्रेमपूर्वक। पत्नी द्वारा इस प्रकार से बात करने पर पति भी उसकी बात को ध्यान से सुनता है व उसके मनोरथ पूरा करता है। पति के अलावा पत्नी को घर के अन्य सदस्यों जैसे- सास-ससुर, देवर-देवरानी, जेठ-जेठानी, ननद आदि से भी प्रेमपूर्वक ही बात करनी चाहिए।
पतिपरायणा-जो पत्नी अपने पति को ही सर्वस्व मानती है तथा सदैव उसी के आदेश का पालन करती है, उसे ही धर्म ग्रंथों में पतिव्रता कहा गया है। पतिव्रता पत्नी सदैव अपने पति की सेवा में लगी रहती है, भूल कर भी कभी पति का दिल दुखाने वाली बात नहीं कहती। यदि पति को कोई दुख की बात बतानी हो तो भी वह पूर्ण संयमित होकर कहती है। वही वास्तविक रूप में पत्नी कहलाने योग्य है।
गरुड़ पुराण के अनुसार जो पत्नी प्रतिदिन स्नान कर पति के लिए सजती-संवरती है, कम खाती है, कम बोलती है तथा सभी मंगल चिह्नों से युक्त है। जो निरंतर अपने धर्म का पालन करती है तथा अपने पति का प्रिय करती है, उसे ही सच्चे अर्थों में पत्नी मानना चाहिए। जिसकी पत्नी में यह सभी गुण हों, उसे स्वयं को देवराज इंद्र ही समझना चाहिए।
गरुड़ पुराण के अनुसार जिस मनुष्य की पत्नी विरूप नेत्रों वाली (सौंदर्य हीन आंखों वाली), पाप करने वाली, कलह प्रिय यानी विवाद करने वाली तथा विवाद में बढ़-चढ़कर बोलने वाली है, वह पति के लिए वास्तव में वृद्धावस्था ही है। जिसकी पत्नी दूसरों पुरुष का आश्रय लेने वाली है, दूसरे के घर में रहने की आकांक्षा रखती है, बुरे काम करती है तथा निर्लज्ज है, वह अपने पति के लिए साक्षात वृद्धावस्था स्वरूप ही है।
न दानेन न मानेन नार्जवेन न सेवया।
न शस्त्रेण न शास्त्रेण सर्वथा विषमा: स्त्रिय:।।
अर्थात-जो स्त्रियां स्वभाव से ही धर्म विरुद्ध आचरण करने वाली एवं पति के प्रतिकूल व्यवहार रखना वाली हैं, वे स्त्रियां न धन आदि के दान, न सम्मान, न सरल व्यवहार, न सेवाभाव, न शस्त्र भय और न शास्त्रों के उपदेश से ही अनुकूल की जा सकती है। वे तो सदा प्रतिकूल ही रहती है।
गरुड़ पुराण के अनुसार जो स्त्री सांप के कंठ में स्थित विष के समान है, जो सदैव गुस्से में रहने वाली है, जिसके नेत्र भयानक लाल रंग के दूसरों को डराने वाले हैं, जो बाघ के समान भयानक है, जो कौए के समान चिल्लाने वाली है, अपने पति से प्रेम न रखने वाली है, दूसरों पुरुषों की ओर आकर्षित होने वाली है, वह स्त्री पति के लिए सदैव दुख का कारण बनती है।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पिशाच भाष्य

पिशाच भाष्य  पिशाच के द्वारा लिखे गए भाष्य को पिशाच भाष्य कहते है , अब यह पिशाच है कौन ? तो यह पिशाच है हनुमानजी तो हनुमानजी कैसे हो गये पिशाच ? जबकि भुत पिशाच निकट नहीं आवे ...तो भीमसेन को जो वरदान दिया था हनुमानजी ने महाभारत के अनुसार और भगवान् राम ही कृष्ण बनकर आए थे तो अर्जुन के ध्वज पर हनुमानजी का चित्र था वहाँ से किलकारी भी मारते थे हनुमानजी कपि ध्वज कहा गया है या नहीं और भगवान् वहां सारथि का काम कर रहे थे तब गीता भगवान् ने सुना दी तो हनुमानजी ने कहा महाराज आपकी कृपा से मैंने भी गीता सुन ली भगवान् ने कहा कहाँ पर बैठकर सुनी तो कहा ऊपर ध्वज पर बैठकर तो वक्ता नीचे श्रोता ऊपर कहा - जा पिशाच हो जा हनुमानजी ने कहा लोग तो मेरा नाम लेकर भुत पिशाच को भगाते है आपने मुझे ही पिशाच होने का शाप दे दिया भगवान् ने कहा - तूने भूल की ऊपर बैठकर गीता सुनी अब इस पर जब तू भाष्य लिखेगा तो पिशाच योनी से मुक्त हो जाएगा तो हमलोगों की परंपरा में जो आठ टिकाए है संस्कृत में उनमे एक पिशाच भाष्य भी है !

शिव नाम महिमा

भगवान् श्रीकृष्ण कहते है ‘महादेव महादेव’ कहनेवाले के पीछे पीछे मै नामश्रवण के लोभ से अत्यन्त डरता हुआ जाता हूं। जो शिव शब्द का उच्चारण करके प्राणों का त्याग करता है, वह कोटि जन्मों के पापों से छूटकर मुक्ति को प्राप्त करता है । शिव शब्द कल्याणवाची है और ‘कल्याण’ शब्द मुक्तिवाचक है, वह मुक्ति भगवन् शंकर से ही प्राप्त होती है, इसलिए वे शिव कहलाते है । धन तथा बान्धवो के नाश हो जानेके कारण शोकसागर मे मग्न हुआ मनुष्य ‘शिव’ शब्द का उच्चारण करके सब प्रकार के कल्याणको प्राप्त करता है । शि का अर्थ है पापोंका नाश करनेवाला और व कहते है मुक्ति देनेवाला। भगवान् शंकर मे ये दोनों गुण है इसीलिये वे शिव कहलाते है । शिव यह मङ्गलमय नाम जिसकी वाणी मे रहता है, उसके करोड़ जन्मों के पाप नष्ट हो जाते है । शि का अर्थ है मङ्गल और व कहते है दाता को, इसलिये जो मङ्गलदाता है वही शिव है । भगवान् शिव विश्वभर के मनुष्योंका सदा ‘शं’ कल्याण करते है और ‘कल्याण’ मोक्ष को कहते है । इसीसे वे शंकर कहलाते है । ब्रह्मादि देवता तथा वेद का उपदेश करनेवाले जो कोई भी संसार मे महान कहलाते हैं उन सब के देव अर्थात् उपास्य होने...

श्रीशिव महिम्न: स्तोत्रम्

              __श्रीशिव महिम्न: स्तोत्रम्__ शिव महिम्न: स्तोत्रम शिव भक्तों का एक प्रिय मंत्र है| ४३ क्षन्दो के इस स्तोत्र में शिव के दिव्य स्वरूप एवं उनकी सादगी का वर्णन है| स्तोत्र का सृजन एक अनोखे असाधारण परिपेक्ष में किया गया था तथा शिव को प्रसन्न कर के उनसे क्षमा प्राप्ति की गई थी | कथा कुछ इस प्रकार के है … एक समय में चित्ररथ नाम का राजा था| वो परं शिव भक्त था| उसने एक अद्भुत सुंदर बागा का निर्माण करवाया| जिसमे विभिन्न प्रकार के पुष्प लगे थे| प्रत्येक दिन राजा उन पुष्पों से शिव जी की पूजा करते थे | फिर एक दिन … पुष्पदंत नामक के गन्धर्व उस राजा के उद्यान की तरफ से जा रहा था| उद्यान की सुंदरता ने उसे आकृष्ट कर लिया| मोहित पुष्पदंत ने बाग के पुष्पों को चुरा लिया| अगले दिन चित्ररथ को पूजा हेतु पुष्प प्राप्त नहीं हुए | पर ये तो आरम्भ मात्र था … बाग के सौंदर्य से मुग्ध पुष्पदंत प्रत्यक दिन पुष्प की चोरी करने लगा| इस रहश्य को सुलझाने के राजा के प्रत्येक प्रयास विफल रहे| पुष्पदंत अपने दिव्या शक्तियों के कारण अदृश्य बना रहा | और फिर … राजा च...