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युग

हमारे सनातन धर्म के धर्मग्रंथो में  सृष्टि के संपूर्ण काल को चार भागों में बाँटा गया है | सतयुग सबसे पहला तो कलियुग को अंतिम युग बताया गया है | अभी कलियुग चल  रहा  है |

         सत  युग  को  कृत  युग  भी  कहा  जाता  है-----
(1) 4,800 दिव्य वर्ष अर्थात एक कृत युग (सतयुग)। मानव वर्ष के मान से 1728000 वर्ष।
(2) 3,600 दिव्य वर्ष अर्थात एक त्रेता युग। मानव वर्ष के मान से 1296000 वर्ष।
(3) 2,400 दिव्य वर्ष अर्थात एक द्वापर युग। मानव वर्ष के मान से 864000 वर्ष।
(4) 1,200 दिव्य वर्ष अर्थात एक कलियुग । मानव वर्ष के 432000 वर्ष। 
                          याने  चारो  युग  की  अवधी  को  जोड दोगे  तो
12000 दिव्य वर्ष अर्थात 4 युग अर्थात एक महायुग जिसे दिव्य युग भी कहते हैं।

दिव्य  युग  =  सत युग +  ञेता युग   +  द्वापर  युग   + कलियुग

सतयुग : यह पहला युग माना जाता है और इसका दूसरा नाम कृतयुग भी है |
इस युग की शुरुआत अक्षय तृतीया पर्व से हुई है | यह युग सबसे पावन और पाप रहित था | इसमे भगवान विष्णु के अवतार जो हुए वे थे ,  मत्स्य अवतार , कूर्म अवतार, वराह अवतार और नृसिंह अवतार | लोग अति दीर्घ आयु वाले होते थे। ज्ञान-ध्यान और तप का प्राधान्य था |  इसे 4800 दिव्य वर्षो का माना गया है |

त्रेतायुग : त्रेतायुग को 3600 दिव्य वर्ष का माना गया है। इस युग का आरम्भ कार्तिक शुक्ल नवमी से शुरू हुआ था |  यह काल भगवान राम के विष्णुधाम जाने से समाप्त होता है।

द्वापर : द्वापर मानवकाल के तृतीय युग को कहते हैं। यह काल कृष्ण के देहान्त से समाप्त होता है। इसमे मुख्यत महाभारत हुई थी |

कलियुग : कलियुग चौथा और अंतिम युग है। आर्यभट्ट के अनुसार महाभारत युद्ध 3137 ई.पू. में हुआ था। कृष्ण का इस युद्ध के 35 वर्ष पश्चात देहान्त हुआ, तभी से कलियुग का आरम्भ माना जाता है। कलियुग में विष्णु का कल्कि अवतार और गणेश जी का धूम्रवर्ण अवतार होना है

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