"किसी को छोटा कहना अपराध है"

को बड़? "छोट कहत अपराधू"।
सुनि गुन भेदु समुझिहहिं साधू।।

गोस्वामी जी नाम वंदना प्रकरण में स्वयं राम जी और उनके नाम में तुलना कर कहना चाहते हैं कि इनमें कौन बड़ा है। वे कहते हैं कि श्रीराम जी और उनके नाम में कौन बड़ा है , ये तो सरलता से कह सकता हूं लेकिन किसी को छोटा कहना अपराध होगा।
"को बड़"? - स्पष्ट है कि राम से बढ़कर राम जी के नाम है।
परंतु
"छोट कहत अपराधू" - संत सज्जन किसी को छोट अर्थात निम्न नहीं कह सकते हैं।
 भरत जी को देखिए...
"मो समान को पातकी"?
"मैं जन नीचू"
"महि सकल अनरथ कर मूला"
हनुमानजी को देखिए... प्रात लेइ जो नाम हमारा। तेहि दिन ताहि न मिलइ अहारा।।
अस "मैं अधम" सखा सुनु मोहु पर रघुबीर।
किन्हीं कृपा सुमिरि गुन भरे बिलोचन नीर।।

गोस्वामी जी... मो सम दीन न दीन हित तुम समान रघुबीर...
अतः हमें अपने व्यवहारिक जीवन में "छोट कहत अपराधू" अर्थात किसी को छोटा नहीं समझना चाहिए लेकिन ये भी ध्यान रहे कि दीनता हीनता में न बदले।

गोस्वामी जी कहते हैं कि श्रीराम जी और उनके नाम में कौन बड़ा और कौन छोटा (कनिष्ठ) कहना अपराध है लेकिन  आगे वे इसे स्पष्ट करने में चूकते भी नहीं कि...मोरें मत बड़ नाम दुहू ते।
सगुण साकार और निर्गुण निराकार दोनों से बड़ा उनका नाम है।
अर्थात
 "को बड़"?
बड़ा कौन?
इसे स्पष्ट करने के बाद भी वे छोटा कहने से बचते हैं।
श्रेष्ठता के अभिमान में डूबे हुए हम मंदबुद्धि  के लिए (अहंकार अति दुखद डमरूआ) ये "छोट कहत अपराधू" संजीवनी बूटी है....

सीताराम जय सीताराम....... सीताराम जय सीताराम

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