श्रीकृष्ण भक्ति के अवतार देवर्षि नारद ने एक बार भगवान सदाशिव के श्री चरणों में प्रणाम करके पूछा ‘‘हे महाभाग ! मैं आपका दास हूं। बतलाइए, श्री राधादेवी लक्ष्मी हैं या देवपत्नी। महालक्ष्मी हैं या सरस्वती हैं? क्या वे अंतरंग विद्या हैं या वैष्णवी प्रकृति हैं? कहिए, वे वेदकन्या हैं, देवकन्या हैं अथवा मुनिकन्या हैं?’’श् सदाशिव बोले - ‘‘हे मुनिवर ! अन्य किसी लक्ष्मी की बात क्या कहें, कोटि-कोटि महालक्ष्मी उनके चरण कमल की शोभा के सामने तुच्छ कही जाती हैं। हे नारद जी ! एक मुंह से मैं अधिक क्या कहूं? मैं तो श्री राधा के रूप, लावण्य और गुण आदि का वर्णन करने मे अपने को असमर्थ पाता हूं। उनके रूप आदि की महिमा कहने में भी लज्जित हो रहा हूं। तीनों लोकों में कोई भी ऐसा समर्थ नहीं है जो उनके रूपादि का वर्णन करके पार पा सके। उनकी रूपमाधुरी जगत को मोहने वाले श्रीकृष्ण को भी मोहित करने वाली है। यदि अनंत मुख से चाहूं तो भी उनका वर्णन करने की मुझमें क्षमता नहीं है।’’ नारदजी बोले - ‘‘हे प्रभो श्री राधिकाजी के जन्म का माहात्म्य सब प्रकार से श्रेष्ठ है। हे भक्तवत्सल ! उसको मैं सुनना चाहता हूं।’’ हे महाभाग ! स...
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