सावन का पवित्र शुरू हो गया है, इस बार मलमास होने के कारण सावन दो महीने का होगा. भगवान भोलेनाथ की कृपा प्राप्त करने के लिए लोग रुद्राभिषेक करते हैं तरह तरह के अनुष्ठान करते हैं, कांवरिया लोग कांवड़ ले जाते हैं. जो लोग ऊपर वर्णित काम करने में अस्मर्थ है उनके लिए एक ऐसा उपाय बता रहे हैं, नीचे लिखा गया स्तोत्र का केवल पाठ कर लिया तो पूरा पुण्य मिलता है. श्रीरुद्रद्वादशनामस्तोत्रं प्रथमं तु महादेवं द्वितीयं तु महेश्वरम् । तृतीयं शङ्करं प्रोक्तं चतुर्थं वृषभध्वजम् ॥ १॥ पञ्चमं कृत्तिवासं च षष्ठं कामाङ्गनाशनम् । सप्तमं देवदेवेशं श्रीकण्ठं चाष्टमं तथा ॥ २॥ नवमं तु हरं देवं दशमं पार्वतीपतिम् । रुद्रमेकादशं प्रोक्तं द्वादशं शिवमुच्यते ॥ ३॥ फलश्रुति एतद्वादशनामानि त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः । गोघ्नश्चैव कृतघ्नश्च भ्रूणहा गुरुतल्पगः ॥ ४॥ स्त्रीबालघातकश्चैव सुरापो वृषलीपतिः । सर्वं नाशयते पापं शिवलोकं स गच्छति ॥ ५॥ शुद्धस्फटिकसङ्काशं त्रिनेत्रं चन्द्रशेखरम् । इन्दुमण्डलमध्यस्थं वन्दे देवं सदाशिवम् ॥ ६॥ ॥ इति श्रीरुद्रद्वादशनामस्तोत्रं समाप्तम् ॥
भगवान् श्रीकृष्ण कहते है ‘महादेव महादेव’ कहनेवाले के पीछे पीछे मै नामश्रवण के लोभ से अत्यन्त डरता हुआ जाता हूं। जो शिव शब्द का उच्चारण करके प्राणों का त्याग करता है, वह कोटि जन्मों के पापों से छूटकर मुक्ति को प्राप्त करता है । शिव शब्द कल्याणवाची है और ‘कल्याण’ शब्द मुक्तिवाचक है, वह मुक्ति भगवन् शंकर से ही प्राप्त होती है, इसलिए वे शिव कहलाते है । धन तथा बान्धवो के नाश हो जानेके कारण शोकसागर मे मग्न हुआ मनुष्य ‘शिव’ शब्द का उच्चारण करके सब प्रकार के कल्याणको प्राप्त करता है । शि का अर्थ है पापोंका नाश करनेवाला और व कहते है मुक्ति देनेवाला। भगवान् शंकर मे ये दोनों गुण है इसीलिये वे शिव कहलाते है । शिव यह मङ्गलमय नाम जिसकी वाणी मे रहता है, उसके करोड़ जन्मों के पाप नष्ट हो जाते है । शि का अर्थ है मङ्गल और व कहते है दाता को, इसलिये जो मङ्गलदाता है वही शिव है । भगवान् शिव विश्वभर के मनुष्योंका सदा ‘शं’ कल्याण करते है और ‘कल्याण’ मोक्ष को कहते है । इसीसे वे शंकर कहलाते है । ब्रह्मादि देवता तथा वेद का उपदेश करनेवाले जो कोई भी संसार मे महान कहलाते हैं उन सब के देव अर्थात् उपास्य होने
इन इक्कीस वस्तुओं को सीधे पृथ्वी पर रखना वर्जित होता है। ये वस्तुयें पृथ्वी की ऊर्जा को अव्यवस्थित करती हैं और उस स्थान को अशुभ बनाती हैं। ये वस्तुयें हैं - (1) मोती (2) शुक्ति (सीपी) (3) शालग्राम (4) शिवलिंग (5) देवी मूर्ति (6) शंख (7) दीपक (8) यन्त्र (9) माणिक्य (10) हीरा (11) यज्ञसूत्र (यज्ञोपवीत) (12) पुष्प (फूल) (13) पुष्पमाला (14) जपमाला (15) पुस्तक (16) तुलसीदल (17) कर्पूर (18) स्वर्ण (19) गोरोचन (20) चंदन (21) शालिग्राम का स्नान कराया अमृत जल । इन सभी वस्तुओं को किसी आधार पर रख तभी उस पर इनको स्थापित कर पूजित किया जाता है। पृथ्वी पर अक्षत, आसन, काष्ठ या पात्र रख कर इनको उस पर रखते हैं- मुक्तां शुक्तिं हरेरर्चां शिवलिंगं शिवां तथा । शंखं प्रदीपं यन्त्रं च माणिक्यं हीरकं तथा ।। यज्ञसूत्रं च पुष्पं च पुस्तकं तुलसीदलम् । जपमालां पुष्पमालां कर्पूरं च सुवर्णकम् ।। गोरोचनं च चन्दनं च शालग्रामजलं तथा । एतान् वोढुमशक्ताहं क्लिष्टा च भगवन् शृणु।। अतएव इन इक्कीस वस्तुओं को सजगता पूर्वक किसी न किसी वस्तु के ऊपर रखना चाहिए। प्रायः दीपक को लोग अक्षतपुंज पर रखते
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