यदुवंशियो के कुलपुरोहित थे श्रीगर्गाचार्य जी, वे बड़े तपस्वी थे, वासुदेव जी कि प्रेरणा से वे एक दिन नंदबाबा के गोकुल में आये .उन्हें देखकर नंदबाबा को बड़ी प्रसन्नता हुई. वे हाथ जोड़कर उठ खड़े हुए, उनके चरणों में प्रणाम किया .विधि पूर्वक आतिथ्य हो जाने पर नन्द बाबा ने बडी ही मधुर वाणी में कहा- ‘भगवन आप तो स्वयं पूर्णकाम है आप ब्रह्मवेत्ताओ में श्रेष्ठ है, इसलिए मेरे इन दोनों बालको के नामकरण आदि संस्कार आप ही कर दीजिए. नंदबाबा की बात सुनकर गर्गाचार्ये ने एकांत में दोनों बालको का नामकरण संस्कार कर दिया .
गर्गाचार्येजी ने बलरामजी की तरफ देखकर कहा -यह रोहिणी का पुत्र है इसलिए इसका नाम होगा ‘रौहिंणेय’, ये सबको आनंद देने वाला होगा, इसलिए इसका दूसरा नाम होगा ‘राम’ इसके बल की कोई सीमा नहीं है अतः इसका एक नाम ‘बल’ भी है.इनका एक नाम ‘संकर्षण’ भी है.
भगवान की ओर देखकर वे बोले –ये जो साँवला-साँवला है, यह प्रत्येक युग में शरीर ग्रहण करता है, पिछले युगो में इसने क्रमश: श्वेत, रक्त, और पीत, ये तीन विभिन्न रंग स्वीकार किये थे, अब की यह कृष्णवर्ण हुआ है, इसलिए इसका नाम ‘कृष्ण’ होगा यह तुम्हारा पुत्र पहले कभी वासुदेव के घर भी पैदा हुआ था इसलिए इस रहस्य को जानने वाले लोग इसे ‘श्रीमान् वासुदेव’ भी कहते है .
तुम्हारे पुत्र के ओर भी बहुत से नाम है, तथा रूप भी अनेक है, इसके जितने गुण है, और जितने कर्म है, उन सबके अनुसार अलग-अलग नाम पड़ जाते है, यह तुम लोगो का परम कल्याण करेगा, और समस्त गोप और गौओ को बहुत आनंदित करेगा, नन्दजी चाहे जिस द्रृष्टि से देखो गुण में, संपत्ति में, और सौंदर्य में, कीर्ति, और प्रभाव में तुम्हारा यह पुत्र साक्षात् भगवान नारायण के समान है.तुम बड़ी सावधानी से इसकी रक्षा करो. इस प्रकार आचार्य नंदबाबा को समझकर चले गये.
थोड़ी देर बाद दोनों माताये यशोदा और रोहिणीजी आपस में कहने लगी - बहिन आचार्य जी बडो टेढो-सो नाम रखकर गये, हमसे तो ये नाम लिए भी नहीं जायेगे इसलिए बहिन हम ने तो अपने लाला को नाम ‘बलुआ’ रख लिया है, तो यशोदा जी बोली- बहिन हमने भी अपने लाला को नाम ‘कनुआ’ रख लिया है और माता यशोदा कृष्णजी को हमेशा इसी नाम से पुकारा करती थी.ये भगवान के लाड़ के नाम थे.
सार-
भगवान से भी ज्यादा शक्ति भगवान के नाम में है भगवान से ज्यादा भगवान के नाम ने लोगो को तारा है इसलिए हर पल उनके मधुर नामो का उच्चारण करते रहो.
गर्गाचार्येजी ने बलरामजी की तरफ देखकर कहा -यह रोहिणी का पुत्र है इसलिए इसका नाम होगा ‘रौहिंणेय’, ये सबको आनंद देने वाला होगा, इसलिए इसका दूसरा नाम होगा ‘राम’ इसके बल की कोई सीमा नहीं है अतः इसका एक नाम ‘बल’ भी है.इनका एक नाम ‘संकर्षण’ भी है.
भगवान की ओर देखकर वे बोले –ये जो साँवला-साँवला है, यह प्रत्येक युग में शरीर ग्रहण करता है, पिछले युगो में इसने क्रमश: श्वेत, रक्त, और पीत, ये तीन विभिन्न रंग स्वीकार किये थे, अब की यह कृष्णवर्ण हुआ है, इसलिए इसका नाम ‘कृष्ण’ होगा यह तुम्हारा पुत्र पहले कभी वासुदेव के घर भी पैदा हुआ था इसलिए इस रहस्य को जानने वाले लोग इसे ‘श्रीमान् वासुदेव’ भी कहते है .
तुम्हारे पुत्र के ओर भी बहुत से नाम है, तथा रूप भी अनेक है, इसके जितने गुण है, और जितने कर्म है, उन सबके अनुसार अलग-अलग नाम पड़ जाते है, यह तुम लोगो का परम कल्याण करेगा, और समस्त गोप और गौओ को बहुत आनंदित करेगा, नन्दजी चाहे जिस द्रृष्टि से देखो गुण में, संपत्ति में, और सौंदर्य में, कीर्ति, और प्रभाव में तुम्हारा यह पुत्र साक्षात् भगवान नारायण के समान है.तुम बड़ी सावधानी से इसकी रक्षा करो. इस प्रकार आचार्य नंदबाबा को समझकर चले गये.
थोड़ी देर बाद दोनों माताये यशोदा और रोहिणीजी आपस में कहने लगी - बहिन आचार्य जी बडो टेढो-सो नाम रखकर गये, हमसे तो ये नाम लिए भी नहीं जायेगे इसलिए बहिन हम ने तो अपने लाला को नाम ‘बलुआ’ रख लिया है, तो यशोदा जी बोली- बहिन हमने भी अपने लाला को नाम ‘कनुआ’ रख लिया है और माता यशोदा कृष्णजी को हमेशा इसी नाम से पुकारा करती थी.ये भगवान के लाड़ के नाम थे.
सार-
भगवान से भी ज्यादा शक्ति भगवान के नाम में है भगवान से ज्यादा भगवान के नाम ने लोगो को तारा है इसलिए हर पल उनके मधुर नामो का उच्चारण करते रहो.
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