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शास्त्रों एवं पुराणों अनुसार गर्भवती महिला का आचरण

शास्त्रों एवं पुराणों अनुसार गर्भवती महिला कैसे रहे?

शास्त्रों एवं पुराणों के अनुसार गर्भवती महिलाओं को अपने स्वस्थ जीवनके लिए एवं होनेवाली संतान की पुष्टता, स्वस्थता, सुंदरता,संस्कारवान् एवं दीर्घायु – हेतु गर्भावस्थामें निम्नांकित बातोंपर ध्यान देना चाहिए –
(*शास्त्र अनुसार सायंकाल के समय स्त्रीसंग न करें और न ही स्त्री सायंकाल के समय गर्भधारण करें, एसा करने पर संतान आसुरी प्रवृत्ति की होगी।)

१. गर्भवतीको हमेशा शोक, दु:ख, रंज एवं क्रोधसे दूर रहकर प्रसन्नचित्त रहना चाहिए।

२. मनमें कभी कलुषित विचार न आने दे, न किसीकी निन्दा करे, न सुने। किसीके साथ ईर्ष्यालु व्यवहार भी न करे।

३. किसी वस्तु को चोरी चोरी खाने की चेष्टा न करे। न किसी वस्तुको चुरानेका भाव मनमें लाये। हमेशा सात्विक, धार्मिक एवं परोपकारी भाव रखे। क्योंकि इनका प्रभाव गर्भस्थ शिशुपर पडता है। जैसे विचार या भाव गर्भवतीके रहेंगे, वैसी ही गर्भकी प्रकृति निर्मित होगी।

४. सडे – गले, गंदे पदार्थ (अंडा, मांस, मदिरा )
एवं रातका बचा बासी भोजन न खाये। शुद्ध सात्विक एवं भूखसे कम भोजन करें।
*मॉर्डन मेडिसिन और पाश्चात्य संस्कृति की पढाई किए हुए डॉक्टर अंडे, मांस खाने की सलाह देते हैं परंतु यह गंदे पदार्थ न खाएं

५. भांग, मदिरा, धूम्रपान एवं अन्य नशीले पदार्थका सेवन न करें।

६. अश्लील गंदा साहित्य न पढें, संतो ने  अश्लील चलचित्र (सिनेमा) देखने को मना किया है। अपने शयन कक्ष में भद्दे-गंदे चित्र न लगाएं, न उनका अवलोकन करे। भगवान् के, संत – महापुरुषोंके तथा वीरसपूतोंके, पतिव्रताओं के सुंदर चित्र लगाए।

७.  दिनमें अधिक न सोये। रातमें अधिक समयतक जागरण न करें।

८. हमेशा शरीरको शुद्ध, स्वस्थ बनाये रखनेका प्रयास करें। गंदी हवा एवं अशुद्ध वातावरण से दूर रहे।

९. सहवाससे सर्वथा दूर रहें। इससे गर्भपात होनेका डर रहता है अथवा शिशु अल्पायु या विकृत अंगवाला हो सकता है, संयम- नियमसे रहे।

१०. अधिक जोर से हंसना, जोरसे चिल्लाना, अधिक बोलना, बार बार चिढ़ना, हमेशा क्रोधयुक्त चेहरा बनाए रखना एवं अपशब्दोंका प्रयोग करना गर्भवती के लिए वर्जित है। अधिक रोना, शोक, चिंता करना भी सही नही कहा गया है।

११. गर्भवती महिलाको कोयलेसे या नाखूनसे पुथ्वीपर नही लिखना चाहिए, न कोई आकृति बनानी चाहिए।

१२. बार बार सीढियां चढना-उतरना, भारी वजन उठाना, हाथी घोडा ऊँटकी सवारी(प्रवास) भी वर्जित है।

१३. नदी मे बैठकर नाव पार करना या जलाशयकी सैर करना मना है। न अकेलेमे किसी पेड के नीचे सोना चाहिए।

१४. कटु, तीखे, कसैले, अधिक गर्म या चटपटे मसालेदार पदार्थ नही खाने चाहिए। (आज महिलाएं खासकर गर्भावस्था मे अधिक जहां तहां ज्यो-त्यो खा – पी रही है)

१५. गर्भवती को पपीता नहीं खाना चाहिए, इससे गर्भक्षय होनेका भय रहता है।

१६. गर्भवतीको बाल खुले रखना, सबेरे देरतक सोते रहना एवं कुक्कुटकी तरह बैठना वर्जित है। देरतक आगके पास बैठना या अधिक ठंडे स्थानपर बैठकर कार्य करना, झाडू, सूप, ऊखल, हड्डी, राख या कंडेपर बैठना मना है।

१७. हमेशा उत्तम सुसंस्कृत साहित्यका अध्ययन करना (रामायण, महाभारत, भागवत् आदि धार्मिक ग्रंथ), एवं भजन करना चाहिए। अधिक उपवास करना, गरिष्ठ भोजन, अवशिष्ट पदार्थका सेवन वर्जित है।

इस प्रकार गर्भवती महिलाके द्वारा किये गये क्रिया कलाप, खान पान, बोल चाल, श्रवण-मनन आदिका गर्भपर गहरा प्रभाव पड़ता है।
छत्रपति शिवाजी की माता ने ब्राह्मण से संपूर्ण महाभारत की कथा गर्भावस्थामें श्रवण की थी, महाराणा प्रताप की माता ने भी गर्भावस्थामें उत्तम आचरण किया। वीर अभिमन्यु जब माताके गर्भमे था, तब उसने अपने पिता अर्जुनके द्वारा चक्रव्यूह तोडनेकी कथा सुनी थी, पर व्यूहसे निकलनेकी कथा के समय माताको नींद आनेसे पिताने आगेकी कहानी सुनानी बंद कर दी थी। इसलिए उसने चक्रव्यूह तोडना सीख लिया था, पर निकलना नही सीख पाया। प्रह्लाद की माता कयाधु को गर्भावस्थामें नारदजी के सान्निध्य में हरि कथा और सत्संग मिला था।
अतः गर्भावस्थाके समय महिलाओंको बहुत सावधान रहकर जीवन – यापन करना चाहिए।

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