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शिव-सती

जब सती जी भगवान श्री राम की परीक्षा लेकर वापस आ गई तो शिव जी ने उनसे पूंछा तुमने राम जी की किस प्रकार परीक्षा ली, सारी बात सच-सच कहो. इस पर सती जी कहती है-
"कछु ना परीछा लीन्ह गोसाई, कीन्ह प्रनामु तुम्हारिहि नाई"
अर्थात -सती जी कहती है-  हे स्वामी ! मैंने कुछ भी परीक्षा नहीं ली, वहाँ जाकर आपकी ही तरह प्रणाम किया.
यहाँ सती जी ने एक साथ दो झूठ बोल दिए, पहला सती जी कह रही है कुछ भी परीक्षा नहीं ली,जबकि सीता का रूप लेकर परीक्षा ही तो की थी,और दूसरा कह रही है आपही की तरह मैंने भी केवल प्रणाम ही किया,जबकि सती जी ने प्रणाम किया ही नहीं श्री राम जी सती जी को देखकर प्रणाम किया था.
व्यक्ति यदि जीवन में भूल कर भी दे तो क्या,ऐसाकौन है जिससे जीवन में गलतियाँ नहीं होती पर अपनी गलती को,भूल को छिपाना और भी बड़ी गलती है.अहिल्या जी ने भी भूल की थी परन्तु अपनी भूल को अपने पति के सामने स्वीकार कर लिया था,कुटिया से बाहर आकर गौतम ऋषि से क्षमा माँगी, चाहती तो अपनी गलती को कुटिया के अंदर स्वीकार करती.
पर उस जगह स्वीकार की, जहाँ लोग आते-जाते है ताकि जब पत्थर बने और लोगो की ठोकर लगे तो एक दिन ठोकर खाते-खाते,ठाकुर जी का चरण स्पर्श भी हो जायेगा,और गलती स्वीकार करने का परिणाम भी यही हुआ,प्रभु श्री राम जी चरणों का स्पर्श मिला.
भूल करने का सामर्थ है तो उसे स्वीकार करने का सामर्थ भी होना चाहिये,सती तो झूठ बोल रही थी, पर शिव जी ने होठ नहीं, आँखे देखी, देखते ही समझ गए, एलोपैथी डॉक्टर और वैध में यही अंतर है, जो मरीज से यह पूंछे कि क्या हो रहा है, पेट साफ़ हुआ,कब्ज है, पेट में दर्द है क्या है,वह वैध नहीं हो सकता,वह तो एलोपैथी डॉक्टर होगा.
क्योकि वह वैध ही नहीं जो पूछे,मरीज कि नब्ज देखे और बता दे, उसे मन का सब पता चल जाता है. इसी तरह शिव जी है सब पता चल गया, पर बोले नहीं,यही उनकी महानता है.अंत में शिव जी ने जान लिया किप्रभु की माया बड़ी प्रबल है प्रभु कि माया को सिर नवाया जिसने प्रेरणा करके सती के मुह से भी झूठ कहला दिया.और आगे चल दिए.

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