वैकुण्ठ चतुर्दशी
कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी (वैकुण्ठ चतुर्दशी) की रात्रि में शंकर और विष्णु का मिलन हरिहर मिलाप के रूप में होता है। मध्य रात्रि में शिव जी विष्णु जी से मिलने जाते है. इसलिए भगवान शिव का पूजन, विष्णु जी की प्रिय तुलसीदल से किया जाता है, बाद में विष्णु जी शिव जी के पास आते है, तो भगवान चतुर्भज को फलों का भोग और शिवप्रिय बिल्वपत्र अर्पित किये जाते है, इस प्रकार एक दूसरे के प्रिय वस्तुओं का भोग एक दूसरे को लगाते है. इस दिन भगवान को विभिन्न ऋतु फलों का भोग लगाया जाता है।बैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन श्रद्धालुजन व्रत रखते हैं. यह व्रत कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी, जो अरुणोदयव्यापिनी हो, के दिन मनाया जाता है. इस चतुर्दशी के दिन यह व्रत भगवान शिव तथा विष्णु जी की पूजा करके मनाया जाता है. जिस रात्रि में चतुर्दशी अरुणोदयव्यापिनी हो, उस रात्रि में व्रत-उपवास रखा जाता है. अगले अरुणोदय में इस व्रत की पूजा तथा पारणा की जाती है.
बैकुण्ठ चतुर्दशी की पूजा
इस दिन सुबह-सवेरे दिनचर्या से निवृत होकर स्नान आदि करें. उसके बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें. भगवान विष्णु की विधिवत रुप से पूजा - अर्चना करें. उसके बाद धूप-दीप, चन्दन तथा पुष्पों से भगवान का पूजन तथा आरती करें. इस भक्तों को भगवान विष्णु की कमल पुष्पों के साथ पूजा करनी चाहिए और भगवान विष्णु का निर्मल मन से ध्यान करना चाहिए. इस दिन विष्णु जी के मंत्र जाप तथा स्तोत्र पाठ करने से बैकुण्ठ धाम की प्राप्ति होती है.
विश्वास स्तर बढ़ने के लिए इस दिन श्री विष्णु जी की मूर्ति या तस्वीर को नहला धुलाकर अच्छे वस्त्र पहना कर सेवा करनी चाहिए और निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिये-'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय'
नाम और प्रसिद्धि कि कामना रखने वाले को इस दिन श्री विष्णु जी की पूजा करके यानि पंचोपचार पूजा यानि धूप , दीप नवैद्द गंध आदि से पूजा करनी चाहिए | तन्त्रशास्त्र के मतानुसार श्री विष्णु जी को अक्षत नहीं चढ़ाना चाहिए और कहना चाहिए -'श्रीघर माधव गोपिकवाल्लंभ , जानकी नायक रामचंद्रभये '
बैकुण्ठ चतुर्दशी की कथा
एक बार की बात है कि नारद जी पृथ्वीलोक से घूमकर बैकुण्ठ धाम पंहुचते हैं. भगवान विष्णु उन्हें आदरपूर्वक बिठाते हैं और प्रसन्न होकर उनके आने का कारण पूछते हैं.
नारद जी कहते है कि -प्रभु! आपने अपना नाम कृपानिधान रखा है. इससे आपके जो प्रिय भक्त हैं वही तर पाते हैं. जो सामान्य नर-नारी है, वह वंचित रह जाते हैं. इसलिए आप मुझे कोई ऎसा सरल मार्ग बताएं, जिससे सामान्य भक्त भी आपकी भक्ति कर मुक्ति पा सकें.
यह सुनकर विष्णु जी बोले- हे नारद! मेरी बात सुनो, कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को जो नर-नारी व्रत का पालन करेंगें और श्रद्धा - भक्ति से मेरी पूजा करेंगें, उनके लिए स्वर्ग के द्वार साक्षात खुले होगें.
इसके बाद विष्णु जी जय-विजय को बुलाते हैं और उन्हें कार्तिक चतुर्दशी को स्वर्ग के द्वार खुला रखने का आदेश देते हैं. भगवान विष्णु कहते हैं कि इस दिन जो भी भक्त मेरा थोडा़ सा भी नाम लेकर पूजन करेगा, वह बैकुण्ठ धाम को प्राप्त करेगा.
कार्तिक बैकुण्ठ चौदस का महत्व
कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी का बैकुण्ठ चौदस नाम भगवान शिव का दिया गया है. यह व्रत विष्णु जी तथा शिव जी के "ऎक्य" का प्रतीक है. प्राचीन मतानुसार एक बार विष्णु जी काशी में शिव भगवान को एक हजार स्वर्ण कमल के पुष्प चढा़ने का संकल्प करते हैं. जब अनुष्ठान का समय आता है, तब शिव भगवान, विष्णु जी की परीक्षा लेने के लिए एक स्वर्ण पुष्प कम कर देते हैं. पुष्प कम होने पर विष्णु जी अपने "कमल नयन" नाम और "पुण्डरी काक्ष" नाम को स्मरण करके अपना एक नेत्र चढा़ने को तैयार होते हैं. भगवान शिव उनकी यह भक्ति देखकर प्रकट होते हैं. वह भगवान शिव का हाथ पकड़ लेते हैं और कहते हैं कि तुम्हारे स्वरुप वाली कार्तिक मास की इस शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी"बैकुण्ठ चौदस"के नाम से जानी जाएगी.
भगवान शिव, इसी बैकुण्ठ चतुर्दशी को करोडो़ सूर्यों की कांति के समान वाला सुदर्शन चक्र, विष्णु जी को प्रदान करते हैं. इसी दिन शिव तथा विष्णु जी कहते हैं कि इस दिन स्वर्ग के द्वार खुले रहेंगें. मृत्युलोक में रहना वाला कोई भी व्यक्ति इस व्रत को करता है, वह अपना स्थान बैकुण्ठ धाम में सुनिश्चित करेगा.
कार्तिक शुक्ल चौदस के दिन ही भगवान विष्णु ने"मत्स्य"रुप में अवतार लिया था. इसके अगले दिन कार्तिक पूर्णिमा के व्रत का फल दस यज्ञों के समान फल देने वाला माना गया है.
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