ब्रह्मचर्य
ये शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है:- ब्रह्म + चर्य , अर्थात ज्ञान प्राप्ति के लिए जीवन बिताना।योग में ब्रह्मचर्य का अर्थ अधिकतर " यौन संयम " समझा जाता है।
ब्रह्मचर्य, जैन धर्म में पवित्र रहने का गुण है, यह जैन श्रावक के पांच महान प्रतिज्ञा में से एक है! (अन्य है सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह )| । जैन श्रावक के लिए ब्रह्मचर्य का अर्थ है शुद्धता । यह यौन गतिविधियों में भोग को नियंत्रित करने के लिए इंद्रियों पर नियंत्रण का अभ्यास के लिए है | जो अविवाहित हैं, उन जैन श्रावको के लिए, विवाह से पहले यौनाचार से दूर रहना अनिवार्य है ।
ब्रह्मचर्य का महिमा गान :- ---------
भगवान बुद्ध - ‘‘भोग और रोग साथी है और ब्रह्मचर्य आरोग्य का मूल है।’’
गुरुगोविन्द सिंह - ‘‘इंद्रिय संयम करो, ब्रह्मचर्य पालो, इससे तुम बलवान और वीर्यवान बनोगे।’’
आयुर्वेदाचार्य वाग्भट्ट - ‘‘संसार में जितना सुख है वह आयु के अधीन है और आयु ब्रह्मचर्य के अधीन है।’’
छांदोग्योपनिषद् - ‘‘एक तरफ चारों वेदों का उपदेश और दूसरी तरफ ब्रह्मचर्य, यदि दोनों की तौला जाए तो ब्रह्मचर्य का पलड़ा वेदों के उपदेश से पलड़े के बराबर रहता है।’’
भीष्मपितामह - ‘‘तीनों लोक के साम्राज्य का त्याग करना, स्वर्ग का अधिकार छोड़ देना, इससे भी कोई उत्तम वस्तु हो, उसको भी छोड़ देना परन्तु ब्रह्मचर्य को भंग न करना।’’
स्वामी रामतीर्थ - ‘‘जैसे दीपक का तेल-बत्ती के द्वारा ऊपर चढक़र प्रकाश के रूप में परिणित होता है, वैसे ही ब्रह्मचारी के अन्दर का वीर्य सुषुम्रा नाड़ी द्वारा प्राण बनकर ऊपर चढ़ता हुआ ज्ञान-दीप्ति में परिणित हो जाता है।’’
जीव शास्त्री डॉ० क्राउन एम.डी . - ‘‘ब्रह्मचारी यह नहीं जानता कि व्याधिग्रस्त दिन कैसा होता है। उसकी पाचन शक्ति सदा नियमित रहती है। उसकी वृद्धावस्था में बाल्यावस्था जैसा ही आनन्द रहता है।’’
प्रो० रौवसन - ‘‘ब्रह्मचारी की बुद्धि कुशाग्र और विशद होती है, उसकी वाणी मोहक होती है, उसकी स्मरण शक्ति तीव्र होती है, उसका स्वभाव आनन्दी और उत्साही होता है।’’
स्वामी विद्यानन्द - ‘‘ब्रह्मचर्य से परोपकार की वृत्ति जागृत होती है और परोपकार की वृत्ति के बिना किसी को मोक्ष मिलना सम्भव नहीं है।’’
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