प्रभु के चरण -यह कथा है एक कछुए की
सुना है की बेचारे ने प्रभु चरणों की महिमा सुनी और उन चरणों मे जाना चाहा |
तो पूछने लगा सबसे कहाँ जाऊं कहाँ जाऊं?
कछुआ पूछने लगा सबसे - परन्तु किसी को कुछ पता ही न था की जाना कहाँ है प्रभु चरण ढूँढने ?
वह खोजता रहा, खोजता रहा -आखिर एक दिन उसे कोई भक्त मिला - जिसने उस नन्हे को अनन्त क्षीर सागर में जाने को कहा -
और वहाँ की राह भी सुझाई |
एक तो बेचारा ठहरा कछुआ - कछुए की धीमी चाल से ही चल पड़ा |
चलते चलते - चलते चलते ....
सागर तट तक भी पहुँच ही गया - फिर तैरने लगा |
बढ़ता गया - बढ़ता गया ....और आखिर पहुँच गया वहां जहां प्रभु शेष शैया पर विराजमान थे -
शेष जी उन को अपने तन पर सुलाये आनन्द रत थे और लक्ष्मी मैया भक्ति स्वरूप हो प्रभु के चरण दबा रही थीं |
कछुए ने प्रभु चरण छूने चाहे - पर शेष जी और लक्ष्मी जी ने उसे ऐसा करने से रोक दिया
बेचारा तुच्छ अशुद्ध प्राणी जो ठहरा
बेचारा - उसकी सारी तपस्या - अधूरी ही रह गई |
प्रभु सिर्फ मुस्कुराते रहे - और यह सब देखते नारद सोचते रहे कि प्रभु ने अपने भक्त के साथ ऐसा क्यों होने दिया?
फिर समय गुज़रता रहा, एक जन्म में वह कछुआ केवट बना -
प्रभु श्री राम रूप में प्रकटे, मैया सीता रूप में और शेष जी लखन रूप में प्रकट हुए | ..
प्रभु आये और नदी पार करने को कहा - पर केवट बोला .....
पैर धुलवाओगे हमसे , तो ही पार ले जायेंगे हम ,
कही हमारी नाव ही नारी बन गई अहिल्या की तरह, तो हम गरीबों के परिवार की रोटी ही छिन जायेगी |
और फिर शेष जी और लक्ष्मी जी के सामने ही केवट ने प्रभु के चरण कमलों को धोने, पखारने का सुख प्राप्त किया |
और समय गुज़रा ...
कछुआ अब सुदामा हुआ - प्रभु कान्हा बने ,
मैया बनी रुक्मिणी और शेष जी बल दाऊ रूप धर आये |
दिन गुज़रते रहे - और एक दिन सुदामा बना वह नन्हा कछुआ -
प्रभु से मिलने आया |
धूल धूसरित पैर, कांटे लगे, बहता खून , कीचड सने ..और क्या हुआ ?
प्रभु ने अपने हाथों से अपने सुदामा के पैर धोये ,
रुक्मिणी जल ले आईं, और बलदाऊ भी वहीँ बाल सखाओं के प्रेम को देख आँखों से प्रेम अश्रु बरसाते खड़े रहे ....|
----------------------------------- श्री राधे
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