श्री शिवमहापुराण के सृष्टिखंड अध्याय १२श्लोक ८२से८६ में ब्रह्मा जी के पुत्र सनत्कुमार जी वेदव्यास जी को उपदेश देते हुए कहते है कि हर गृहस्थ को देहधारी सद्गुरू से दीक्षा लेकर पंचदेवों (श्री गणेश,सूर्य,विष्णु,दुर्गा,शंकर) की प्रतिमाओं में नित्य पूजन करना चाहिए क्योंकि शिव ही सबके मूल है, मूल (शिव)को सींचने से सभी देवता तृत्प हो जाते है परन्तु सभी देवताओं को तृप्त करने पर भी प्रभू शिव की तृप्ति नहीं होती। यह रहस्य देहधारी सद्गुरू से दीक्षित व्यक्ति ही जानते है।
सृष्टि के पालनकर्ता विष्णु ने एक बार ,सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा के साथ निर्गुण-निराकार- अजन्मा ब्रह्म(शिव)से प्रार्थना की, "प्रभों! आप कैसे प्रसन्न होते है।"
प्रभु शिव बोले,"मुझे प्रसन्न करने के लिए शिवलिंग का पूजन करो। जब जब किसी प्रकार का संकट या दु:ख हो तो शिवलिंग का पूजन करने से समस्त दु:खों का नाश हो जाता है।(प्रमाण श्री शिवमहापुराण सृष्टिखंड अध्याय श्लोक से पृष्ठ )
(२) जब देवर्षि नारद ने श्री विष्णु को शाप दिया और बाद में पश्चाताप किया तब श्री विष्णु ने नारदजी को पश्चाताप के लिए शिवलिंग का पूजन, शिवभक्तों का सत्कार, नित्य शिवशत नाम का जाप आदि क्रियाएं बतलाई।(प्रमाण श्री शिवमहापुराण सृष्टिखंड अध्याय श्लोक से पृष्ठ )
(३) एक बार सृष्टि रचयिता ब्रह्माजी देवताओं को लेकर क्षीर सागर में श्री विष्णु के पास परम तत्व जानने के लिए पहुॅचे । श्री विष्णु ने सभी को शिवलिंग की पूजा करने की आज्ञा दी और विश्वकर्मा को बुलाकर देवताओं के अनुसार अलग-अलग द्रव्य के शिवलिंग बनाकर देने की आज्ञा दी और पूजा विधि भी समझाई।(प्रमाण श्री शिवमहापुराण सृष्टिखंड अध्याय १२ )
(४) रूद्रावतार हनुमान जी ने राजाओं से कहा कि श्री शिवजी की पूजा से बढ़कर और कोई तत्व नहीं है। हनुमान जी ने एक श्रीकर नामक गोप बालक को शिव-पूजा की दीक्षा दी। (प्रमाण श्री शिवमहापुराण कोटीरूद्र संहिता अध्याय १७ ) अत: हनुमान जी के भक्तों को भी भगवान शिव की प्रथम पूजा करनी चाहिए।
(५) ब्रह्मा जी अपने पुत्र देवर्षि नारद को शिवलिंग की पूजा की महिमा का उपदेश देते है। देवर्षि नारद के प्रश्न और ब्रह्मा जी के उत्तर पर ही श्री शिव महापुराण की रचना हुई है। पार्वती जगदम्बा के अत्यन्त आग्रह से, जनकल्याण के लिए, निर्गुण निराकार अजन्मा ब्रह्म (शिव) ने सौ करोड़ श्लोकों में श्री शिवमहापुराण की रचना की। चारों वेद और अन्य सभी पुराण, श्री शिवमहापुराण की तुलना में नहीं आ सकते। प्रभू शिव की आज्ञा से विष्णु के अवतार वेदव्यास जी ने श्री शिवमहापुराण को २४६७२ श्लोकों में संक्षिप्त किया है। ग्रन्थ विक्रेताओं के पास कई प्रकार के शिवपुराण उपलब्ध है परन्तु वे मान्य नहीं है केवल २४६७२ श्लोकों वाला श्री शिवमहापुराण ही मान्य है। यह ग्रन्थ मूलत: देववाणी संस्कृत में है और कुछ प्राचीन मुद्रणालयों ने इसे हिन्दी, गुजराती भाषा में अनुदित किया है। श्लोक संख्या देखकर और हर वाक्य के पश्चात् श्लोक क्रमांक जॉंचकर ही इसे क्रय करें। जो व्यक्ति देहधारी सद्गुरू से दीक्षा लेकर , एक बार गुरूमुख से श्री शिवमहापुराण श्रवण कर फिर नित्य संकल्प करके (संकल्प में अपना गोत्र,नाम, समस्याएं और कामनायें बोलकर)नित्य श्वेत ऊनी आसन पर उत्तर की ओर मुखकर के श्री शिवमहापुराण का पूजन करके दण्डवत प्रणाम करता है और मर्यादा-पूर्वक पाठ करता है, उसे इस प्रकार सम्पूर्ण २४६७२ श्लोकों वाले श्री शिवमहापुराण का बोलते हुए सात बार पाढ करने से भगवान शंकर का दर्शन हो जाता है। पाठ करते समय स्थिर आसन हो, एकाग्र मन हो, प्रसन्न मुद्रा हो, अध्याय पढते समय किसी से वार्ता नहीं करें, किसी को प्रणाम नहीं करे और अध्याय का पूरा पाठ किए बिना बीच में उठे नहीं। श्री शिवमहापुराण पढते समय जो ज्ञान प्राप्त हुआ उसे व्यवहार में लावें।श्री शिव महापुराण एक गोपनीय ग्रन्थ है। जिसका पठन (परीक्षा लेकर) सात्विक, निष्कपटी, प्रभू शिव में श्रद्धा रखने वालों को ही सुनाना चाहिए।
(६) जब पाण्ड़व लोग वनवास में थे , तब भी कपटी, दुर्योधन , पाण्ड़वों को कष्ट देता था।(दुर्वासा ऋषि को भेजकर तथा मूक नामक राक्षस को भेजकर) तब पाण्ड़वों ने श्री कृष्ण से दुर्योधन के दुर्व्यवहार के लिए कहा और उससे राहत पाने का उपाय पूछा। तब श्री कृष्ण ने उन सभी को प्रभू शिव की पूजा के लिए सलाह दी और कहा "मैंने सभी मनोरथों को प्राप्त करने के लिए प्रभू शिव की पूजा की है और आज भी कर रहा हॅूॅ।तुम लोग भी करो।" वेदव्यासजी ने भी पाण्ड़वों को भगवान् शिव की पूजा का उपदेश दिया। हिमालय में, काशी में,उज्जैन में, नर्मदा-तट पर या विश्व में कहीं भी चले जायें, प्रत्येक स्थान पर सबसे सनातन शिवलिंग की पूजा ही है।
श्री शिवमहापुराण सृष्टिखंड अध्याय ११ श्लोक १२से १५ में श्री शिव-पूजा से प्राप्त होने वाले सुखों का वर्णन निम्न प्रकार से है:- दरिद्रता, रोग सम्बन्धी कष्ट, शत्रु द्वारा होने वाली पीड़ा एवं चारों प्रकार का पाप तभी तक कष्ट देता है, जब तक प्रभू शिव की पूजा नहीं की जाती। महादेव का पूजन कर लेने पर सभी प्रकार का दु:ख नष्ट हो जाता है, सभी प्रकार के सुख प्राप्त हो जाते है और अन्त में मुक्ति लाभ होता है। जो मनुष्य जीवन पाकर उसके मुख्य सुख संतान को प्राप्त करना चाहते हैं, उन्हें सब सुखों को देने वाले महादेव की पूजा करनी चाहिए। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र विद्यिवत शिवजी का पूजन करें। इससे सभी मनोकामनाएं सिद्द्ध हो जाती है।(प्रमाण श्री शिवमहापुराण सृष्टिखंड अध्याय ११श्लोक१२ से १५)
सृष्टि के पालनकर्ता विष्णु ने एक बार ,सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा के साथ निर्गुण-निराकार- अजन्मा ब्रह्म(शिव)से प्रार्थना की, "प्रभों! आप कैसे प्रसन्न होते है।"
प्रभु शिव बोले,"मुझे प्रसन्न करने के लिए शिवलिंग का पूजन करो। जब जब किसी प्रकार का संकट या दु:ख हो तो शिवलिंग का पूजन करने से समस्त दु:खों का नाश हो जाता है।(प्रमाण श्री शिवमहापुराण सृष्टिखंड अध्याय श्लोक से पृष्ठ )
(२) जब देवर्षि नारद ने श्री विष्णु को शाप दिया और बाद में पश्चाताप किया तब श्री विष्णु ने नारदजी को पश्चाताप के लिए शिवलिंग का पूजन, शिवभक्तों का सत्कार, नित्य शिवशत नाम का जाप आदि क्रियाएं बतलाई।(प्रमाण श्री शिवमहापुराण सृष्टिखंड अध्याय श्लोक से पृष्ठ )
(३) एक बार सृष्टि रचयिता ब्रह्माजी देवताओं को लेकर क्षीर सागर में श्री विष्णु के पास परम तत्व जानने के लिए पहुॅचे । श्री विष्णु ने सभी को शिवलिंग की पूजा करने की आज्ञा दी और विश्वकर्मा को बुलाकर देवताओं के अनुसार अलग-अलग द्रव्य के शिवलिंग बनाकर देने की आज्ञा दी और पूजा विधि भी समझाई।(प्रमाण श्री शिवमहापुराण सृष्टिखंड अध्याय १२ )
(४) रूद्रावतार हनुमान जी ने राजाओं से कहा कि श्री शिवजी की पूजा से बढ़कर और कोई तत्व नहीं है। हनुमान जी ने एक श्रीकर नामक गोप बालक को शिव-पूजा की दीक्षा दी। (प्रमाण श्री शिवमहापुराण कोटीरूद्र संहिता अध्याय १७ ) अत: हनुमान जी के भक्तों को भी भगवान शिव की प्रथम पूजा करनी चाहिए।
(५) ब्रह्मा जी अपने पुत्र देवर्षि नारद को शिवलिंग की पूजा की महिमा का उपदेश देते है। देवर्षि नारद के प्रश्न और ब्रह्मा जी के उत्तर पर ही श्री शिव महापुराण की रचना हुई है। पार्वती जगदम्बा के अत्यन्त आग्रह से, जनकल्याण के लिए, निर्गुण निराकार अजन्मा ब्रह्म (शिव) ने सौ करोड़ श्लोकों में श्री शिवमहापुराण की रचना की। चारों वेद और अन्य सभी पुराण, श्री शिवमहापुराण की तुलना में नहीं आ सकते। प्रभू शिव की आज्ञा से विष्णु के अवतार वेदव्यास जी ने श्री शिवमहापुराण को २४६७२ श्लोकों में संक्षिप्त किया है। ग्रन्थ विक्रेताओं के पास कई प्रकार के शिवपुराण उपलब्ध है परन्तु वे मान्य नहीं है केवल २४६७२ श्लोकों वाला श्री शिवमहापुराण ही मान्य है। यह ग्रन्थ मूलत: देववाणी संस्कृत में है और कुछ प्राचीन मुद्रणालयों ने इसे हिन्दी, गुजराती भाषा में अनुदित किया है। श्लोक संख्या देखकर और हर वाक्य के पश्चात् श्लोक क्रमांक जॉंचकर ही इसे क्रय करें। जो व्यक्ति देहधारी सद्गुरू से दीक्षा लेकर , एक बार गुरूमुख से श्री शिवमहापुराण श्रवण कर फिर नित्य संकल्प करके (संकल्प में अपना गोत्र,नाम, समस्याएं और कामनायें बोलकर)नित्य श्वेत ऊनी आसन पर उत्तर की ओर मुखकर के श्री शिवमहापुराण का पूजन करके दण्डवत प्रणाम करता है और मर्यादा-पूर्वक पाठ करता है, उसे इस प्रकार सम्पूर्ण २४६७२ श्लोकों वाले श्री शिवमहापुराण का बोलते हुए सात बार पाढ करने से भगवान शंकर का दर्शन हो जाता है। पाठ करते समय स्थिर आसन हो, एकाग्र मन हो, प्रसन्न मुद्रा हो, अध्याय पढते समय किसी से वार्ता नहीं करें, किसी को प्रणाम नहीं करे और अध्याय का पूरा पाठ किए बिना बीच में उठे नहीं। श्री शिवमहापुराण पढते समय जो ज्ञान प्राप्त हुआ उसे व्यवहार में लावें।श्री शिव महापुराण एक गोपनीय ग्रन्थ है। जिसका पठन (परीक्षा लेकर) सात्विक, निष्कपटी, प्रभू शिव में श्रद्धा रखने वालों को ही सुनाना चाहिए।
(६) जब पाण्ड़व लोग वनवास में थे , तब भी कपटी, दुर्योधन , पाण्ड़वों को कष्ट देता था।(दुर्वासा ऋषि को भेजकर तथा मूक नामक राक्षस को भेजकर) तब पाण्ड़वों ने श्री कृष्ण से दुर्योधन के दुर्व्यवहार के लिए कहा और उससे राहत पाने का उपाय पूछा। तब श्री कृष्ण ने उन सभी को प्रभू शिव की पूजा के लिए सलाह दी और कहा "मैंने सभी मनोरथों को प्राप्त करने के लिए प्रभू शिव की पूजा की है और आज भी कर रहा हॅूॅ।तुम लोग भी करो।" वेदव्यासजी ने भी पाण्ड़वों को भगवान् शिव की पूजा का उपदेश दिया। हिमालय में, काशी में,उज्जैन में, नर्मदा-तट पर या विश्व में कहीं भी चले जायें, प्रत्येक स्थान पर सबसे सनातन शिवलिंग की पूजा ही है।
श्री शिवमहापुराण सृष्टिखंड अध्याय ११ श्लोक १२से १५ में श्री शिव-पूजा से प्राप्त होने वाले सुखों का वर्णन निम्न प्रकार से है:- दरिद्रता, रोग सम्बन्धी कष्ट, शत्रु द्वारा होने वाली पीड़ा एवं चारों प्रकार का पाप तभी तक कष्ट देता है, जब तक प्रभू शिव की पूजा नहीं की जाती। महादेव का पूजन कर लेने पर सभी प्रकार का दु:ख नष्ट हो जाता है, सभी प्रकार के सुख प्राप्त हो जाते है और अन्त में मुक्ति लाभ होता है। जो मनुष्य जीवन पाकर उसके मुख्य सुख संतान को प्राप्त करना चाहते हैं, उन्हें सब सुखों को देने वाले महादेव की पूजा करनी चाहिए। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र विद्यिवत शिवजी का पूजन करें। इससे सभी मनोकामनाएं सिद्द्ध हो जाती है।(प्रमाण श्री शिवमहापुराण सृष्टिखंड अध्याय ११श्लोक१२ से १५)
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