प्रवृत्ति

एक पुण्यात्मा की नरकलोक की यात्रा
महाराज जनक के जीवन में कोई भूल हो गई थी। मरने पर उन्हें यमलोक जाना पड़ा। वहां उनसे कहा गया- नरक चलो। महाराज जनक तो ब्रह्मज्ञानी थे। उन्हें क्या स्वर्ग, क्या नरक। वे प्रसन्नतापूर्वक चले गए। नरक में पहुंचे तो चारों ओर से पुकार आने लगी- 'महाराज जनक जी! जरा यहीं ठहर जाइए! महाराज जनक ने पूछा - 'ये प्राणी क्यों चिल्ला रहे है ?

यमदूत बाले-'ये आपको यहाँ रोकना चाहते हैं।' जनक ने आश्चर्य से पूछा-'ये मुझे यहां क्यों रोकना चाहते हैं? यमदूत बोले- 'ये पापी प्राणी अपने-अपने पापों के अनुसार यहां दारुण यातना भोग रहे हैं। इन्हें बहुत पीड़ा थी। अब आपके शरीर को स्पर्श करके पुण्य वायु इन तक पहुंची तो इनकी पीड़ा दूर हो गई। इन्हें इससे बड़ी शांति मिली। ये आपके " पुण्य की गरिमा " को  देख रहे है  वा  महसूस कर रहे है ! जनक जी बोले-'हमारे यहां रहने से इन सबको शांति मिलती है, इनका कष्ट घटता है तो हम यहीं रहेंगे।' तात्पर्य यह है कि भला मनुष्य  (यानि  पुण्यात्मा ) नरक में पहुंचेगा तो नरक भी स्वर्ग हो जाएगा और बुरा मनुष्य  (पापात्मा ) स्वर्ग में पहुंच जाए तो स्वर्ग को भी नरक बना डालेगा।

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