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'वृषभध्वज'

                    'वृषभध्वज'

एक बार भगवान शंकर से ब्रह्तेज संपन्न ऋषियों का कुछ अपराध हो गया, ऋषियों ने घोर श्राप दे दिया. जिसके भय से त्रस्त होकर शंकर जी गोलोक पहुँचे और पवित्र गौ सुरभि माता का स्तवन करने लगे -
शिव जी ने कहा -स्रष्टि, स्थिति और विनाश करने वाली, हें! माँ तुम्हे बार-बार नमस्कार है, तुम रसमय भावो से समस्त पृथिवी तल, देवताओ और पितरो को तृप्त करती हो. तुम सर्वदेवमयी सर्वभूत समृद्धि दायिनी और सर्वलोक हितैषिणी हो. अतः मेरे शरीर का भी हित करो. मै प्रणत होकर तुम्हारी पूजा करता हूँ. ब्राह्मणों के श्राप से मेरा शरीर दग्ध हुआ जा रहा है तुम उसे शीतल करो.
इतना कहकर शंकर जी परिक्रमा करके सुरभि के देह में प्रवेश कर गए. सुरभि माता ने उन्हें अपने गर्भ में धारण कर लिया इधर शंकर जी न होने से सारे जगत में हाहाकार मच गया. तब देवताओ ने स्तवन करके ब्राह्मणों को प्रसन्न किया. और उनसे पता लगाकर वे उस गोलोक में पहुँचे, जहाँ पायस का पक, घी की नदी, मधु के सरोवर, विघमान है वहाँ के सिद्ध और सनातन देवता हाथो में दही, और पीयूष लिए रहते है.
गोलोक में उन्होंने सूर्य के समान तेजस्वी'नील'नामक सुरभि सुत को देखा भगवान शंकर ही इस वृषभ के रूप में सुरभि से अवतीर्ण हुए थे. उसके सारे अंग लाल वर्ण के थे. मुख और पूंछ पीले और खुर और सींग सफ़ेद थे, वह नील वृष ही महादेव थे. वही चतुष्पाद धर्म थे, उनके दर्शन मात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है.नील की पूजा करने से सारे जगत की पूजा करने का फल मिलता है.सभी देवताओ ने वृष रुपी भगवान की स्तुति की.
ऋषियों ने कहा -जो मनुष्य तुम्हारे साथ पाप का व्यवहार करता है वह निश्चित ही वृषल होता है और उसे 'रौरव नर्क' की यंत्रणा भोगनी पड़ती है, जो मनुष्य तुम्हे पैरो से छूता है वह गाढे बंधनों में बाधकर भूख प्यास से पीड़ित होकर नर्क यातना भोगता है.
भगवान शिव का वृषभध्वज और पशुपति बनना
एक समय सुरभि का बछड़ा माँ का दूध पी रहाथा उसके मुख से दूध का झाग उड़कर समीप बैठे हुए शिव जी के मस्तक पर जा गिरा इससे उन्हें क्रोध आ गया तब प्रजापति ने उनसे कहा प्रभु आपके मस्तक पर यह अमृत का छीटा पड़ा है. बछड़ों के पीने से गाय का दूध जूठा नहीं होता, जैसे अमृत का संग्रह करके चंद्रमा उसे बरसा देता है वैसे ही रोहिणी गौए भी अमृत से उत्पन्न दूध को बरसाती है.
तक शिव जी ने प्रसन्न होकर वृष को अपना वाहन बना लिया, और अपनी ध्वजा पर वृषभ चिन्ह सुशोभित किया. इसी से उनका नाम'वृषभध्वज'पड़ा और देवताओ ने उन्हें पशुओ का स्वामी'पशुपति'बना दिया. इसलिए भगवान शंकर सदा गौओ के साथ रहते है, गौए सारे जगत को जीवन देने वाली है.

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