एकादशी का माहात्मय
सब धर्मों के ज्ञाता, वेद और शास्त्रों के अर्थज्ञान में पारंगत, सबके हृदय में रमण करनेवाले श्रीविष्णु के तत्त्व को जाननेवाले तथा भगवत्परायण प्रह्लादजी जब सुखपूर्वक बैठे हुए थे, उस समय उनके समीप स्वधर्म का पालन करनेवाले महर्षि कुछ पूछने के लिए आये ।
महर्षियों ने कहा : प्रह्रादजी ! आप कोई ऐसा साधन बताइये, जिससे ज्ञान, ध्यान और इन्द्रियनिग्रह के बिना ही अनायास भगवान विष्णु का परम पद प्राप्त हो जाता है ।
उनके ऐसा कहने पर संपूर्ण लोकों के हित के लिए उद्यत रहनेवाले विष्णुभक्त महाभाग प्रह्रादजी ने संक्षेप में इस प्रकार कहा : महर्षियों ! जो अठारह पुराणों का सार से भी सारतर तत्त्व है, जिसे कार्तिकेयजी के पूछने पर भगवान शंकर ने उन्हें बताया था, उसका वर्णन करता हूँ, सुनिये ।
महादेवजी कार्तिकेय से बोले : जो कलि में एकादशी की रात में जागरण करते समय वैष्णव शास्त्र का पाठ करता है, उसके कोटि जन्मों के किये हुए चार प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं । जो एकादशी के दिन वैष्णव शास्त्र का उपदेश करता है, उसे मेरा भक्त जानना चाहिए ।
जिसे एकादशी के जागरण में निद्रा नहीं आती तथा जो उत्साहपूर्वक नाचता और गाता है, वह मेरा विशेष भक्त है । मैं उसे उत्तम ज्ञान देता हूँ और भगवान विष्णु मोक्ष प्रदान करते हैं । अत: मेरे भक्त को विशेष रुप से जागरण करना चाहिए । जो भगवान विष्णु से वैर करते हैं, उन्हें पाखण्डी जानना चाहिए । जो एकादशी को जागरण करते और गाते हैं, उन्हें आधे निमेष में अग्निष्टोम तथा अतिरात्र यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है । जो रात्रि जागरण में बारंबार भगवान विष्णु के मुखारविंद का दर्शन करते हैं, उनको भी वही फल प्राप्त होता है । जो मानव द्वादशी तिथि को भगवान विष्णु के आगे जागरण करते हैं, वे यमराज के पाश से मुक्त हो जाते हैं ।
जो द्वादशी को जागरण करते समय गीता शास्त्र से मनोविनोद करते हैं, वे भी यमराज के बन्धन से मुक्त हो जाते हैं । जो प्राणत्याग हो जाने पर भी द्वादशी का जागरण नहीं छोड़ते, वे धन्य और पुण्यात्मा हैं । जिनके वंश के लोग एकादशी की रात में जागरण करते हैं, वे ही धन्य हैं । जिन्होंने एकादशी को जागरण किया हैं, उन्होंने यज्ञ, दान , गयाश्राद्ध और नित्य प्रयागस्नान कर लिया । उन्हें संन्यासियों का पुण्य भी मिल गया और उनके द्वारा इष्टापूर्त कर्मों का भी भलीभाँति पालन हो गया । षडानन ! भगवान विष्णु के भक्त जागरणसहित एकादशी व्रत करते हैं, इसलिए वे मुझे सदा ही विशेष प्रिय हैं । जिसने वर्द्धिनी एकादशी की रात में जागरण किया है, उसने पुन: प्राप्त होनेवाले शरीर को स्वयं ही भस्म कर दिया । जिसने त्रिस्पृशा एकादशी को रात में जागरण किया है, वह भगवान विष्णु के स्वरुप में लीन हो जाता है । जिसने हरिबोधिनी एकादशी की रात में जागरण किया है, उसके स्थूल सूक्ष्म सभी पाप नष्ट हो जाते हैं । जो द्वादशी की रात में जागरण तथा ताल स्वर के साथ संगीत का आयोजन करता है, उसे महान पुण्य की प्राप्ति होती है । जो एकादशी के दिन ॠषियों द्वारा बनाये हुए दिव्य स्तोत्रों से, ॠग्वेद , यजुर्वेद तथा सामवेद के वैष्णव मन्त्रों से, संस्कृत और प्राकृत के अन्य स्तोत्रों से व गीत वाद्य आदि के द्वारा भगवान विष्णु को सन्तुष्ट करता है उसे भगवान विष्णु भी परमानन्द प्रदान करते हैं ।
जो एकादशी की रात में भगवान विष्णु के आगे वैष्णव भक्तों के समीप गीता और विष्णुसहस्रनाम का पाठ करता है, वह उस परम धाम में जाता है, जहाँ साक्षात् भगवान नारायण विराजमान हैं ।
पुण्यमय भागवत तथा स्कन्दपुराण भगवान विष्णु को प्रिय हैं । मथुरा और व्रज में भगवान विष्णु के बालचरित्र का जो वर्णन किया गया है, उसे जो एकादशी की रात में भगवान केशव का पूजन करके पढ़ता है, उसका पुण्य कितना है, यह मैं भी नहीं जानता । कदाचित् भगवान विष्णु जानते हों । बेटा ! भगवान के समीप गीत, नृत्य तथा स्तोत्रपाठ आदि से जो फल होता है, वही कलि में श्रीहरि के समीप जागरण करते समय ‘विष्णुसहस्रनाम, गीता तथा श्रीमद्भागवत’ का पाठ करने से सहस्र गुना होकर मिलता है ।
जो श्रीहरि के समीप जागरण करते समय रात में दीपक जलाता है, उसका पुण्य सौ कल्पों में भी नष्ट नहीं होता । जो जागरणकाल में मंजरीसहित तुलसीदल से भक्तिपूर्वक श्रीहरि का पूजन करता है, उसका पुन: इस संसार में जन्म नहीं होता । स्नान, चन्दन , लेप, धूप, दीप, नैवेघ और ताम्बूल यह सब जागरणकाल में भगवान को समर्पित किया जाय तो उससे अक्षय पुण्य होता है । कार्तिकेय ! जो भक्त मेरा ध्यान करना चाहता है, वह एकादशी की रात्रि में श्रीहरि के समीप भक्तिपूर्वक जागरण करे । एकादशी के दिन जो लोग जागरण करते हैं उनके शरीर में इन्द्र आदि देवता आकर स्थित होते हैं । जो जागरणकाल में महाभारत का पाठ करते हैं, वे उस परम धाम में जाते हैं जहाँ संन्यासी महात्मा जाया करते हैं । जो उस समय श्रीरामचन्द्रजी का चरित्र, दशकण्ठ वध पढ़ते हैं वे योगवेत्ताओं की गति को प्राप्त होते हैं ।
जिन्होंने श्रीहरि के समीप जागरण किया है, उन्होंने चारों वेदों का स्वाध्याय, देवताओं का पूजन, यज्ञों का अनुष्ठान तथा सब तीर्थों में स्नान कर लिया । श्रीकृष्ण से बढ़कर कोई देवता नहीं है और एकादशी व्रत के समान दूसरा कोई व्रत नहीं है । जहाँ भागवत शास्त्र है, भगवान विष्णु के लिए जहाँ जागरण किया जाता है और जहाँ शालग्राम शिला स्थित होती है, वहाँ साक्षात् भगवान विष्णु उपस्थित होते हैं ।
एकादशी व्रत के नियम
श्री सनातन जी कहते हैं :-
इस प्रकार कृष्ण तथा शुक्ल पक्ष में एकादशी का व्रत मोक्षदायक बताया गया है । एकादशी व्रत तीन दिन में साध्य होने वाला बताया गया है । यह सब व्रतों में उत्तम और पापों का नाशक है अतः इसका महान फल जानना चाहिए । नारद ! दोनों पक्षों की एकादशी को मनुष्य निराहार रहे और एकाग्रचित हो नाना प्रकार के पुष्पों से शुभ एवं विचित्र मंडप बनावे । फिर शास्त्रोक्त विधि से भलीभांति स्नान करके उपवास और इन्द्रिय संयम पूर्वक श्रद्धा और एकाग्रता के साथ नाना प्रकार के पूजन, उपचार, जप, होम, प्रदक्षिणा, स्त्रोत पाठ , दण्डवत प्रणाम तथा मन को प्रिय लगने वाले जय जैकार के शब्दों से विधिवत श्री विष्णु की पूजा करे तथा रात्री जागरण करे ऐसा करने से मनुष्य विष्णु के परम पद को प्राप्त होता है एकादसी को उपवास करके श्रेष्ठ मनुष्य तीन दिन के लिए आगे बताये जाने वाले सभी नियमों का पालन करके द्वादशी को भक्तिपूर्वक सनातन वासुदेव की षोडशोपचार से पूजा करे तदनन्तर ब्राह्मणों को भोजन कराकर उन्हें दक्षिणा दे और उन्हें विदा करने के पश्चात स्वयं भोजन करे ।
इन तीन दिनों में चार समय का भोजन त्याग देना चाहिए । प्रथम और अंतिम दिन में एक एक बार का और बीच के दिन(एकादशी) दोनों समय का भोजन त्याज्य है । अब मैं तुम्हे इन तीन दिन के व्रत में पालन करने योग्य नियम बताता हूँ । काँसे के बर्तन, मांस, मसूर, चना, कोदो (एक प्रकार का धान), शाक, शहद,पराया अन्न, पुनर्भोजन (दो बार भोजन), मैथुन -दशमी के दिन इन दस वस्तुओं से वैष्णव पुरुष दूर रहे । जुआ, निद्रा, पान, दातुन, परायी निन्दा, चुगली, चोरी, हिंसा, मैथुन, क्रोध तथा झूठ- एकादशी को यह ग्यारह बातें न करे । काँसे के बर्तन, मांस,मदिरा, शहद,तेल,झूट बोलना,व्यायाम करना,परदेस में जाना , पुनर्भोजन (दो बार भोजन), मैथुन, जो स्पर्श योग्य नहीं हैं उनका स्पर्श एवं मसूर -द्वादशी को इन बारह वस्तुओं को न करे ।
विप्रवर इस प्रकार नियम करने वाला पुरुष यदि शक्ति हो तो उपवास करे । यदि शक्ति न हो तो बुद्धिमान पुरुष एक समय भोजन करके रहे, किन्तु रात में भोजन न करे । अथवा अयाचित वस्तु (बिना मांगे मिले हुई वस्तु )- का उपयोग करे । किन्तु ऐसे महत्वपूर्ण व्रत का त्याग न करे ।।
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