एक बार की बात है देवर्षि नारदजी ने भगवान् शिव जी से निवेदन किया – प्रभो ! अनेक तत्वज्ञानी लोग बताते हैं कि परात्पर विद्यास्वरूपिणी भगवती काली हैं । उन्होंने ही स्वयं पृथ्वीपर श्रीकृष्णरूप में अवतार ग्रहणकर कंसादि दुष्टो का संहार कर पृथ्वी का भार दूर किया, अत: आप बताने की कृपा करे कि महेश्वरी ने पुरुष रूप में क्यों अवतार धारण किया-
वदन्त्यनेकतत्त्वज्ञा: काली विद्या परात्परा ।
या सैव कृष्णरूपेण क्षिताववातरत्स्वयम्।।
अभवच्छ्रोतुमिच्छामि कस्माद्देवी महेश्वरी।
पुंरूपेणावतीभूत्क्षितौ तन्मे वद प्रभो।।
(महाभागवत पुराण ४९ । १,३)
इसपर भगवान् महादेव जी ने नारद जी की जिज्ञासा को शान्त करने के लिये उनके द्वारा पूछे गये प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा – वत्स ! एक समय की बात है कौतुकी भगवान् शिव कैलाशशिखर पर मंदिर में पार्वती के साथ एकान्त में विहार कर रहे थे । भगवती पार्वती की अचिन्त्य सुन्दरता देखकर शम्मु सोचने लगे कि नारी जन्म तो अत्यन्त शोभन है
चेतसा चिन्तयामास नारीजन्मातिशोभनम् ।।
तदनन्तर उन्होंने पार्वती जी से अनुरोध किया कि मेरी इच्छा है कि पृथ्वीपर आप पुरुषरूप से एवं मैं आपकी पत्नी के रूपमें अवतीर्ण होऊं –
यदि में त्वं प्रसन्नासि तदा पुंस्त्वमवाप्नुहि।
कुत्रचित्पृथिवीपृष्ठे यास्येहं स्त्रीस्वरूपताम्।।
(महाभागवत पुराण ४९ । १६)
भगवती पार्वती जी ने भगवान् शिवजी से कहा कि हे महादेव ! मैं आपकी प्रसन्नता के लिये पृथ्वीपर वसुदेव के घरमे पुरुषरूप मेंश्रीकृष्ण होकर अवश्य जन्म लूँगी और हे त्रिलोचन ! मेरी प्रसन्नता के लिये आप भी स्त्रीरूप में जन्म ग्रहण करे
भविष्येहं त्वत्प्रियार्थं निश्चितं धरणीतले ।
पुंरूपेण महादेव वसुदेवगृहे प्रभो।
कृष्णोहं मत्प्रियार्थं स्त्री भव त्वं हि त्रिलोचन ।।
इसपर श्री शिवजी ने कहा- शिवे ! आपके पुरुषरूप से श्री कृष्ण के रूपमें अवतरित होने पर मैं आपकी प्राणसदृश वृषभानु पुत्री राधारूप होकर आपके साथ विहार करूँगा । साथ ही मेरी अष्ट मूर्तियाँ भी रुक्मिणी, सत्यभामा आदि पटरानियों के रूपमें मृत्युलोक में अवतरित होगी-
पुंरुपेण जगद्धात्रि प्राप्तायां कृष्णतां त्वयि।
वृषभानो: सुता राधास्वरूपाहं स्वयं शिवे।।
तव प्राणसमा भूत्वा विहरिष्ये त्वया सह ।
मूर्तयोष्टौ तथा मर्त्ये भविष्यन्त्यु योषित: ।।
देवी ने यह भी कहा कि मेरी दो सखियाँ- विजया एवं जया उस समय श्रीदाम एवं वसुदाम के नाम से पुरुषरूपमें जन्म लेंगी । पूर्ववाल में विष्णुजी के साथ की गयी अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार मेरे कृष्ण होनेपर श्री विष्णु मेरे अग्रज बलराम के रूपमें अवतार ग्रहण करेंगे । पूर्वकाल में भगवती एवं विष्णुजी ने युद्धमें जिन राक्षसो का संहार किया था; वे कंस, दुर्योधन आदि के रूपमें जन्म लेंगे । पुर्वकाल में जो महान् राक्षस मारे गये थे, वे राजाके रूप में जन्म ग्रहण करेंगे। मेरी भद्रकाली की मूर्ति वसुदेव के घरमें पुरुषरूपमें श्याम के नामसे अवतार लेगी-
किंतु मे भद्रकाली या मूर्तिर्नवघनद्युति: ।
वसुदेवगृहे ब्रह्मन् पुंरूपेण भविष्यति ।।
भगवान् विष्णु भी अपने अंशरूप से पाण्डुपुत्र अर्जुन के रूपमें, धर्मराज अपने अंशरूप से युधिष्ठिर के रूपमें, पवनदेव अपने अंशसे भीमसेन के रूपमें, अश्विनीकुमार अपने अंशसे माद्री पुत्र नकुल-सहदेव के रूपमें जन्म लेंगे एवं मेरे अंशसे कृष्णा-द्रोपदी का जन्म होगा । मैं पाण्डुपुत्र पाण्डवो की विशेष सहायता करके युद्ध के लिये उत्सुक रहूँगी । मै युद्धमें महान् माया फैलाकर समरक्षेत्र में सम्मुख उपस्थित होकर परस्पर मारने की इच्छावाले वीरो का संहार करुँगी । मेरी की माया से मोहित होकर दुष्ट राजा एक-दूसरे को मार डालेंगे । इस युद्धमें धर्मनिष्ठ पाण्डव, बालक एबं वृद्धमात्र शेष रह जायेगे । में पृथ्वी को भारसे मुक्त करके पुन: यहाँ लौट आऊँगी
निर्भारां वसुधां कृत्वा पुनरेष्यामि चात्र तु ।।
(महाभागवत पुराण ४९ । ६२ )
ब्रह्माजी की प्रार्थनापर साक्षात् भगवती ही देवकार्यसिद्धद्यर्थ अपने अंश से वसुदेव-पुत्र श्रीकृष्ण के रूपमें तथा भगवत विष्णु वसुदेव के घर बलराम एवं पाण्डुपुत्र अर्जुन के रूपमें अवतीर्ण हुए
विधिना प्रार्थिता देवी वसुदेवसुुत: स्वयम्। निजांशेनाभवत्कृष्णो देवानां कार्यसिद्धये ।।
विष्णुश्चापि द्विधा भूत्वा जन्म लेभे महीतले ।
वसुदेवरगृहे रामो महाबलपराक्रम: ।।
तथापर: पाण्डुसुतो धन्विश्रेष्ठो धनञ्जय: ।
(महाभागवत पुराण ५०। १-३)
वदन्त्यनेकतत्त्वज्ञा: काली विद्या परात्परा ।
या सैव कृष्णरूपेण क्षिताववातरत्स्वयम्।।
अभवच्छ्रोतुमिच्छामि कस्माद्देवी महेश्वरी।
पुंरूपेणावतीभूत्क्षितौ तन्मे वद प्रभो।।
(महाभागवत पुराण ४९ । १,३)
इसपर भगवान् महादेव जी ने नारद जी की जिज्ञासा को शान्त करने के लिये उनके द्वारा पूछे गये प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा – वत्स ! एक समय की बात है कौतुकी भगवान् शिव कैलाशशिखर पर मंदिर में पार्वती के साथ एकान्त में विहार कर रहे थे । भगवती पार्वती की अचिन्त्य सुन्दरता देखकर शम्मु सोचने लगे कि नारी जन्म तो अत्यन्त शोभन है
चेतसा चिन्तयामास नारीजन्मातिशोभनम् ।।
तदनन्तर उन्होंने पार्वती जी से अनुरोध किया कि मेरी इच्छा है कि पृथ्वीपर आप पुरुषरूप से एवं मैं आपकी पत्नी के रूपमें अवतीर्ण होऊं –
यदि में त्वं प्रसन्नासि तदा पुंस्त्वमवाप्नुहि।
कुत्रचित्पृथिवीपृष्ठे यास्येहं स्त्रीस्वरूपताम्।।
(महाभागवत पुराण ४९ । १६)
भगवती पार्वती जी ने भगवान् शिवजी से कहा कि हे महादेव ! मैं आपकी प्रसन्नता के लिये पृथ्वीपर वसुदेव के घरमे पुरुषरूप मेंश्रीकृष्ण होकर अवश्य जन्म लूँगी और हे त्रिलोचन ! मेरी प्रसन्नता के लिये आप भी स्त्रीरूप में जन्म ग्रहण करे
भविष्येहं त्वत्प्रियार्थं निश्चितं धरणीतले ।
पुंरूपेण महादेव वसुदेवगृहे प्रभो।
कृष्णोहं मत्प्रियार्थं स्त्री भव त्वं हि त्रिलोचन ।।
इसपर श्री शिवजी ने कहा- शिवे ! आपके पुरुषरूप से श्री कृष्ण के रूपमें अवतरित होने पर मैं आपकी प्राणसदृश वृषभानु पुत्री राधारूप होकर आपके साथ विहार करूँगा । साथ ही मेरी अष्ट मूर्तियाँ भी रुक्मिणी, सत्यभामा आदि पटरानियों के रूपमें मृत्युलोक में अवतरित होगी-
पुंरुपेण जगद्धात्रि प्राप्तायां कृष्णतां त्वयि।
वृषभानो: सुता राधास्वरूपाहं स्वयं शिवे।।
तव प्राणसमा भूत्वा विहरिष्ये त्वया सह ।
मूर्तयोष्टौ तथा मर्त्ये भविष्यन्त्यु योषित: ।।
देवी ने यह भी कहा कि मेरी दो सखियाँ- विजया एवं जया उस समय श्रीदाम एवं वसुदाम के नाम से पुरुषरूपमें जन्म लेंगी । पूर्ववाल में विष्णुजी के साथ की गयी अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार मेरे कृष्ण होनेपर श्री विष्णु मेरे अग्रज बलराम के रूपमें अवतार ग्रहण करेंगे । पूर्वकाल में भगवती एवं विष्णुजी ने युद्धमें जिन राक्षसो का संहार किया था; वे कंस, दुर्योधन आदि के रूपमें जन्म लेंगे । पुर्वकाल में जो महान् राक्षस मारे गये थे, वे राजाके रूप में जन्म ग्रहण करेंगे। मेरी भद्रकाली की मूर्ति वसुदेव के घरमें पुरुषरूपमें श्याम के नामसे अवतार लेगी-
किंतु मे भद्रकाली या मूर्तिर्नवघनद्युति: ।
वसुदेवगृहे ब्रह्मन् पुंरूपेण भविष्यति ।।
भगवान् विष्णु भी अपने अंशरूप से पाण्डुपुत्र अर्जुन के रूपमें, धर्मराज अपने अंशरूप से युधिष्ठिर के रूपमें, पवनदेव अपने अंशसे भीमसेन के रूपमें, अश्विनीकुमार अपने अंशसे माद्री पुत्र नकुल-सहदेव के रूपमें जन्म लेंगे एवं मेरे अंशसे कृष्णा-द्रोपदी का जन्म होगा । मैं पाण्डुपुत्र पाण्डवो की विशेष सहायता करके युद्ध के लिये उत्सुक रहूँगी । मै युद्धमें महान् माया फैलाकर समरक्षेत्र में सम्मुख उपस्थित होकर परस्पर मारने की इच्छावाले वीरो का संहार करुँगी । मेरी की माया से मोहित होकर दुष्ट राजा एक-दूसरे को मार डालेंगे । इस युद्धमें धर्मनिष्ठ पाण्डव, बालक एबं वृद्धमात्र शेष रह जायेगे । में पृथ्वी को भारसे मुक्त करके पुन: यहाँ लौट आऊँगी
निर्भारां वसुधां कृत्वा पुनरेष्यामि चात्र तु ।।
(महाभागवत पुराण ४९ । ६२ )
ब्रह्माजी की प्रार्थनापर साक्षात् भगवती ही देवकार्यसिद्धद्यर्थ अपने अंश से वसुदेव-पुत्र श्रीकृष्ण के रूपमें तथा भगवत विष्णु वसुदेव के घर बलराम एवं पाण्डुपुत्र अर्जुन के रूपमें अवतीर्ण हुए
विधिना प्रार्थिता देवी वसुदेवसुुत: स्वयम्। निजांशेनाभवत्कृष्णो देवानां कार्यसिद्धये ।।
विष्णुश्चापि द्विधा भूत्वा जन्म लेभे महीतले ।
वसुदेवरगृहे रामो महाबलपराक्रम: ।।
तथापर: पाण्डुसुतो धन्विश्रेष्ठो धनञ्जय: ।
(महाभागवत पुराण ५०। १-३)
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