रविवार, 7 जनवरी 2018

मानस में बालकाण्ड में अहल्योद्धार के प्रकरण में चार (४) त्रिभङ्गी छन्द प्रयुक्त हुए हैं

मानस में बालकाण्ड में अहल्योद्धार के प्रकरण में चार (४) त्रिभङ्गी छन्द प्रयुक्त हुए हैं –

१.२११.१ से १.२११.४। गुरुवचन के अनुसार इसका कारण है कि अपने चरण से अहल्या माता को छूकर प्रभु श्रीराम ने अहल्या के पाप, ताप और शाप को भङ्ग (समाप्त) किया, अतः गोस्वामी जी की वाणी में सरस्वतीजी ने त्रिभङ्गी छन्द को प्रकट किया।

उदाहरण

(१.२११.१) – परसत पद पावन (१०) + शोक नसावन (८) + प्रगट भई तपपुंज सही (१४) = ३२ । देखत रघुनायक (१०) + जन सुखदायक (८) + सनमुख होइ कर जोरि रही (१४) = ३२ । अति प्रेम अधीरा (१०) + पुलक शरीरा (८) + मुख नहिं आवइ बचन कही (१४) = ३२ । अतिशय बड़भागी (१०) + चरनन लागी (८) + जुगल नयन जलधार बही (१४) = ३२ ॥ १७. तोमर तोमर एक मात्रिक छन्द है जिसके प्रत्येक चरण में १२ मात्राएँ होती हैं।

पहले और दुसरे चरण के अन्त में तुक होता है, और तीसरे और चौथे चरण के अन्त में भी तुक होता है। मानस में तीन स्थानों पर आठ-आठ (कुल २४) तोमर छन्दों का प्रयोग है।

ये तीन स्थान हैं – १) अरण्यकाण्ड में खर, दूषण, त्रिशिरा और १४००० राक्षसों की सेना के साथ प्रभु श्रीराम का युद्ध (३.२०.१ से ३.२०.८) तब चले बान कराल । फुंकरत जनु बहु ब्याल । कोपेउ समर श्रीराम । चले बिशिख निशित निकाम ॥

२) युद्धकाण्ड में रावण का मायायुद्ध (६.१०१.१ से ६.१०१.८) जब कीन्ह तेहिं पाषंड । भए प्रगट जंतु प्रचंड । बेताल भूत पिशाच । कर धरें धनु नाराच ॥

३) युद्धकाण्ड में वेदवतीजी के अग्निप्रवेश और सीताजी के अग्नि से पुनरागमन के पश्चात् इन्द्रदेव द्वारा राघवजी की स्तुति (६.११३.१ से ६.११३.८) जय राम शोभा धाम । दायक प्रनत बिश्राम । धृत तूण बर शर चाप । भुजदंड प्रबल प्रताप ॥ १८. तोटक तोटक में चार चरण होते हैं। हर चरण में १२-१२ वर्ण होते हैं और सारे छंद में केवल “सगण” (लघु-लघु-गुरु अथवा ॥ऽ) का क्रम रहता है (“वद तोटकमब्धिसकारयुतम्” )। प्रत्येक चरण में ४ सगण होते हैं। मानस जी में ३१ तोटक छन्द हैं जो कि इन स्थानों पर हैं –

१. युद्धकाण्ड में रावण वध के बाद ब्रह्माजी कृत राघवस्तुति में ग्यारह छन्द (६.१११.१ से ६.१११.११) – जय राम सदा सुखधाम हरे । रघुनायक सायक चाप धरे । भव बारन दारन सिंह प्रभो । गुन सागर नागर नाथ बिभो ॥

२. उत्तरकाण्ड में वेदों द्वारा की गयी स्तुति में दस छन्द (७.१४.१ से ७.१४.१०) जय राम रमा रमणं शमनम् । भवताप भयाकुल पाहि जनम् । अवधेश सुरेश रमेश बिभो । शरणागत माँगत पाहि प्रभो ॥

३. उत्तरकाण्ड में काकभुशुण्डि जी के पूर्वजन्म की कथा में विकराल कलियुग वर्णन के प्रकरण में दस छन्द (७.१०१.१ से ७.१०१.५, और ७.१०२.१ से ७.१०२.५) – बहु दाम सँवारहिं धाम जती । विषया हरी लीन्ह गई बिरती । तपसी धनवंत दरिद्र गृही । कलि कौतुक तात न जात कही ॥

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