चरितं देवदेवस्य महादेवस्य पावनम् । अपारं परमोदारं चतुर्वर्गस्य साधनन् ।
गौरी विनायकोपेतं पत्र्चवक्त्रं त्रिनेत्रम् । शिवं ध्यात्वा दशभुजं शिवरक्षां पठेन्नर ।।
गंगाधर: शिर: पातु भालमर्धेन्दुशेखर: । नयनौ मदनध्वंसी कर्णे सर्पविभूषण: ।
घ्राणं पातु पुरारितर्मुखं पातु जगत्पति: । जिह्वां वागीश्वर: पातु कन्धरं शितिकन्धर: ।।
श्रीकण्ठ: पातु मे कण्ठं स्कन्धौ विश्वधुरन्धर: । भुजौ भूभारसंहर्ता करौ पातु पिनाकधृक् ।
हृदयं शँकर: पातु जठरं गिरिजापति: । नाभि मृत्युन्जय: पातु कटिव्याघ्रजिनाम्बर: ।।
सक्थिनी पातु दीनार्त शरणागतवत्सल: । उरु: महेश्वर: पातु जानुनी जगदीश्वर: ।
जंघे पातु जगत्कर्ता गुल्फौ पातु गणाधिपः । चरणौ करुणासिन्धु: सर्वांगानि सदाशिव: ।।
एका शिवबलोपेतां रक्षां य: सुकृति: पठेत् । स भुक्त्वा सकलान् कामान् शिवसायुज्यमाप्नुयात् ।
ग्रह-भूत-पिशाचाद्यास्त्रैलोक्ये विचरन्ति ये । दरदाशु पलायन्ते शिवनामाभिरक्षणात् ।।
अभयंकर नामेदं कवचं पार्वतीपते: । भक्त्या विभर्ति य: कण्ठे तस्य वश्यं जगत्त्रयम् ।
इमा नारायण: स्वप्ने शिवरक्षां यथाऽऽदिशत् । प्रातरुत्थाय योगीन्द्रो याज्ञवल्क्यस्तथाऽलिखत् ।।
- देवाधिदेव महादेव का यह चरित्र , परम पवित्र , अत्यन्त उदार एवं अपार जो चतुर्वर्ग ( धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष ) प्रदान करने वाला है । पंचमुख ( पाँच मुख ) दशहस्त ( दस हाथ वाले ) त्रिपुरारे ( तीन नेत्रों वाले ) महादेव का ध्यान गौरी ( माता पार्वती ) एवं विनायक ( गणपति ) के सहित कर ' शिवरक्षा स्तोत्र ' का पाठ करना चाहिये ।
गंगाधर महादेव मेरे सिर की , अर्धचन्द्रधारी मेरे कपाल की , मदनध्वंसी ( कामदेव का दहन करने वाले ) मेरे दोनो नेत्रों की , सर्पविभूषण ( सर्पों के आभूषण पहनने वाले ) मेरे कानों की रक्षा करे । पुराराति ( त्रिपुरासुर का वध करने वाले ) मेरी नाक की , जगत्पति मेरे मुख की , वागीश्वर मेरी जिव्हा की , शितिकन्धर मेरे ग्रीवा की , श्रीकण्ठ मेरे कण्ठ की , विश्वधुरन्धर मेरे कंधों की , भूभारसंहर्ता मेरी दोनो भुजाओं की , पिनाकधृक् दोनो हाथों की रक्षा करें ।
महादेव शँकर मेरे हृदय की , गिरिजापति पेट की , मृत्युन्जय नाभि की , व्याघ्रजिनाम्बर मेरी कमर की तथा दीनार्त-शरणागतवत्सल मेरी समस्त हड्डियों की , महेश्वर मेरे उरु की , जगदीश्वर मेरे जानु की , जगत्कर्ता दोनो जाँघों की , गणाधिप दोनो घुटनों की , करुणासिन्धु दोनो पैरों की , तथा सारे अंगों की रक्षा सदाशिव करे ।
जो साधक शिव बल से युक्त हो कर इस शिवरक्षा स्तोत्र का पाठ करते हैं उनसे इस त्रिलोक मे जितने भी भूत , प्रेत , पिशाच आदि हैं वे सब इस स्तोत्र मात्र के पाठ से ही तत्काल दूर भाग जाते हैं । जो साधक भक्तिपूर्वक पार्वती पति महादेव के इस अभयंकर नामक कवच को अपने कण्ठ मे धारण करते हैं उनसे तीनो लोक वशीभूत हो कर अन्त मे शिवसायुज्य ( मोक्ष ) को प्राप्त करते हैं ।
भगवान नारायण ने स्वप्न मे याज्ञवल्क्य ऋषि को इस कवच का उपदेश दिया था जिसे मुनिश्रेष्ठ याज्ञवल्क्य ने प्रात: काल उठ कर लिख दिया था ।
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