शुभ विवाह
शिक्षित एवं बौद्धिक स्तर वाले बच्चों से वंश वृद्धिऋषियों , मनीषियों एवं संतों ने विवाह को " वंश वृद्धि" के लिए आवश्यक माना है ! इसलिए उन्होंने "शुभ विवाह " को ही मान्यता दी है ! शुभ विवाह को परिभाषित करते समय उन्होंने सुयोग्य ,सुविचारों वाली अच्छी संतान की उत्पत्ति यानि वंश वृद्धि को इसका पैमाना माना है ! इसके लिए उन्होंने विवाह के समय " अष्टकूट के मिलान " को सर्वाधिक महत्त्व दिया है ! मनीषियों का मानना है की ३६ गुणों में से कम से कम २५ गुण अवश्य मिलने चाहिए तभी कोई विवाह शुभ कहा जा सकता है ! २५ से कम और १८ से अधिक को साधारण श्रेणी का विवाह मन है ! ,,,,,,,,,,,,,,, अच्छी शिक्षा एवं बौद्धिक स्तर वाले बच्चे पैदा करने के लिए "नाड़ी दोष " से बचना आवश्यक है ! जन्म नक्षत्रो को तीन नाड़ियों में विभाजित किया गया है वे है आदि नाड़ी , मध्य नाड़ी व अन्त्य नाड़ी !
यह दोष सबसे बड़ा दोष माना गया है ! ऋषियों ने इसे भृकुट दोष ( मृत्यु दोष ) से भी अधिक भयंकर माना है ! इसी कारण भृकुट दोष को ७ वे पायदान पर रखा है और नाड़ी दोष को ८ वे पर रखा है !( ७ गुण---- कम मान्यता ) (८ गुण --- अधिक मान्यता ) सम्भवतः वे वंश में पैदा होने वाले बच्चों की शिक्षा एवं बौद्धिक स्तर को सबसे अधिक मान्यता देते है !
नारद ऋषि के अनुसार "एक नाड़ी विवाहश्च गुणे: सर्वे समन्वितः !
वर्जनीय: प्रयलेन दम्पत्यो: नियंत यतः !!
अर्थात विवाह के समय अष्टकूट मिलान में सब गुण मिल रहे हों, परन्तु वर एवं कन्या की एक ही नाड़ी का प्रयत्नपूर्वक त्याग करना चाहिए ! यह दोष वंश में अच्छे शिक्षा एवं बौद्धिक स्तर वाले बच्चों की उत्पत्ति में घातक माना गया है ! इस नियम के कुछ अपवाद एवं दोष के परिहार के लिए ऋषियों ने सुझाव दिए है परन्तु उनकी जटिलताओं को समझने एवं अच्छे बौद्धिक स्तर के ब्राह्मणों की कमी एवं उनकी व्यावसायिक लालच के कारण बचना चाहिए !
अल्पबुद्धि ब्राह्मण ये भी कहते है की नाड़ी दोष केवल ब्राह्मण जाति को लगता है जो सर्वथा गलत परिभाषा है ! यह दोष समस्त मानव जाति को लगता है जो ( अच्छी शिक्षा एवं बौद्धिक स्तर एवं परोपकारी -- यानि ब्राह्मण ) बच्चे पैदा करना चाहते है !
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