यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता..
एक बार भीम को पता चला कि धर्मराज युधिष्ठिर ने द्रौपदी के पैर दबाये हैंं, तो उसे बड़ी ग्लानि हुई । वह सोचने लगा कि अब तो उलटा ही होने लगा है । जहाँ पत्नी को पति की सेवा करनी चाहिए, वहाँ पति पत्नी की सेवा करने लगा है । यह काम युद्धिष्ठिर ही कर सकते हैं । मैं तो ऐसा कदापि नहींं करूँगा ।
बात श्रीकृष्ण को मालूम हुई । वे भीम के पास आये और बोले, "आज रात्रि को सामने के वटवृक्ष पर छिपकर बैठना और जो कुछ दिखाई दे, उसे चुपचाप देखते रहना, पर घबराना बिलकुल नहींं ।" इसपर भीम बोला, "कृष्ण ! तुम मुझ महापराक्रमी को, जिसके नाम से कौरवों के खेमे में हलचल मच जाती है, डरने की सलाह दे रहे हो !" भीम की दम्भोक्ति सुन कृष्ण मुस्कुरा उठे ।
रात्रि को भीम वटवृक्ष पर जा बैठा । डेढ़ प्रहर के बाद उसे नये - नये चमत्कार दिखाई देने लगे । एक तेजस्वी पुरूष आया और उसने सामने की भूमि साफ की । फिर वरूणदेव ने उसपर जलसिंचन किया । विश्वकर्मा के चाकरों ने आकर मण्डप और सिंहासनो की व्यवस्था की । धीरे - धीरे एक - एक करके द्वारपाल उपस्थित हुए और फिर शुक्र, वामदेव,व्यास, नारद, इत्यादि देवों का आगमन हुआ और वे यथाक्रम अपने अपने आसन पर विराजमान हुए । इतने मेंं उसे चारो पाण्डव भी आते दिखाई दिये और उन्होंने भी आसन ग्रहण किया । भीम यह देख चकित हुआ कि राजसिंहासन अब भी खाली है । इतने में उसे एक तेजस्वी नारी आती दिखाई दी । उसे देखते ही सारे देवता और ऋषि - मुनि उसके सम्मान में अपने आसन से उठ खड़े हुए । उस नारी के केश खुले हुए थे और भूमि को स्पर्श कर रहे थे । उसके हाथो में त्रिशूल, फरसा, तलवार आदि शस्त्र थे और उसने सिर पर भव्य मुकुट धारण किया हुआ था । उसके सिंहासन पर बैठते ही उपस्थित वृन्दों ने जय - जयकार किया । भीम ने सोचा कि यह तो महामाया मालूम पड़ती है, किन्तु जब उसने सूक्ष्मता से निरिक्षण किया, तो उसे वह स्री और कोई नहींं, वरन् द्रौपदी ही दिखाई दी ।
द्रौपदी ने सारे देवताओं से कुशल - समाचार पूछे और फिर यम से पूछा कि आज कितने घड़े भरकर लाये हो ?" यम बोला, "देवी ! सात घड़ों में से छह तो असुरों के रक्त से भरे हैं, पर एक खाली है ।" "वह क्यों भरा नहींं ?" -- पूछे जाने पर उसने उत्तर दिया, "अभी कौरव - पाण्डवों का युद्ध चल रहा है, उसमें भीम के रक्त से यह घड़ा भर जायेगा ।" द्रौपदी ने पुनः प्रश्न किया, "इसे भीम के रक्त से क्यों भरना है ?" उत्तर मिला, "क्योंकि उसे अपनी शक्ति का बड़ा ही गर्व है ।" "तब तो इसमें देर नहींं लगनी चाहिए ।" -- द्रौपदी ने आदेश दिया, "युद्ध के लिए न रूककर, इसे अभी भरा जाये ।" इसपर यम बोला, "भीम अभी कहीं दिखाई नहींं देता, वह सम्भवतः कंही छिपा हुआ है ।" इतने में नारद खड़े हुए और बोले, "भीम सामने के उस वटवृक्ष पर बैठा हुआ है ।" अब तो भीम भय से काँपने लगा, उसका शरीर पसीने से तर हो गया । उसने सोचा, इस आपत्ति से उसे द्रौपदी ही बचा सकती है, उसी की शरण जानी चाहिए । वह वृक्ष पर से कूद पड़ा और उसने द्रौपदी के चरण पकड़ लिये । इतने मेंं श्रीकृष्ण के शब्द सुनाई पड़े, "अरे भीम, इतने पराक्रमी होकर भी तुम अपनी पत्नी के पैर पकड़े हुए हो ?" इसपर भीम नें उत्तर दिया, "द्रौपदी सामान्य स्त्री नहींं, प्रत्युत साक्षात महामाया है ।" यह सुन श्रीकृष्ण एकदम हँस पड़े और भीम के सामने का सारा दृश्य ओझल हो गया । न तो वहाँ सिंहासन था, न द्रौपदी और न देवता - मुनि, सामने केवल श्रीकृष्ण खड़े मुस्कुरा रहे थे ।
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